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लोहरदगा में किसानों के चेहरों पर पीली सरसों ने लाई लालिमा, कम मेहनत में उगा रहे ज्यादा पैदावार - PREFERENCE TO MUSTARD CULTIVATION

लोहरदगा में किसान सरसों की खेती को बढ़ावा दे रहे हैं, क्योंकि इसमें कम मेहनत और ज्यादा मुनाफा है. इसके लिये सरकार भी मेहरबान है.

preference to mustard cultivation
लोहरदगा में सरसों की खेती (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Dec 7, 2024, 12:41 PM IST

लोहरदगा: मौसम आधारित खेती की वजह से किसानों को ज्यादातर नुकसान का ही सामना करना पड़ता है. विशेष तौर पर कृषि प्रधान क्षेत्र में जब बारिश नहीं होती है तो फसल को पानी नहीं मिल पाता है. ऐसी स्थिति में किसान आर्थिक और मानसिक परेशानी झेलते हैं. यही कारण है कि किसानों को अलग-अलग फसल लगाने की सलाह भी दी जाती है. लोहरदगा में सरसों की खेती किसानों के जीवन में खुशियों की बहार ला रही है. विशेष तौर पर पहाड़ी इलाकों में इसकी खेती को काफी बल मिला है. कम पानी में भी इसकी बेहतर पैदावार होती है.

कम मेहनत और ज्यादा मुनाफा

सरसों की खेती की सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें कम मेहनत, कम पानी और ज्यादा मुनाफा है. लोहरदगा जिला में हर साल औसतन 1000-1200 मिलीमीटर बारिश होती है. जिले में 55070 हेक्टेयर क्षेत्र कृषि योग्य भूमि है, जिसमें से 7752 हेक्टेयर सिंचित क्षेत्र है.

लोहरदगा में सरसों की खेती (ETV Bharat)

सब कुछ बारिश पर निर्भर

बारिश बेहतर हुई तो खेती भी बेहतर और नहीं हुई तो खेती बर्बाद. मौसम के आधार पर ही खेती निर्भर करती है. ऐसे में कई बार किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है. कम बारिश में खेती को हो रहे नुकसान की वजह से किसान खेती से दूर भाग रहे हैं. रबी के मौसम में तो खेती की हालत और भी खराब हो जाती है. ऐसे में किसानों के समक्ष कम सिंचाई में खेती को लेकर तिलहन एक बेहतर फसल के रुप में निकल कर सामने आई है.

सरकार ने भी सरसों की खेती को बढ़ावा दिया

किसानों को सरसों की खेती पसंद आ रही है. यही कारण है कि रबी के मौसम में गेहूं के बाद सरसों की खेती ही सबसे अधिक होती है. सबसे महत्वपूर्ण बात है कि सरकार सरसों की खेती को बढ़ावा दे रही है. लोहरदगा के कुडू में तेल उत्पादन केंद्र भी स्थापित किया गया है. जिससे किसानों को सरसों की बेहतर कीमत भी मिल पाएगी. इस बार लोहरदगा में तिलहन के कुल लक्ष्य 20000 हेक्टेयर में से 4308.15 हेक्टेयर में बुआई हुई है, जिसमें इस बार सरसों की खेती के लक्ष्य 17000 हेक्टेयर में से 3993 हेक्टेयर को कवर किया गया है.

लोहरदगा जैसे पहाड़ी क्षेत्र में सरसों की खेती किसानों के लिए काफी कारगर साबित हो रही है. कम बारिश में भी इसकी बेहतर खेती होती है. इसमें ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती. बहुत ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती. सबसे महत्वपूर्ण बात है कि मवेशी भी इस फसल को बर्बाद नहीं करते. धीरे-धीरे लोहरदगा में इसकी खेती अब बढ़ने लगी है.

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कम मेहनत और ज्यादा मुनाफा

सरसों की खेती की सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें कम मेहनत, कम पानी और ज्यादा मुनाफा है. लोहरदगा जिला में हर साल औसतन 1000-1200 मिलीमीटर बारिश होती है. जिले में 55070 हेक्टेयर क्षेत्र कृषि योग्य भूमि है, जिसमें से 7752 हेक्टेयर सिंचित क्षेत्र है.

लोहरदगा में सरसों की खेती (ETV Bharat)

सब कुछ बारिश पर निर्भर

बारिश बेहतर हुई तो खेती भी बेहतर और नहीं हुई तो खेती बर्बाद. मौसम के आधार पर ही खेती निर्भर करती है. ऐसे में कई बार किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है. कम बारिश में खेती को हो रहे नुकसान की वजह से किसान खेती से दूर भाग रहे हैं. रबी के मौसम में तो खेती की हालत और भी खराब हो जाती है. ऐसे में किसानों के समक्ष कम सिंचाई में खेती को लेकर तिलहन एक बेहतर फसल के रुप में निकल कर सामने आई है.

सरकार ने भी सरसों की खेती को बढ़ावा दिया

किसानों को सरसों की खेती पसंद आ रही है. यही कारण है कि रबी के मौसम में गेहूं के बाद सरसों की खेती ही सबसे अधिक होती है. सबसे महत्वपूर्ण बात है कि सरकार सरसों की खेती को बढ़ावा दे रही है. लोहरदगा के कुडू में तेल उत्पादन केंद्र भी स्थापित किया गया है. जिससे किसानों को सरसों की बेहतर कीमत भी मिल पाएगी. इस बार लोहरदगा में तिलहन के कुल लक्ष्य 20000 हेक्टेयर में से 4308.15 हेक्टेयर में बुआई हुई है, जिसमें इस बार सरसों की खेती के लक्ष्य 17000 हेक्टेयर में से 3993 हेक्टेयर को कवर किया गया है.

लोहरदगा जैसे पहाड़ी क्षेत्र में सरसों की खेती किसानों के लिए काफी कारगर साबित हो रही है. कम बारिश में भी इसकी बेहतर खेती होती है. इसमें ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती. बहुत ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती. सबसे महत्वपूर्ण बात है कि मवेशी भी इस फसल को बर्बाद नहीं करते. धीरे-धीरे लोहरदगा में इसकी खेती अब बढ़ने लगी है.

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