भरतपुर. पहले घूंघट में घर का काम करती थीं, फिर सिलाई का प्रशिक्षण लिया. नौकरी मिली जो कि कुछ समय बाद ही कोरोना की भेंट चढ़ गई. नौकरी करने जाती थीं तो पुरुष तो पुरुष, महिलाएं भी ताने मारती थीं. आखिर में नौकरी जाने के बाद घर पर ही अपने हुनर का इस्तेमाल कर महिलाओं के सलवार-सूट और बैग निर्माण का काम शुरू किया. आज देश के अलग-अलग राज्यों से सलवार-सूट की डिमांड आती है. यह कहानी है भरतपुर से 5 किमी दूर स्थित मलाह गांव की पंकज मैथिल (32 वर्ष) की, जिन्होंने ना केवल अपने हुनर के दम पर अपनी एक पहचान बनाई, बल्कि अब तक 250 से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर भी बना चुकी हैं. 20 महिलाओं को रोजगार भी दे रही हैं.
ऐसे शुरू हुआ सफर : मलाह गांव की रहने वाली पंकज मैथिल एक सामान्य गृहिणी थीं. पति संजय मैथिल इलेक्ट्रीशियन के रूप में मेहनत कर परिवार पालते हैं. पंकज ने बताया कि उन्हें परिवार चलाने में पति की मदद करनी थी, इसलिए वर्ष 2019 में एक एनजीओ में सलवार-सूट सिलाई का तीन माह का प्रशिक्षण लिया. उसके बाद 8 हजार रुपए प्रति माह के वेतन पर एनजीओ में ही प्रशिक्षक के रूप में नौकरी की, लेकिन कोरोना के समय में नौकरी चली गई.
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घर पर शुरू किया काम : पंकज ने बताया कि सिलाई की नॉलेज पहले से थी, इसलिए घर पर ही सलवार-सूट, पेटीकोट और बैग निर्माण का कार्य शुरू किया. घर पर 6 तरह के लेडीज कुर्ते, प्लाजो, पैंट, लैगी और पेटीकोट तैयार कर रही हैं. वहीं, लेडीज हैंड बैग, स्कूल बैग, पिट्ठू बैग आदि भी तैयार कर रही हैं.
आज देशभर में मांग : पंकज ने बताया कि शुरू में बहुत दिक्कत हुई, लेकिन धीरे-धीरे हमारे कपड़ों की और सिलाई की गुणवत्ता का प्रचार होता गया और स्थानीय स्तर पर ही अच्छी बिक्री होने लगी. उसके बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी डिजाइनर कपड़ों के फोटो-वीडियो अपलोड करना शुरू किया. उसके बाद ई-कॉमर्स वेबसाइट के माध्यम से भी डिमांड आने लगी. आज ये स्थिति है कि देश के कई राज्यों से सलवार-सूट की मांग आ रही है. वहीं, स्थानीय व्यापारी भी अपनी पसंद के कपड़े सिलाई का ऑर्डर दे रहे हैं.
20 को रोजगार, 250 को प्रशिक्षण : पंकज ने बताया कि वो घर पर महिलाओं और युवतियों को सिलाई का प्रशिक्षण भी देती हैं. गरीब महिलाओं और युवतियों को निशुल्क प्रशिक्षण देती हैं. अब तक करीब 250 से अधिक महिलाओं-युवतियों को प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बना चुकी हैं. इतना ही नहीं, 20 महिलाओं को तो खुद रोजगार उपलब्ध करा रही हैं.
घूंघट से सम्मान तक : पंकज ने बताया कि उनके समाज में पर्दा प्रथा है. जब वो नौकरी करने जातीं तो महिला-पुरुष तरह-तरह की बातें करते. कई महिलाएं तो ताना भी मारती थीं, लेकिन जब महिला दिवस पर प्रशासन की तरफ से पंकज को सम्मानित किया गया तो समाज के ही बुजुर्गों ने पर्दा करने से मना कर दिया और दिल खोलकर मेहनत करने का आशीर्वाद दिया.