बीकानेर. धुलंडी यानी की चैत्र माह की प्रतिपदा से गणगौर का पूजन शुरू होता है. राजस्थान में हिंदू धर्म में गणगौर महिलाओं के लिए सबसे बड़ा त्योहार है. इस बीच हम आपको बीकानेर में बनाए जाने वाली लकड़ी की गणगौर से रू-ब-रू करवाएंगे, जो अपनी विशेष कारीगरी के कारण मशहूर है. यह गणगौर की प्रतिमा पूरी तरह से लकड़ी से बनाई जाती है. इस गणगौर में हाथ से बारीक कारीगरी की जाती है और इसके बाद रंग रोगन का कार्य होता है.
बता दें कि बीकानेर में बनने वाली गणगौर की श्रृंगारित प्रतिमा को देखकर ऐसा आभास होता है जैसे सामने कोई नई नवेली दुल्हन खड़ी हो. बीकानेर में कई कारीगरों की पीढ़ियां लकड़ी की गणगौर बनाने का काम करती आई है. इस बीच गणगौर की सजावट के लिए अलग से कलाकार भी हैं, जिनकी पीढ़ियां भी इस काम को करती आई है.
सागवान-चीड़ की लकड़ी से बनती है गणगौर : बीकानेर में बनी लकड़ी की गणगौर सागवान की लकड़ी से बनाई जाती है. इसके तैयार होने के बाद सोलह श्रृंगार किया जाता है. गणगौर बनाने वाले कारीगर आसू महात्मा कहते हैं कि वो चौथी पीढ़ी है, जो इस काम में जुटे हैं. उनका पूरा परिवार भी इसी काम में उनकी मदद करता है. बीकानेर में करीब 50 हजार गणगौर-ईसर तैयार होते हैं. सागवान और चीड़ की लकड़ी के गौर-ईसर और भाइया बनाए जाते हैं. आशु महात्मा कहते हैं कि अब सागवान की लकड़ी महंगी हो गई है, इसलिए अब चीड़ की लकड़ी ज्यादा काम में ली जाती है. हालांकि अब भी लोग सागवान की लकड़ी की गणगौर की ही डिमांड करते हैं. 21 इंच के गौर-ईसर की कीमत करीब 30 से 35 हजार रुपए तक आती है.
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पूरे साल होता है निर्माण : गणगौर को श्रृंगार करने का काम महिलाएं करती है. महिला कारीगर उषा सुराणा कहती है कि बीकानेर का मथेरन चौक गणगौर के लिए ही प्रसिद्ध है. वे कहती हैं कि गणगौर बनाने का काम भावना से होता है. दिखने में सुंदर लगे, इसी तरह की बनावट की जाती है. बीकानेर की गणगौर को लोग घरों में एकटक निहारते ही रहते हैं. सुराणा कहती हैं कि लकड़ी की प्रतिमा को पूरी आकृति देने और रंग चित्रकारी कर श्रृंगार करने का काम मुगल काल से ही हमारे पूर्वज करते आ रहे हैं. यह काम विरासत में हमें भी मिला है. ऐसे में पूरे साल यह काम किया जाता है.
जानें क्या है गणगौर पर्व : बता दें कि हिंदू धर्म में गणगौर एक प्रमुख व्रत है. इस पर्व पर महिलाएं गण यानी भगवान शंकर और देवी गौरी की पूजा करती हैं. देवी गौरी ही संसार को सुहाग और सौभाग्य प्रदान करती हैं. कुंवारी कन्याएं देवी गौरी से मनोकूल वर की प्राप्ति के लिए गणगौर का पूजन करती हैं. ऐसी मान्यता है कि चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि को देवी पार्वती ने संपूर्ण महिलाओं को सौभाग्य का आशीर्वाद दिया था. इसी कारण महिलाएं सौभाग्य प्राप्ति की कामना के लिए भगवान शिव के साथ देवी गौरी की पूजा करती हैं. मान्यता है कि गणगौर की पूजा सबसे पहले देवी पार्वती ने ही की थी. उन्होंने ही भगवान शिव की मूर्ति बनाकर उनकी पूजा की थी और शिव रूप में उन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ था.