गया: बिहार के गया जी धाम में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला चल रहा है. विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेले का आज 14वां दिन है. आश्विन कृष्ण त्रयोदशी की तिथि पर फल्गु स्नान कर दूध से तर्पण करना चाहिए. वहीं, गायत्री, सावित्री और सरस्वती तीर्थ पर प्रात:, मध्याह्न और संध्या स्नान करना चाहिए. फाल्गुनी तीर्थ पर दूध से तर्पण से पितरों को विष्णु लोक की प्राप्ति हो जाती है. वहीं, आश्विन कृष्ण त्रयोदशी के दिन पितृ दिवाली भी मनाई जाती है. इसे पितरों के निमित्त उत्सव के रूप में मनाया जाता है और मोक्ष की कामना की जाती है.
दिन में फाल्गुनी, संध्या में पितृ दिवाली: आश्विन कृष्ण त्रयोदशी को दिन में फल्गु तीर्थ पर स्नान के बाद दूध से तर्पण करना चाहिए. वहीं, सावित्री गायत्री और सरस्वती में अलग-अलग पहरों में स्नान करना चाहिए. संध्या में ही पितृ दीपावली मनाई जाती है. पितृ दिवाली में पितरों के निमित्त दीप जलाए जाते हैं. परंपरा तो यह भी है कि पितृ दिवाली के बीच पटाखे भी छोड़े जाते हैं.
पितृ दिवाली पर आतिशबाजी की परंपरा: हालांकि, फिलहाल कुछ वर्षों से भगदड़ की संभावना को देखते हुए प्रशासन ने आतिशबाजी पर रोक लगा दी है. दीप जलाने और पटाखे छोड़ने की परंपरा पौराणिक काल से चली आ रही है. इसे पितृ उत्सव के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि दीप जलाने से पितर प्रसन्न हो जाते हैं और पिंड दानी को लाख-लाख आशीर्वाद देते हैं. इससे पिंदानी के घर सुख समृद्धि और खुशियां प्राप्त होती है.
यमराज करते हैं ऐसा: आश्विन कृष्ण त्रयोदशी की तिथि का बड़ा ही महत्व है. ऐसी मान्यता है कि वर्षा ऋतु के अंत में आश्विन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को यमराज अपने लोक को खाली कर सभी को मनुष्य लोक में भेज देते हैं. मनुष्य लोक में आए प्रेत एवं पितर भूख से दुखी अपने पापों का कीर्तन करते हुए अपने पुत्र या वंशज से मधु युक्त खीर खाने की अपेक्षा करते हैं. इसे लेकर पितरों के निमित ब्राह्मणों को खीर खिलाकर तृप्त करना चाहिए, जिससे पितर प्रसन्न हो जाए. ब्राह्मणों को खीर खिलाने से पितर को तृप्ति मिलती है.
श्राद्ध में दीपदान करने से बनते हैं ज्ञानवान: आश्विन कृष्ण त्रयोदशी को संध्या काल में देश-विदेश में आए पिंडदानी नदी तट और मंदिरों में दीपदान कर पितरों के लिए दिवाली मनाते हैं. दिवाली मनाए जाने से पितर प्रसन्न हो जाते हैं और वे बार-बार अपने पुत्र या वंशज को आशीर्वाद देते हैं, जिससे संबंधित पिंडदानी के घर में सुख समृद्धि और शांति आती है. आश्विन कृष्ण त्रयोदशी के दिन पितरों के निमित्त किए गए विधि विधान से कर्मकांड से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उन्हें विष्णु लोक प्राप्त हो जाता है.
पितृ दीपावली को लेकर प्रशासन की तैयारी: पितृ दीपावली के दिन सबसे ज्यादा श्रद्धालुओं की भीड़ फल्गु नदी के तट पर लगती है. फल्गु तट पर देवघाट पर तकरीबन काफी संख्या में पिंडदानी पहुंचते है. इस तरह आश्विन कृष्ण त्रयोदशी की तिथि का बड़ा ही महत्व है. इसी लोग पितृ उत्सव के रूप में मनाते हैं.
लाखों पिंडदानी पहुंच चुके हैं गया जी: पितृपक्ष मेले के 13 दिन समाप्त हो चुके हैं. 13 वें दिन में तकरीबन लाखों लाख के करीब तीर्थयात्री यहां पहुंचे चुके हैं हैं और अपने पितरों के निमित पिंडदान का कर्मकांड किया. पिंडदानी एक दिन, तीन दिन, सात दिन और 17 दिनों के लिए पिंडदान का कर्मकांड करने गयाजी धाम को आते हैं. मोक्ष नगरी के नाम से विख्यात इस विष्णु नगरी में पितरों के निमित पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की कामना प्राप्ति हो जाती है और विष्णु लोक को चले जाते हैं.
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