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क्या सत्ता में वापसी की गारंटी बनेंगे दलित वोटर्स? उत्तराखंड में जातिगत समीकरण का ये है गणित

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Feb 12, 2024, 11:30 AM IST

Updated : Feb 12, 2024, 2:40 PM IST

Dalit voters in Uttarakhand लोकसभा चुनाव 2024 का शंखनाद कभी भी हो सकता है. देश की दो प्रमुख पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस ने चुनाव जीतने के लिए अपने तरकश से सारे तीर आजमाने शुरू कर दिए हैं. ठाकुर और ब्राह्मण बाहुल्य उत्तराखंड राज्य में कांग्रेस की नजर दलित वोटर्स पर टिकी है. आरक्षण के शिगूफे के बीच आइए आपको बताते हैं उत्तराखंड में क्या है दलित वोटों का गणित.

Dalit voters in Uttarakhand
लोकसभा चुनाव 2024
उत्तराखंड का जातिगत समीकरण

देहरादून: उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दलों के बीच दलित वोटर्स को लेकर घमासान होता दिखने लगा है. दरअसल कांग्रेस ने हिंदुत्व का तोड़ जातिगत राजनीति में ढूंढ निकाला है. शायद यही कारण है कि राहुल गांधी ने हाल ही में आरक्षण की सीमा बढ़ाने का बयान देकर दलित समाज को टारगेट किया है.

दलित वोटर्स पर फोकस: उधर पीएम मोदी भी खुद इसका जवाब देने के लिए आगे आये हैं. ऐसे में राष्ट्रीय स्तर की इस राजनीति के बीच उत्तराखंड में दलित वोटर्स पर हो रहे फोकस और इसके प्रभाव की चर्चा होने लगी है. प्रदेश में दलित वोटर को लेकर क्या है समीकरण और लोकसभा की पांच सीटों पर इनका कितना प्रभाव पड़ेगा आइए इसकी पड़ताल करते हैं.

Dalit voters in Uttarakhand
उत्तराखंड में कौन कितने प्रतिशत?

लोकसभा चुनाव की रणनीति: लोकसभा चुनाव की दहलीज पर पहुंचकर राजनीतिक दल नए नए समीकरणों पर काम करने में जुटे हैं. भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व के रथ पर बैठकर जीत का स्वाद चखना चाहती है. कांग्रेस ने जाति विशेष पर फोकस कर क्षेत्रीय समीकरणों को भी साधने का प्रयास किया है. इस बीच दलित वोटर्स राजनीतिक दलों के केंद्र बिंदु बनने लगे हैं. हाल ही में राहुल गांधी का आरक्षण की सीमा बढ़ाने पर दिया गया बयान और लोकसभा सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आरक्षण को लेकर कांग्रेस पर हमलावर रुख इस बात के संकेत दे रहा है. उत्तराखंड के लिहाज से बात करें तो प्रदेश की पांच लोकसभा सीटों में भी दलित वोटर्स निर्णायक भूमिका में दिखाई देते हैं. प्रदेश में दलित वोटर्स को लेकर क्या हैं आंकड़े.

उत्तराखंड में दलित वोटर्स का आंकड़ा

  1. उत्तराखंड में दलित समाज की संख्या करीब 20% आकलन की गई है
  2. सबसे ज्यादा दलित वोटर्स हरिद्वार जिले में रहते हैं
  3. पांच लोकसभा सीट में से अल्मोड़ा की सीट आरक्षित है
  4. विधानसभा सीटों के लिहाज से राज्य में 13 सीटें हैं आरक्षित
  5. 22 विधानसभा सीटों में दलित वोटर्स निर्णायक भूमिका में मौजूद हैं
  6. 10 पर्वतीय जिलों में करीब 11 प्रतिशत दलित वोटर्स मौजूद
  7. राज्य में 3 मैदानी जिलों में 09 प्रतिशत दलित वोटर्स होने का है अनुमान

कांग्रेस को दलित वोटर्स पर भरोसा: आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस का मानना है कि इस बार दलित समाज उनका ही साथ देने वाला है. पार्टी के नेता दलित समाज के बीच अपना वोट खराब ना करते हुए समाज के हित के लिए कांग्रेस को वोट देने की अपील कर रहे हैं. पार्टी के नेता राजकुमार कहते हैं कि देश में मलिन बस्तियों के स्थायित्व के लिए कांग्रेस ने काम किया और कांग्रेस ही है जिसने दलितों को घर देने से लेकर उनसे जुड़ी तमाम योजनाओं को आगे बढ़ाने का काम किया है. लिहाजा कांग्रेस दलित समाज के बीच जाकर अपनी बात को मजबूत तरीके से रखेगी और आगामी चुनाव में दलित समाज का साथ हासिल करेगी.

राज्य में राजनीतिक रूप से जातिगत समीकरणों का यह है हाल: उत्तराखंड में वैसे तो राजनीति ठाकुर और ब्राह्मण पर ही केंद्रित दिखाई देती है. शायद यही कारण है कि राज्य स्थापना के बाद प्रदेश में मुख्यमंत्री के तौर पर ठाकुर और ब्राह्मण ही चुने जाते रहे हैं. प्रदेश में करीब 35% ठाकुर मौजूद हैं जबकि 26 फीसदी आबादी ब्राह्मणों की मानी जाती है. लेकिन राज्य में कुछ समीकरण ऐसे भी हैं जहां दलित समाज के लोग निर्णायक भूमिका में आ जाते हैं. कुछ यही बात राजनीतिक दल भी समझ रहे हैं. इसीलिए प्रदेश में आगामी लोकसभा चुनाव के लिए नए समीकरणों को तलाशा जा रहा है. खासतौर पर मैदानी जिलों में कांग्रेस के लिए जीत का रास्ता मुस्लिम और दलितों के संयुक्त वोट खोल सकते हैं. मैदानी जनपदों में ऐसी कई सीटें हैं, जहां इन दोनों ही समाज के वोटों की बदौलत जीत हासिल की जा सकती है.

Dalit voters in Uttarakhand
मतदाताओं का आंकड़ा

आरक्षण पर उलझी राजनीति: भारतीय जनता पार्टी पहले ही दलित समाज के चुनाव में अहम योगदान को समझ चुकी है. इसीलिए चुनाव से पहले ही पार्टी ने उत्तराखंड में अनुसूचित जाति के मंडल स्तरीय सम्मेलन को आयोजित करते हुए पार्टी के नेताओं को इस समीकरण पर काम करने के लिए सक्रिय कर दिया है. हाल ही में राहुल गांधी ने आरक्षण का मुद्दा उठाकर आरक्षण की सीमा को 50% से आगे बढ़ाने का बयान देकर बड़ा विवाद खड़ा कर दिया था. जाहिर है कि इसके जरिए आगामी लोकसभा चुनाव में बड़ा समर्थन हासिल करने की कोशिश की गई. भाजपा भी राहुल गांधी के बयान के निहितार्थ निकलने में जुटी रही और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके जवाब में लोकसभा सत्र के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की उन चिट्ठियों को पढ़ना जिसमें जवाहरलाल नेहरू ने आरक्षण के खिलाफ अपनी राय रखी थी.

क्या कहते हैं बीजेपी नेता: हालांकि इस मामले को लेकर पार्टी के विधायक विनोद चमोली कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलती है. कुल मिलाकर देखा जाए तो सरकार ने जो विभिन्न योजनाएं निकाली हैं या फिर जिन कार्यों को लेकर प्रयास किया जा रहा है, उनमें सबसे ज्यादा फायदा दलित समाज को ही मिल रहा है.
ये भी पढ़ें: भाजपा का गांव चलो अभियान, कमलेड़ी गांव में प्रवास करेंगे सीएम धामी
ये भी पढ़ें: दो दिवसीय दौरे पर उत्तराखंड पहुंचीं कांग्रेस प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा, बोलीं- हल्द्वानी के मामले पर सरकार को रहना था सतर्क

उत्तराखंड का जातिगत समीकरण

देहरादून: उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दलों के बीच दलित वोटर्स को लेकर घमासान होता दिखने लगा है. दरअसल कांग्रेस ने हिंदुत्व का तोड़ जातिगत राजनीति में ढूंढ निकाला है. शायद यही कारण है कि राहुल गांधी ने हाल ही में आरक्षण की सीमा बढ़ाने का बयान देकर दलित समाज को टारगेट किया है.

दलित वोटर्स पर फोकस: उधर पीएम मोदी भी खुद इसका जवाब देने के लिए आगे आये हैं. ऐसे में राष्ट्रीय स्तर की इस राजनीति के बीच उत्तराखंड में दलित वोटर्स पर हो रहे फोकस और इसके प्रभाव की चर्चा होने लगी है. प्रदेश में दलित वोटर को लेकर क्या है समीकरण और लोकसभा की पांच सीटों पर इनका कितना प्रभाव पड़ेगा आइए इसकी पड़ताल करते हैं.

Dalit voters in Uttarakhand
उत्तराखंड में कौन कितने प्रतिशत?

लोकसभा चुनाव की रणनीति: लोकसभा चुनाव की दहलीज पर पहुंचकर राजनीतिक दल नए नए समीकरणों पर काम करने में जुटे हैं. भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व के रथ पर बैठकर जीत का स्वाद चखना चाहती है. कांग्रेस ने जाति विशेष पर फोकस कर क्षेत्रीय समीकरणों को भी साधने का प्रयास किया है. इस बीच दलित वोटर्स राजनीतिक दलों के केंद्र बिंदु बनने लगे हैं. हाल ही में राहुल गांधी का आरक्षण की सीमा बढ़ाने पर दिया गया बयान और लोकसभा सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आरक्षण को लेकर कांग्रेस पर हमलावर रुख इस बात के संकेत दे रहा है. उत्तराखंड के लिहाज से बात करें तो प्रदेश की पांच लोकसभा सीटों में भी दलित वोटर्स निर्णायक भूमिका में दिखाई देते हैं. प्रदेश में दलित वोटर्स को लेकर क्या हैं आंकड़े.

उत्तराखंड में दलित वोटर्स का आंकड़ा

  1. उत्तराखंड में दलित समाज की संख्या करीब 20% आकलन की गई है
  2. सबसे ज्यादा दलित वोटर्स हरिद्वार जिले में रहते हैं
  3. पांच लोकसभा सीट में से अल्मोड़ा की सीट आरक्षित है
  4. विधानसभा सीटों के लिहाज से राज्य में 13 सीटें हैं आरक्षित
  5. 22 विधानसभा सीटों में दलित वोटर्स निर्णायक भूमिका में मौजूद हैं
  6. 10 पर्वतीय जिलों में करीब 11 प्रतिशत दलित वोटर्स मौजूद
  7. राज्य में 3 मैदानी जिलों में 09 प्रतिशत दलित वोटर्स होने का है अनुमान

कांग्रेस को दलित वोटर्स पर भरोसा: आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस का मानना है कि इस बार दलित समाज उनका ही साथ देने वाला है. पार्टी के नेता दलित समाज के बीच अपना वोट खराब ना करते हुए समाज के हित के लिए कांग्रेस को वोट देने की अपील कर रहे हैं. पार्टी के नेता राजकुमार कहते हैं कि देश में मलिन बस्तियों के स्थायित्व के लिए कांग्रेस ने काम किया और कांग्रेस ही है जिसने दलितों को घर देने से लेकर उनसे जुड़ी तमाम योजनाओं को आगे बढ़ाने का काम किया है. लिहाजा कांग्रेस दलित समाज के बीच जाकर अपनी बात को मजबूत तरीके से रखेगी और आगामी चुनाव में दलित समाज का साथ हासिल करेगी.

राज्य में राजनीतिक रूप से जातिगत समीकरणों का यह है हाल: उत्तराखंड में वैसे तो राजनीति ठाकुर और ब्राह्मण पर ही केंद्रित दिखाई देती है. शायद यही कारण है कि राज्य स्थापना के बाद प्रदेश में मुख्यमंत्री के तौर पर ठाकुर और ब्राह्मण ही चुने जाते रहे हैं. प्रदेश में करीब 35% ठाकुर मौजूद हैं जबकि 26 फीसदी आबादी ब्राह्मणों की मानी जाती है. लेकिन राज्य में कुछ समीकरण ऐसे भी हैं जहां दलित समाज के लोग निर्णायक भूमिका में आ जाते हैं. कुछ यही बात राजनीतिक दल भी समझ रहे हैं. इसीलिए प्रदेश में आगामी लोकसभा चुनाव के लिए नए समीकरणों को तलाशा जा रहा है. खासतौर पर मैदानी जिलों में कांग्रेस के लिए जीत का रास्ता मुस्लिम और दलितों के संयुक्त वोट खोल सकते हैं. मैदानी जनपदों में ऐसी कई सीटें हैं, जहां इन दोनों ही समाज के वोटों की बदौलत जीत हासिल की जा सकती है.

Dalit voters in Uttarakhand
मतदाताओं का आंकड़ा

आरक्षण पर उलझी राजनीति: भारतीय जनता पार्टी पहले ही दलित समाज के चुनाव में अहम योगदान को समझ चुकी है. इसीलिए चुनाव से पहले ही पार्टी ने उत्तराखंड में अनुसूचित जाति के मंडल स्तरीय सम्मेलन को आयोजित करते हुए पार्टी के नेताओं को इस समीकरण पर काम करने के लिए सक्रिय कर दिया है. हाल ही में राहुल गांधी ने आरक्षण का मुद्दा उठाकर आरक्षण की सीमा को 50% से आगे बढ़ाने का बयान देकर बड़ा विवाद खड़ा कर दिया था. जाहिर है कि इसके जरिए आगामी लोकसभा चुनाव में बड़ा समर्थन हासिल करने की कोशिश की गई. भाजपा भी राहुल गांधी के बयान के निहितार्थ निकलने में जुटी रही और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके जवाब में लोकसभा सत्र के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की उन चिट्ठियों को पढ़ना जिसमें जवाहरलाल नेहरू ने आरक्षण के खिलाफ अपनी राय रखी थी.

क्या कहते हैं बीजेपी नेता: हालांकि इस मामले को लेकर पार्टी के विधायक विनोद चमोली कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलती है. कुल मिलाकर देखा जाए तो सरकार ने जो विभिन्न योजनाएं निकाली हैं या फिर जिन कार्यों को लेकर प्रयास किया जा रहा है, उनमें सबसे ज्यादा फायदा दलित समाज को ही मिल रहा है.
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Last Updated : Feb 12, 2024, 2:40 PM IST
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