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शनिवार को है गोपाष्टमी, जानिए क्या है इस पर्व को मनाने का कारण - GOPASTAMI FESTIVAL IN RAJASTHAN

इस बार गोपाष्टमी पर 9 नवम्बर को मनाई जाएगी. मान्यता है कि इस दिन श्रीकृष्ण पहली बार गायों को चराने के लिए लेकर गए थे.

Gopastami festival  in Rajasthan
इस बार गोपाष्टमी पर 9 नवम्बर को मनाई जाएगी (Photo ETV Bharat Bikaner)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 8, 2024, 9:35 AM IST

बीकानेर: कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी का त्योहार मनाया जाता है. शनिवार को गोपाष्टमी पर्व को मनाया जाएगा. हिंदू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है और हर घर में तैयार होने वाले भोजन की पहली रोटी गाय माता के लिए रखी जाती है, लेकिन गोपाष्टमी के दिन गाय की पूजा का विशेष महत्व है. इस दिन घरों और गोशालाओं में गायों की पूजा की जाती है.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने दीपावली के बाद इंद्र के अहंकार को तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर धारण किया था. तब से ही गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई थी. गोवर्धन पूजा के बाद अष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण पहली बार गायों को चराने के लिए लेकर गए थे. तब से यह दिन गोपाष्टमी पर्व के रूप में मनाया जाता है.

पढ़ें: गोविंद देव जी मंदिर से लेकर गौशालाओं तक गोपाष्टमी पर हुआ गौ माता का पूजन

ये हैं पौराणिक कथा: बीकानेर के पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि शास्त्रों में इस बात को लेकर एक कथा का उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण छह बरस के हुए तो पहली बार गायें चराने की इच्छा व्यक्त की. भगवान श्री कृष्ण ने अपनी माता यशोदा और नंद बाबा के सामने जब यह बात रखी तो नंद बाबा ने ऋषि शांडिल्य से गौ चरण का मुहूर्त पूछा और ऋषि शांडिल्य ने अष्टमी ये दिन का मुहूर्त बताया.

इसीलिए पड़ा गोपाल नाम: भगवान श्रीकृष्ण का गायों के प्रति अगाध प्रेम था भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवद्भीता में कहा है, 'धेनुनामस्मि कामधेनु' अर्थात मैं गायों में कामधेनु हूं. गायों को पालने वाला अर्थात गोपाल और गायों के इंद्र यानी कि गोविंद नाम के चलते ही भगवान श्री कृष्ण को गोपाल और गोविंद नाम से भी संबोधित किया जाता है.

बीकानेर: कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी का त्योहार मनाया जाता है. शनिवार को गोपाष्टमी पर्व को मनाया जाएगा. हिंदू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है और हर घर में तैयार होने वाले भोजन की पहली रोटी गाय माता के लिए रखी जाती है, लेकिन गोपाष्टमी के दिन गाय की पूजा का विशेष महत्व है. इस दिन घरों और गोशालाओं में गायों की पूजा की जाती है.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने दीपावली के बाद इंद्र के अहंकार को तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर धारण किया था. तब से ही गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई थी. गोवर्धन पूजा के बाद अष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण पहली बार गायों को चराने के लिए लेकर गए थे. तब से यह दिन गोपाष्टमी पर्व के रूप में मनाया जाता है.

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ये हैं पौराणिक कथा: बीकानेर के पंचांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू कहते हैं कि शास्त्रों में इस बात को लेकर एक कथा का उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण छह बरस के हुए तो पहली बार गायें चराने की इच्छा व्यक्त की. भगवान श्री कृष्ण ने अपनी माता यशोदा और नंद बाबा के सामने जब यह बात रखी तो नंद बाबा ने ऋषि शांडिल्य से गौ चरण का मुहूर्त पूछा और ऋषि शांडिल्य ने अष्टमी ये दिन का मुहूर्त बताया.

इसीलिए पड़ा गोपाल नाम: भगवान श्रीकृष्ण का गायों के प्रति अगाध प्रेम था भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवद्भीता में कहा है, 'धेनुनामस्मि कामधेनु' अर्थात मैं गायों में कामधेनु हूं. गायों को पालने वाला अर्थात गोपाल और गायों के इंद्र यानी कि गोविंद नाम के चलते ही भगवान श्री कृष्ण को गोपाल और गोविंद नाम से भी संबोधित किया जाता है.

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