नई दिल्ली: रमजान के 65 से 70 दिन बाद ईद-उल-अजहा यानि बकरीद मनाई जाती है. इस साल बकरीद मंगलवार 18 जून को मनाई जाएगी. यह दिन कुर्बानी का होता है. इस्लाम में इस दिन दी जाने वाली कुर्बानी को बलिदान का प्रतीक माना जाता है. दिल्ली के जामा मस्जिद स्थित मीना बाजार के सामने बकरों का सबसे बड़ा बाजार सज गया है. यहां दिल्ली समेत आस-पास के शहरों से व्यापारी और खरीददार दोनों पहुंच रहे हैं. भीषण गर्मी के कारण मंडी में मौजूद व्यापारियों के लिए बकरों की देखभाल करना बेहद मुश्किल साबित हो रहा है.
बकरा व्यापरी जालिश अहमद ने बताया कि इस बार वह बाजार में 40 से 50 बकरे लेकर आये हैं, लेकिन बाजार की हालत बहुत खराब है. गर्मी के कारण बकरों को जीवित रखना भी मुश्किल हो गया है. बाजार में लाइट और पानी की व्यवस्था बेहद खराब है. एक किलोमीटर दूर से पानी लाते हैं, उसके लिए भी घंटों इंतज़ार करना पड़ता है. इतना ही नहीं, बकरों को नहलाने के लिए 20 रुपए प्रति बकरा चार्ज वसूला जा रहा है. रात भर लाइट नहीं होती. जालिश आगे बताते हैं कि वह बकरों को स्वस्थ रखने के लिए चना, गेहूं और हरे पत्ते खिला रहे हैं. इन सभी की कीमत भी काफी बढ़ गयी है.
बकरों को दिन में दो से तीन बार नहलाते हैं
एक अन्य विक्रेता आलम ने बताया कि बकरीद आने में महज़ कुछ ही दिन रह गए हैं. ऐसे में बकरों को गर्मी से बचाना बेहद जरूरी है. इसलिए वह अपने सभी बकरों को दिन में दो से तीन बार जरूर नहलाते हैं. उनके पास तोतापुरी नस्ल के बकरे हैं. इसको वह मेवात हरियाणा से लाए हैं.
गर्मी के कारण बकरों को जिन्दा रखना मुश्किल
1972 से मीना बाजार के बकरा मंडी में बकरों की बिक्री करने वाले हानिब कुरैशी ने बताया कि वह उत्तर प्रदेश के जिला बरेली के रहने वाले हैं. बीते 52 वर्षों से वह दिल्ली में बकरों का व्यापार कर रहे हैं. लेकिन इस बार बाजार में जो स्थिति है वैसी कभी नहीं दिखी. गर्मी के कारण बकरों को जिन्दा रखना मुश्किल हो रहा है. मंडी में मौजूद कमज़ोर इंसान और बकरे पानी के लिए तरस रहे हैं. वह बताते हैं कि कम से कम सरकार को अन्य राज्यों से आये लोगों का ध्यान रखना चाहिए. इतना ही नहीं बाजार में बकरों की चोरी का खतरा भी बढ़ गया है. रात भर खुद पहरा देना होता है. दिल्ली पुलिस का कोई सिपाही भी तैनात नहीं है.
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बकरा विक्रेता इक़बाल ने बताया कि गर्मी के कारण दोपहर में बहुत कम खरीदार नज़र आते हैं. शाम को बाजार में माहौल अच्छा होता है, लेकिन लाइट न होने के कारण व्यापार में मंदी है. इस बार हालत इतनी ख़राब है कि बाजार में मौजूद विक्रेताओं के लिए भी पानी की ठीक व्यवस्था नहीं है. बकरों को भी पानी पिलाना मुश्किल साबित हो रहा है.
मंडी में पानी बिजली की कोई व्यवस्था नहीं
बता दें कि मीना बाजार में हर साल 10-15 दिन पहले से बकरों की मंडी लग जाती है. कोविड-19 महामारी के दौरान दो साल तक बकरों की मंडी नहीं लगी थी. जामा मस्जिद के सामने बकरा व्यापारियों के करीब 30 डेरे लगे हैं. इस बार यहां न तो बकरों को गर्मी से बचाने के लिए पंखों की व्यवस्था है और न पर्याप्त पानी की. रात में बकरे और उनके मालिक अंधेरे और गर्मी में सोने को बेबस हैं. इस मंडी में अलवर, जोधपुर, जयपुर, बरेली, मुरादाबाद, मेरठ, रामपुर, पानीपत, सोनीपत और गुरुग्राम से बकरे आते हैं. साथ ही यहां सोजत, दुंबे, बागपत की नस्ल गंगापरी और हैदराबाद के बकरे भी हैं. जिन बकरों पर चांद-तारे या उर्दू में अल्लाह लिखा है, उसके दाम ज्यादा हैं. लोग दूर-दूर से ऐसे बकरों को देखने भी आ रहे हैं.
बरबरा नस्ल के बकरों की मांग
मंडी में मौजूद खरीदार इस्माइल ने बताया कि बीते 35 वर्षों से वह बरबरा नस्ल के बकरे को प्रमुखता देते आए हैं. बरबरा नस्ल के बकरों की खूबसूरती अलग होती है, उनके बाल सिल्की होते हैं. मुस्लिम समुदाय में बकरीद का विशेष महत्व है. हर कोई विशेष योजना के साथ बकरे खरीदने आता है इस बार गर्मी ज़्यादा है, जिस वजह से सभी चाह रहे हैं कि जल्दी क़ुरबानी का बकरा खरीद लिया जाये. बकरीद से पहले बकरे की देख रेख करना, उसको पालना अच्छा माना जाता है. इसलिए सभी कोशिश करते हैं कि जैसे ही बाजार में बकरों की अच्छी नस्ल मौजूद हो तभी खरीद लिए जाये.
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