भरतपुर : भरतपुर का 'अपना घर आश्रम' कई सालों से कई बेसहारा लोगों का सहारा बन रहा है. यहां 6,480 निराश्रित हैं, जिन्हें आश्रम में प्रभुजन कहा जाता है. इनमें से अधिकतर मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं, जिन्हें सड़कों, रेलवे स्टेशनों, और सार्वजनिक स्थानों से लाकर आश्रम में रखा गया है. इस आश्रम की सबसे दुखद सच्चाई यह है कि इनमें से 1,220 प्रभुजन शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ हैं, फिर भी उनके परिजन उन्हें अपनाने को तैयार नहीं हैं.
सहारे की तलाश में आश्रम तक : आश्रम संस्थापक डॉ. बीएम भारद्वाज ने बताया कि यहां अधिकांश लोग मानसिक या शारीरिक रूप से लाचार होते हैं, लेकिन उनका परिवार या घर का पता भी नहीं होता. दूसरी ओर कई ऐसे लोग भी हैं, जो अब स्वस्थ हैं. अपने घर लौटना चाहते हैं, लेकिन उनके परिवारों ने उन्हें अपनाने से इनकार कर दिया है. आश्रम में इन लोगों की निस्वार्थ भाव से देखभाल, उपचार और सेवा की जाती है. साथ ही इन्हें घर और परिवार जैसा माहौल व अपनापन देने का भी प्रयास किया जाता है, ताकि इन्हें घर से दूर अपनों की कमी न महसूस हो.
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1220 प्रभुजन को अपनों का इंतजार : डॉ. भारद्वाज ने बताया कि आश्रम में रहने वाले 1,220 प्रभुजन, जिनमें 650 महिलाएं और बाकी पुरुष शामिल हैं, पूरी तरह स्वस्थ हैं. ये सभी अपने घर-परिवार का पता जानते हैं और उनसे जुड़ने के लिए आतुर हैं. जब इन लोगों के परिजनों से संपर्क किया जाता है, तो कोई बहाने बनाता है, कोई नंबर ब्लॉक कर देता है और कुछ फोन ही नहीं उठाते. कई मामलों में परिजन खुलकर मना कर देते हैं.
कुसुम जैन की कहानी : दिल्ली की कुसुम जैन पिछले 10 साल से आश्रम में रह रही हैं. तलाक के बाद माता-पिता ने उनको सहारा दिया, लेकिन उनके निधन के बाद कुसुम की मानसिक स्थिति बिगड़ गई. वह इन हालातों के चलते आश्रम आ गईं. अब पूरी तरह स्वस्थ होकर घर लौटना चाहती हैं, लेकिन अब उनके भाई और परिवार ने उन्हें अपनाने से इनकार कर दिया है. कुसुम को अब आश्रम ही अपना परिवार लगता है.
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भोपाल की नमिता दीक्षित की पीड़ा : भोपाल की नमिता दीक्षित, जो एक शिक्षित और कामकाजी महिला थीं, जॉब खोने के बाद मानसिक तनाव में आ गईं. परिवार ने उन्हें साथ रखने से मना कर दिया. सात साल पहले नमिता आश्रम पहुंचीं, जहां उनकी देखभाल और उपचार से वे स्वस्थ हो गईं. आज नमिता वापस भोपाल जाकर नौकरी करना चाहती हैं, लेकिन उनका परिवार उन्हें अपनाने के लिए तैयार नहीं हैं.
मानवता की दुहाई : डॉ. भारद्वाज ने समाज और परिजनों से अपील की है कि वे इन निराश्रितों को अपनाएं. त्याग और उपेक्षा की यह पीड़ा समाज के लिए शर्मिंदगी है. ये सभी अपनों के साथ रहेंगे तो ये ज्यादा खुश रहेंगे और परिवार को भी सहारा देंगे.