फतेहपुर: जनपद में शहर मुख्यालय से करीब 22 किमी दूर स्थित गाजीपुर से असोथर जाने वाले मार्ग पर स्थित है ‘श्री जागेश्वर महादेव मंदिर’. वैसे तो यहां वर्ष भर श्रद्धालु भोलेनाथ के दर्शन के लिए आते हैं. लेकिन, सावन माह और शिवरात्रि पर विशेष रूप से पहुंचते हैं. मंदिर के आसपास रहने वाले बुजुर्ग बताते हैं, कि यह मंदिर महाभारत कालीन है. कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव यहां पहुंचे थे, और उन्होंने इस मंदिर में शरण ली थी. यहां रुकने के दौरान वह इस शिवलिंग की पूजा-आराधना करते थे. तब से यह शिव मंदिर लोगों के बीच आस्था का केंद्र बना हुआ है. महाभारत कालीन यह शिव मंदिर अपने आप में अद्भुत है. सच्चे मन से इस मंदिर में स्थित शिवलिंग के दर्शन करने मात्र से भगवान शिव प्रत्येक भक्त की मनोकामना पूरी करते हैं.
मंदिर की स्थापना के बारे प्रचलित किदवंती के बारे में बुजुर्ग बताते हैं, कि द्वापर युग में भेड़ चराने के लिए भेड़ पालक जंगल गए थे. वहां वह अपने हंसिया से भेड़ों के लिए पत्ते काट रहे थे. इस दौरान उन्हें हंसिया में धार लगाने की आवश्यकता महसूस हुई. इस पर वह पास में पड़े पत्थर में हंसिया घिसकर धार लगाने लगे. धार लगाते समय अचानक उनका ध्यान पत्थर पर गया. उन्होंने देखा, कि यह सामान्य पत्थर नहीं था. यह तो शिवलिंग के आकार का था. वह तुरंत पत्थर से पीछे हटे, और उन्होंने इसकी सूचना गांव में दी. सूचना पर लोगों की भीड़ लग गई. पत्थर वास्तव में शिवलिंग था. खबर असोथर के तत्कालीन राजा तक पहुंची. इस पर राजा ने शिवलिंग को मंगाकर राजमहल के मंदिर में स्थापित करने की योजना बनाई.
हाथी की ताकत से भी नहीं निकला शिवलिंग: उसने सैनिकों को शिवलिंग लाने के लिए भेजा. सैनिक हाथी लेकर शिवलिंग लाने के लिए पहुंचे. उन्होंने हाथी की मदद से शिवलिंग को खींचने का प्रयास किया, लेकिन, हाथी शिवलिंग को टस से मस नहीं कर सका. इसके बाद सैनिक हाथी को लेकर वापस राजमहल की ओर लौट पड़े. रास्ते में झब्बापुर गांव के पास शिवलिंग खींचने वाले हाथी की मौत हो गई. संदेश राजा तक पहुंचा. इस पर राजा खुद वहां पहुंचे और इसके बाद उस हाथी को वहीं शिवलिंग के पास दफना दिया गया.
इसके बाद उस जगह पर आम की बाग लगा दी गई. वहां आज भी एक आम का पेड़ मौजूद है. इसे लोग हथिया आम के नाम से पुकारते हैं. लोगों ने अंदेशा लगाया, कि यह शिवलिंग पाताल से निकली है. शायद इसी वजह से हाथी भी टस से मस न कर सका. फिर उसी स्थान को मंदिर का रूप दे दिया गया. लोग शिवलिंग की लोग पूजा अर्चना करने लगे. तब से समय समय पर इसी स्थान पर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया.
स्थानीय लोगों ने बताया, कि 1950 में बाबू गोपी साहू ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करके भव्य स्वरूप दिया था. एक बार फिर इसकी प्राण प्रतिष्ठा कराई गई थी. मंदिर के गुंबद अशिखर के रूप में बनाए गए हैं. मंदिर के पुजारी रामेश्वर गोस्वामी ने बताया, कि ऐसी मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूरी करते हैं.
महाशिवरात्रि और सावन पर जागेश्वर धाम में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ लगती है. इस मौके पर यहां 15 दिन तक भव्य मेला लगता है. इसमें दूर-दूर से लोग दुकानें लगाने के लिए आते हैं. धीरे-धीरे इसकी महिमा का गुणगान सुन कर दूर-दराज से लोग दर्शन करने पहुंचते हैं, और शिवलिंग पर जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक करके बेल पत्र अपर्ति करते हैं. इस तरह वह भगवान शिव की कृपा कर पाते हैं. आसपास के जनपदों से भी लोग यहां दर्शन और पूजा को पहुंचते हैं.