गया: गर्मी का मौसम आते ही वाटर लेवल नीचे चला जाता है. आमलोगों के साथ किसान को भी काफी समस्या होती है. ऐसे में खेती काफी प्रभावित होती है. बिहार के गया में भी यही हाल है. यहां पानी की बड़ी समस्या है. पटवन के लिए किसानों को काफी परेशानी हो रही है. इसे देखते हुए गया जिले के किसान धान-गेहूं की पारंपरिक खेती छोड़कर कम पानी में उपजने वाले फसलों की खेती कर रहे हैं.
'वैकल्पिक खेती जरूरी': कृषि विभाग केंद्र द्वारा मोटे अनाज को उपजाने हेतु किसानों को लगातार प्रशिक्षण दिया जा रहा है. जिससे किसानों की आय में भी इजाफा हो रहा है. इस तरह की खेती कर किसान भी खुश हैं. किसानों की मेहनत का नतीजा है कि खेतों में मोटे अनाज का फसल लहलहा रहा है. मानपुर प्रखंड स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के प्रधान कृषि वैज्ञानिक मनोज कुमार राय ने बताया कि पानी की समस्या को लेकर वैकल्पिक खेती जरूरी है.
"गया जिले में पानी की काफी समस्या है. जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार पानी में कमी आ रही है. इसे देखते हुए गया जिले में पूर्व से होने वाली धान और गेहूं की खेती की जगह मोटे अनाज की खेती हेतु किसानों को प्रशिक्षित किया जा रहा है. मोटे अनाज में बाजारा, मड़वा, मक्का, सोयाबीन, मूंगफली आदि की खेती हेतु किसानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है." -मनोज कुमार राय, कृषि वैज्ञानिक
आमदनी में भी इजाफाः कृषि वैज्ञानिक ने बताया कि इन फसलों के उपजाने में पानी का बहुत ही कम उपयोग होता है. जबकि धान और गेहूं को उपजाने में पानी की खपत ज्यादा होती है. एक किलो धान उपजाने में 4 हजार लीटर पानी की आवश्यकता होती है. ऐसे में कम पानी में उपजने वाले फसलों की खेती हेतु किसानों को प्रेरित किया जा रहा है. इससे किसानों की आमदनी में भी इजाफा हो रहा है.
5 गांव में किसानों को प्रशिक्षणः मनोज कुमार राय के अनुसार सरकार के योजना के अनुसार गया जिले के 5 गांव में किसानों को मोटे अनाज उपजाने हेतु प्रशिक्षण दिया जा रहा है. जिसमें लगभग 500 से 600 किसान शामिल हैं. यही वजह है कि किसानों की खेतों में मोटे अनाज का फसल लहलहा रहा हैं. आने वाले समय में अन्य गांवों में भी इस योजना को लागू किया जाएगा.
दिया जा रहा प्रशिक्षणः रसलपुर पंचायत के किसान बसंत प्रसाद ने बताया कि वर्तमान समय में सरकार के जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के तहत मोटे अनाज की खेती कर रहे हैं. जिसमें काफी कम पानी में फसल की उपज होती है. पहले इस तरह के फसलों के उपजाने की जानकारी हमलोगों की नहीं थी लेकिन कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से कम पानी में फसलों के उपजाने हेतु प्रशिक्षण दिया गया.
"अब कम पानी में फसलों को हमलोग उपजा रहे हैं. इसमें नुकसान भी नहीं होता है. बरसात नहीं होने पर भी फसल अच्छी खासी हो रही है. इससे हमें मुनाफा भी ज्यादा हो रहा है. जीरो टिलेज के तहत हमलोग खेती कर रहे हैं. यानी अब बिना नुकसान खेती हो रही है." -बसंत प्रसाद, किसान, रसलपुर पंचायत.