बगहा: 'इकोसिस्टम के नायक' माने जाने वाले गिद्ध विलुप्त होने की कगार पर हैं. जहां सफेद दुम वाले गिद्धों की संख्या में 99.9 परसेंट की गिरावट आई है, वहीं अन्य गिद्धों की आबादी में भी करीब 97 परसेंट की गिरावट दर्ज की गई है. दरअसल गिद्धों की प्रजनन दर बहुत धीमी होती है, इसलिए इनका संरक्षण और संख्या बढ़ाना मुश्किल है. ऐसे में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व से अच्छी खबर आई है.
स्पॉट हुआ गिद्धों का समूह: इन दिनों बगहा के गोनौली, चिऊटाहां और मदनपुर समेत बिहार यूपी सीमा से सटे कई इलाकों में भारी संख्या में गिद्ध देखने को मिले हैं. बता दें कि साल 2003 के बाद भारत समेत दुनिया भर से गिद्ध विलुप्त होते जा रहे हैं. इन गिद्धों का विलुप्त होना मनुष्य के लिए घातक साबित हो रहा है. क्योंकि गिद्ध प्राकृतिक तौर पर शिकारी पक्षी होते हैं और उन्हें स्वच्छता प्रहरी के तौर पर जाना जाता है.
ऐसे करते हैं इकोसिस्टम की मदद: गिद्धों का मुख्य भोजन मृत पशु होते हैं. हालांकि इनके नहीं रहने से अन्य शिकारी जानवर मृत पशुओं को अपना निवाला तो बनाते हैं लेकिन उनका पूरा मांस नहीं खा पाते है. दूसरी ओर गिद्धों का समूह एक जानवर के शव को लगभग 40 मिनट में पूरी तरह से चट कर सकता है. आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में 23 प्रजाति के गिद्ध पाए जाते हैं. गिद्धों की 9 प्रजातियां भारत में थी, जिसमें से ज्यादातर विलुप्त होने की कगार पर है.
गिद्धों के विलुप्त होने से 5 लाख लोगों की मौत: अब आलम यह है कि पिछले 30 सालों में करीब चार करोड़ गिद्धों की मौत हो चुकी है. यही वजह है कि अमेरिकन इकोनॉमिक एसोसिएशन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि, '' गिद्धों की मौत होने से घातक बैक्टीरिया और संक्रमण फैला है और इससे 5 सालों में करीब 5 लाख लोगों की मौत हो गई है.''
कैसे हो रही गिद्धों की मौत: वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के वन संरक्षक सह निदेशक डॉ नेशामणि बताते हैं कि वीटीआर के गोनौली, चिऊटाहां और मदनपुर वन क्षेत्र के कई इलाकों में गिद्धों की बहुत अच्छी जनसंख्या देखी गई है. ये इकोसिस्टम के लिए काफी महत्वपूर्ण और उपयोगी हैं. लेकिन जानवरों को डिक्लोफेनाक दवा दिए जाने के कारण इनकी मौत हो रही है.
इकोसिस्टम को बनाते हैं स्वच्छ: जिन इलाकों में गिद्धों को स्पॉट किया गया है वहां के किसानों और पशुपालकों को अपने जानवरों को डिक्लोफेनाक दवा नहीं खिलाने के लिए प्रेरित और जागरूक किया जा रहा है. क्योंकि गिद्ध एक मुर्दाखोर पक्षी है जो जंगलों में मृत जानवरों के अवशेषों और सड़े गले मांस को जल्दी से खा जाता है. जिस कारण मृत अवशेषों की दुर्गंध जंगल में नहीं फैलने पाती और इस प्रकार पूरा वातावरण और इकोसिस्टम स्वच्छ बना रहता है.
बनाया गया जटायु गिद्ध संरक्षण केंद्र: जब किसानों ने अपने मवेशियों का इलाज करने के लिए डिक्लोफेनाक का उपयोग शुरू किया था, तब इस दवा से मवेशी और मनुष्यों दोनों के लिए कोई खतरा नहीं था. हालांकि जो पक्षी डिक्लोफेनाक से उपचारित मरे हुए जानवरों को खाते थे उन पक्षियों की मौत होने लगी. डॉ नेशामणि के ने आगे बताया कि नेपाल सरकार ने गिद्धों के संरक्षण के लिए जटायु गिद्ध संरक्षण केंद्र बनाया है.
"हमारे वीटीआर में भी गिद्धों की अच्छी संख्या देखने को मिल रही है. लिहाजा वन विभाग भी हर तरह की कोशिश में जुटी है कि इन गिद्धों का संरक्षण किया जाए. जिससे हमारा इकोसिस्टम दुरुस्त रह सके और इसका प्रतिकूल प्रभाव इंसानों पर न पड़े."-डॉ नेशामणि के, वन संरक्षक सह निदेशक, वीटीआर
गिद्ध क्यों हैं खास: बता दें कि गिद्ध को दुनिया में सबसे ऊंचा उड़ने वाला पक्षी माना जाता है. साथ ही इसकी गिनती बदसूरत पक्षियों में भी होती है. हालांकि ये बदसूरत पक्षी पर्यावरण को स्वच्छ रखने की कुदरती कला में निपुण है. लिहाजा दुनिया भर में इनकी घटती संख्या चिंता का विषय है और इनको विलुप्त होने से बचाने के लिए वन एवं पर्यावरण विभाग तत्परता से जुटा हुआ है.