बीकानेर : प्रदोष व्रत प्रतिवर्ष 24 बार आता है. यह व्रत हर महीने में दो बार आता है. प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन प्रदोष व्रत का पालन किया जाता है. यह व्रत माता पार्वती और भगवान शिव को समर्पित है. भगवान शिव की विशेष अनुकम्पा प्राप्ति के लिए शिवपुराण में विविध व्रतों का उल्लेख मिलता है. मान्यता है कि इसमें प्रदोष व्रत अत्यंत प्रभावशाली और शीघ्र फलदायी माना गया है. प्रदोष व्रत के दिन प्रदोष काल यानी संध्या काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है.
मिलता है फल : प्रदोष के दिन भगवान शिव की पूजा होती है और गुरुवार के दिन भगवान विष्णु की आराधना का दिन माना जाता है. मान्यता है कि गुरु प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा करने से धन, समृद्धि, सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. इस दिन बृहस्पति का दिन होने पर बृहस्पति ग्रह की शुभता भी प्राप्त होती है. पुराणों में भी प्रदोष व्रत को अत्यंत फलदायी बताया गया है. इस दिन पूजा करने से वैवाहिक जीवन में आ रही परेशानियां भी दूर होती हैं और संतान को भी स्वास्थ्य और सफलता का आशीर्वाद प्राप्त होता है. वैसे तो हर वार को आने वाले प्रदोष व्रत का एक महत्व होता है उसका फल मिलता है, लेकिन गुरु प्रदोष के दिन गुरु प्रदोष के व्रत से कार्य में सफलता व लक्ष्य की प्राप्ति होती है.
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गुरु प्रदोष व्रत पूजा विधि : गुरु प्रदोष व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इसके बाद सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का संकल्प लें. इस दिन भगवान शिव के साथ ही भगवान विष्णु की भी पूजा करना शुभस्थ होता है. ऐसा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं. मान्यता है कि गुरुवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी संकट दूर हो जाते हैं. इसके बाद प्रदोष काल मुहूर्त में भगवान शिव का रुद्राभिषेक करना चाहिए और महामृत्युंजय मंत्र का 108 बार जाप करें. पूजा के बाद भगवान शिव की आरती और शिव चालीसा का पाठ करना चाहिए.
चंद्रमा ने की सोमनाथ महादेव की स्थापना : पद्म पुराण की एक कथा के अनुसार चंद्रदेव अपनी 27 पत्नियों में से सिर्फ एक रोहिणी से ही सबसे ज्यादा प्यार करते थे और बाकी 26 को उपेक्षित रखते थे, जिसके चलते उन्हें श्राप मिला था. इसके बाद उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था. ऐसे में अन्य देवताओं की सलाह पर उन्होंने शिवजी की आराधना की और जहां आराधना की वहीं पर एक शिवलिंग स्थापित किया. शिवजी ने प्रसन्न होकर उन्हें न केवल दर्शन दिए बल्कि उनका कुष्ठ रोग भी ठीक कर दिया. चन्द्रदेव का एक नाम सोम भी है. उन्होंने भगवान शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहां तपस्या की थी, इसीलिए इस स्थान का नाम 'सोमनाथ' हो गया.