मंडला : मध्यप्रदेश में स्थित विश्व प्रसिद्ध नेशनल पार्क कान्हा टाइगर रिजर्व से एक दिलचस्प कहानी सामने आई है. यहां का एक टाइगर घूमते हुए मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ जा पहुंचा है. सुनने में अटपटा लगे पर ये सच है. इस टाइगर ने मध्यप्रेदश के मंडला जिले में स्थित कान्हा नेशनल पार्क से छत्तीसगढ़ के अचानकमार टाइगर रिजर्व तक का सफर तय किया है. छत्तीसगढ़ के अचानकमार टाइगर रिजर्व में जब इस बाघ को देखा गया तो कान्हा नेशनल पार्क के अधिकारी भी चौंक गए.
जंगल के कैमरों में नजर आया टाइगर T200
कान्हा टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर पुनीत गोयल के मुताबिक, '' अचानकमार टाइगर रिजर्व में टाइगर्स को स्पॉट करने के लिए जंगल में कैमरे लगे हैं. इन कैमरों में एक नया टाइगर स्पॉट हुआ है, जिसकी एनटीसीए आईडी जनरेट करने पर पता चला कि ये कान्हा टाइगर रिजर्व का बाघ टी-200 है. इस साल जनवरी-फरवरी के महीने में ये बाघ कान्हा के जंगलों में ट्रैप हुआ था और अब छत्तीसगढ़ के अचानकमार टाइगर रिजर्व में नजर आया है.''
टाइगर के लिए कॉरिडोर कितना जरूरी?
टाइगर के एमपी से छत्तीसगढ़ पहुंचने की इस खबर से बाघों के आवास को जोड़ने वाले कॉरिडोर की जरूरत भी पता चलती है. ऐसे कॉरिडोर बाघ सहित अन्य वन्यप्राणियों के खुलकर घूमने के लिए फायदेमंद होंगे, जिससे इनके संरक्षण में भी काफी मदद मिलेगी. इसके साथ ही छोटे क्षेत्र होने से बाघों के आपस में होने वाले टकरावों को भी कम किया जा सकता है. बता दें कि सीमित क्षेत्रों में ज्यादा बाघ होने से उनके बीच वर्चस्व की लड़ाई ज्यादा होने लगती है, जिसमें घायल होकर कई बाघ अपनी जान भी गंवा देते हैं.
बाघों के भविष्य के लिए वरदान होगा टाइगर कॉरिडोर
कान्हा टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर पुनीत गोयल आगे कहते हैं, '' अचानकमार टाइगर रिजर्व में टी-200 टाइगर का दिखना ये दर्शाता है कि मंडला, डिंडोरी के वन क्षेत्र को सम्मिलित कर जो टाइगर कॉरिडोर चिन्हित किया गया है, वन्य प्राणी उसका निश्चित तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे में इस कॉरिडोर को सुरक्षित रखा जाना चाहिए जिससे आगे भी बाघों समेत अन्य जानवरों का इसी तरह मूवमेंट बना रहे. वाइल्ड लाइफ कॉरिडोर से जब कोई प्रजाति एक से दूसरे क्षेत्र की ओर जाती है, तो इससे जीन फ्लो होता है. इस जीन डाइवर्सिटी से जेनेटिक फायदा होगा. जलवायु परिवर्तन या कोई खतरनाक बीमारी फैलती है, तो जितनी जेनेटिक विविधता होगी उस प्रजाति के बचने की उतनी ज्यादा संभावना रहती है.''
पेंच टाइगर रिजर्व से 400 किलोमीटर दूर जा पहुंची बाघिन, लोकेशन देखकर वन विभाग हैरान
गौरतलब है कि एक सीमित क्षेत्र में बाघों की बढ़ती आबादी से आपसी संघर्ष बढ़ता है. साथ ही आबादी वाले क्षेत्र में भी टाइगर्स का मूवमेंट होने लगता है, जिससे बाघों और इंसानों के टकराव की घटनाएं भी बढ़ने लगती हैं. ऐसे में इस तरह के कॉरिडोर बाघों से स्वतंत्र विचरण के लिए जरूरी है. इससे संरक्षण के साथ बाघ की आबादी बढ़ने में भी मदद मिलेगी.
दो महीने में ऐसा दूसरा मामला
इसी तरह अक्टूबर मध्य में पेंच टाइगर रिजर्व की एक बाघिन भी पेंच से निकलर छत्तीसगढ़ जा पहुंची थी. यह बाघिन भी 400 किमी दूर छत्तीसगढ़ राज्य के अचानकमार टाइगर में जा पहुंची थी. भारतीय वन्यजीव संस्थान टाइगर सेल के साइंटिस्ट्स ने अचानकमार टाइगर रिजर्व द्वारा भेजे गए बाघिन के फोटोग्राफ का टाइगर डाटाबेस से मिलान किया था, जिसमें इस बात की पुष्टि हुई थी.