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ताड़का वध के बाद भगवान राम ने भी की थी पंचकोशी परिक्रमा, लिट्टी-चोखा के प्रसाद के साथ मेले का समापन

बक्सर में 5 दिवसीय पंचकोशी परिक्रमा मेले का समापन हो गया है. लिट्टी-चोखा के प्रसाद के साथ श्रद्धालुओं ने मेले का समापन किया.

Panchkroshi Parikarma In Buxar
पंचकोशी परिक्रमा मेले का समापन (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : 2 hours ago

Updated : 1 hours ago

बक्सर: बिहार के बक्सर जिले का गौरव पंचकोशी परिक्रमा का समापन हो गया है. 20 नवंबर से शुरू हुए 5 दिनों तक चलने वाले पंचकोशी परिक्रमा मेले का चरित्रवन में लिट्टी-चोखा के भोग के साथ समापन हुआ. ठंड होने के बावजूद भी पंचकोशी परिक्रमा मेले में आए हजारों श्रद्धालु और संत समाज 5 दिनों तक मेले के भक्तिमय माहौल से आनंदित थे.

पुनर्जन्म से मिलती है मुक्ति: इस बाबत संत त्रिदंडी स्वामी गंगापुत्र ने बताया कि बक्सर के इस पंचकोशी परिक्रमा मेले के महत्व का वर्णन वराह पुराण के श्लोक एक से लेकर 197 श्लोक तक में विस्तृत रूप से हुआ है. यहीं नहीं श्रीमद्भागवत महापुराण में भी इसके महत्व की चर्चा खूब की गई है. जो भी श्रद्धालु पंचकोशी परिक्रमा करते हैं, उनका पुनर्जन्म नहीं होता है. पांच दिनों तक चलने वाले इस परिक्रमा मेले में बिहार ही नहीं उतर प्रदेश और झारखंड के भी हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं.

5 दिवसीय पंचकोशी परिक्रमा मेले का समापन (ETV Bharat)

श्रीराम ने भी की थी पंचकोशी परिक्रमा: पंचकोशी परिक्रमा मेले यात्रा को लेकर कहा जाता है कि त्रेता युग में भगवान राम उनके छोटे भाई लक्ष्मण, महर्षि विश्वामित्र के साथ बक्सर आए थे. उस समय बक्सर में ताड़का, सुबाहू, मारीच समेत कई राक्षसों का आतंक था. इन राक्षसों का वध कर भगवान राम ने महर्षि विश्वामित्र से यहां शिक्षा ग्रहण की थी. ताड़का वध करने के बाद भगवान राम ने नारी हत्या दोष से मुक्ति पाने के लिए प्रायश्चित्त स्वरूप अपने भ्राता लक्ष्मण और महर्षि विश्वामित्र के साथ यात्रा कर बक्सर के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित पांच ऋषियों के आश्रम गये और आशीर्वाद प्राप्त किए.

Panchkroshi Parikarma In Buxar
20 नवंबर को हुआ था पंचकोशी परिक्रमा मेला (ETV Bharat)

क्या है पौराणिक मान्यता?: कहा जाता है कि इस यात्रा के पहले पड़ाव में गौतम ऋषि के आश्रम अहिरौली भगवान राम पहुंचे. वहां पत्थर रूपी अहिल्या को अपने चरणों से स्पर्श कर उनका उद्धार किया. फिर उत्तरावाहिनी गंगा में स्नान कर पुआ-पकवान खाये. यात्रा के दूसरे पड़ाव में भगवान राम नारद मुनि के आश्रम नादांव पहुंचे, जहां सरोवर में स्नान करने के बाद सत्तू और मूली का उन्होंने भोग लगाया.

चूड़ा-दही और खिचड़ी का भी महत्व: इसी तरह तीसरे पड़ाव में भार्गव ऋषि के आश्रम भभुअर में चूड़ा-दही का भोग लगाया. मान्यता है कि चौथे पड़ाव में उद्दालक ऋषि के आश्रम नुआव में भगवान राम ने खिचड़ी और पांचवें और अंतिम पड़ाव में चरित्र वन में पहुंचकर लिट्टी चोखा का भोग लगाया. तभी से इस परंपरा का लोग निर्वहन करते आ रहे हैं. प्रत्येक साल अगहन महीने के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से इस यात्रा की शुरुआत होती है.

Panchkroshi Parikarma In Buxar
लिट्टी-चोखा तैयार करते श्रद्धालु (ETV Bharat)

पंचकोशी परिक्रमा के अंतिम दिन का महत्व: पंचकोशी परिक्रमा यात्रा में भाग लेने के लिए लाखों श्रद्धालु देश के कोने-कोने से बक्सर आते हैं. बता दें कि इस मेले के अंतिम दिन को लेकर मान्यता रही है कि अंतिम दिन प्रसाद अत्यंत पवित्र होता है, क्योंकि यह उस पवित्र धरती पर तैयार होता है. जिस वजह से अनन्त यज्ञ किये गए हैं. जिस धरा पर यज्ञ रक्षा के लिए श्री राम लक्ष्मण के कदम चलें और उनके चरणों की पवित्रता उसमें समाहित हुई.

Panchkroshi Parikarma In Buxar
बक्सर में पंचकोशी परिक्रमा मेला (ETV Bharat)

लिट्टी-चोखा के प्रसाद का समापन: मेले के बारे में कहा जाता है कि इस परिक्रमा मेला का अर्थ यह है कि अंतनिहिर्त भाव, संकल्प और इसी विश्वास के साथ पूर्ण होती है, पंचकोशी यात्रा. जो जीव के पांचों तत्वों को पवित्र करती है. पंचकोशी के अंतिम दिन पूरे बक्सर ,उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों बलिया और गाजीपुर के सहित पूरे इलाके में आज प्रत्येक घर में लिट्टी चोखा ही भोजन के रूप ग्रहण किया जाता है.

"वे बक्सर के पंचकोशी परिक्रमा मेला के महत्व के बारे में बहुत सुनी थी. इसलिए यहां आई हैं और खुशी है कि हमारी संस्कृति को हमारी परंपरा को लोग आज भी कायम रखें हैं. पंचकोशी की बड़ी महिमा है, इसलिए हमलोग उतना दूर होने के बाद भी प्रत्येक वर्ष आते हैं."- श्रद्धालु

ये भी पढ़ें: हजारों लोग यहां लिट्टी चोखा बनाने पहुंचते हैं, क्या आप इसके कारण को जानते हैं?

बक्सर: बिहार के बक्सर जिले का गौरव पंचकोशी परिक्रमा का समापन हो गया है. 20 नवंबर से शुरू हुए 5 दिनों तक चलने वाले पंचकोशी परिक्रमा मेले का चरित्रवन में लिट्टी-चोखा के भोग के साथ समापन हुआ. ठंड होने के बावजूद भी पंचकोशी परिक्रमा मेले में आए हजारों श्रद्धालु और संत समाज 5 दिनों तक मेले के भक्तिमय माहौल से आनंदित थे.

पुनर्जन्म से मिलती है मुक्ति: इस बाबत संत त्रिदंडी स्वामी गंगापुत्र ने बताया कि बक्सर के इस पंचकोशी परिक्रमा मेले के महत्व का वर्णन वराह पुराण के श्लोक एक से लेकर 197 श्लोक तक में विस्तृत रूप से हुआ है. यहीं नहीं श्रीमद्भागवत महापुराण में भी इसके महत्व की चर्चा खूब की गई है. जो भी श्रद्धालु पंचकोशी परिक्रमा करते हैं, उनका पुनर्जन्म नहीं होता है. पांच दिनों तक चलने वाले इस परिक्रमा मेले में बिहार ही नहीं उतर प्रदेश और झारखंड के भी हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं.

5 दिवसीय पंचकोशी परिक्रमा मेले का समापन (ETV Bharat)

श्रीराम ने भी की थी पंचकोशी परिक्रमा: पंचकोशी परिक्रमा मेले यात्रा को लेकर कहा जाता है कि त्रेता युग में भगवान राम उनके छोटे भाई लक्ष्मण, महर्षि विश्वामित्र के साथ बक्सर आए थे. उस समय बक्सर में ताड़का, सुबाहू, मारीच समेत कई राक्षसों का आतंक था. इन राक्षसों का वध कर भगवान राम ने महर्षि विश्वामित्र से यहां शिक्षा ग्रहण की थी. ताड़का वध करने के बाद भगवान राम ने नारी हत्या दोष से मुक्ति पाने के लिए प्रायश्चित्त स्वरूप अपने भ्राता लक्ष्मण और महर्षि विश्वामित्र के साथ यात्रा कर बक्सर के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित पांच ऋषियों के आश्रम गये और आशीर्वाद प्राप्त किए.

Panchkroshi Parikarma In Buxar
20 नवंबर को हुआ था पंचकोशी परिक्रमा मेला (ETV Bharat)

क्या है पौराणिक मान्यता?: कहा जाता है कि इस यात्रा के पहले पड़ाव में गौतम ऋषि के आश्रम अहिरौली भगवान राम पहुंचे. वहां पत्थर रूपी अहिल्या को अपने चरणों से स्पर्श कर उनका उद्धार किया. फिर उत्तरावाहिनी गंगा में स्नान कर पुआ-पकवान खाये. यात्रा के दूसरे पड़ाव में भगवान राम नारद मुनि के आश्रम नादांव पहुंचे, जहां सरोवर में स्नान करने के बाद सत्तू और मूली का उन्होंने भोग लगाया.

चूड़ा-दही और खिचड़ी का भी महत्व: इसी तरह तीसरे पड़ाव में भार्गव ऋषि के आश्रम भभुअर में चूड़ा-दही का भोग लगाया. मान्यता है कि चौथे पड़ाव में उद्दालक ऋषि के आश्रम नुआव में भगवान राम ने खिचड़ी और पांचवें और अंतिम पड़ाव में चरित्र वन में पहुंचकर लिट्टी चोखा का भोग लगाया. तभी से इस परंपरा का लोग निर्वहन करते आ रहे हैं. प्रत्येक साल अगहन महीने के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से इस यात्रा की शुरुआत होती है.

Panchkroshi Parikarma In Buxar
लिट्टी-चोखा तैयार करते श्रद्धालु (ETV Bharat)

पंचकोशी परिक्रमा के अंतिम दिन का महत्व: पंचकोशी परिक्रमा यात्रा में भाग लेने के लिए लाखों श्रद्धालु देश के कोने-कोने से बक्सर आते हैं. बता दें कि इस मेले के अंतिम दिन को लेकर मान्यता रही है कि अंतिम दिन प्रसाद अत्यंत पवित्र होता है, क्योंकि यह उस पवित्र धरती पर तैयार होता है. जिस वजह से अनन्त यज्ञ किये गए हैं. जिस धरा पर यज्ञ रक्षा के लिए श्री राम लक्ष्मण के कदम चलें और उनके चरणों की पवित्रता उसमें समाहित हुई.

Panchkroshi Parikarma In Buxar
बक्सर में पंचकोशी परिक्रमा मेला (ETV Bharat)

लिट्टी-चोखा के प्रसाद का समापन: मेले के बारे में कहा जाता है कि इस परिक्रमा मेला का अर्थ यह है कि अंतनिहिर्त भाव, संकल्प और इसी विश्वास के साथ पूर्ण होती है, पंचकोशी यात्रा. जो जीव के पांचों तत्वों को पवित्र करती है. पंचकोशी के अंतिम दिन पूरे बक्सर ,उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों बलिया और गाजीपुर के सहित पूरे इलाके में आज प्रत्येक घर में लिट्टी चोखा ही भोजन के रूप ग्रहण किया जाता है.

"वे बक्सर के पंचकोशी परिक्रमा मेला के महत्व के बारे में बहुत सुनी थी. इसलिए यहां आई हैं और खुशी है कि हमारी संस्कृति को हमारी परंपरा को लोग आज भी कायम रखें हैं. पंचकोशी की बड़ी महिमा है, इसलिए हमलोग उतना दूर होने के बाद भी प्रत्येक वर्ष आते हैं."- श्रद्धालु

ये भी पढ़ें: हजारों लोग यहां लिट्टी चोखा बनाने पहुंचते हैं, क्या आप इसके कारण को जानते हैं?

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