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लोगों की थाली में कैमिकल फ्री दाल परोसने की कवायद, दलहन की प्राकृतिक खेती पर कृषि मंत्रालय का जोर, आईआईपीआर में बनेगा मॉडल खेत - Natural cultivation of pulses - NATURAL CULTIVATION OF PULSES

भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (आईआईपीआर) के कैंपस में वैज्ञानिक प्राकृतिक खेती कर दलहनी फसलें उगाने की तैयारी में हैं. देशभर के किसानों को खेती का तरीका जानने का मौका मिलेगा. लगातार तीन साल तक यह कवायद चलेगी. फिर कृषि मंत्रालय को पूरी रिपोर्ट भेजी जाएगी, संस्थान का जो है कैमिकल और पेस्टीसाइड्स से किसानों को दूर करना.

प्राकृतिक खेती की राह पर आईआईपीआर
प्राकृतिक खेती की राह पर आईआईपीआर (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 23, 2024, 7:22 PM IST

आईआईपीआर के निदेशक डॉ.जीपी दीक्षित (Video Credit; ETV Bharat)
कानपुर:
60 के दशक में शुरू हुई हरित क्रांति के कारण आज देश कृषि उपज में आत्मनिर्भर बन गया है. लेकिन हरित क्रांति के चलते मिट्टी का क्षरण, जैव विविधता की हानि, प्राकृतिक संसाधनों की कमी जैसे नुकसान भी बहुत अधिक देखने को मिल रहे हैं. जिसके चलते मिट्टी की उर्वरा शक्ति खत्म होने के साथ साथ केमिकल के अधिक इस्तेमाल से लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव देखने को मिल रहे हैं. जिसको देखते हुए एक बार फिर से प्राकृतिक खेती पर जोर दिया जाने लगा है. कानपुर स्थित भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान दलहन की प्राकृतिक खेती करने के लिए एक मॉडल खेत तैयार कर रहा है. जिसमें नेचुरल तरीके से दहलन की खेती करने पर रिसर्च किया जाएगा.

भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (आईआईपीआर) के वैज्ञानिकों ने जब कृषि मंत्रालय के अधिकारियों के साथ मिलकर कैमिकल्स और पेस्टीसाइड्स के दुष्प्रभावों पर चर्चा किया. जिसमें यह तय किया गया कि, प्राकृतिक खेती को ही अब बढ़ावा दिया जाएगा. भले ही फसलों का उत्पादन कम हो. ऐसे में आईआईपीआर के अंदर ही एक हेक्टेयर एरिया में पहली बार वैज्ञानिक मॉडल खेत तैयार करेंगे. एक महीने के अंदर ही यह कवायद शुरू हो जाएगी. पहली बार हैसा होगा, जब कैंपस के अंदर प्राकृतिक खेती कर दलहनी फसलों को उगाया जाएगा.

आईआईपीआर के निदेशक डॉ.जीपी दीक्षित ने बताया, कि संस्थान में देशभर के किसान संवाद के लिए जुटते हैं तो उनकी यह प्रतिक्रिया रहती है कि, कैमिकल्स, पेस्टीसाइड्स, डीएपी के इस्तेमाल से फसलों की पैदावार तो बंपर होती है. लेकिन, कहीं न कहीं गेहूं और धान के दानों में जो कैमिकल पहुंचता है, वह हमारे शरीर को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाता है. कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी में भी यह कारण सामने आ रहे हैं. इसलिए अब 50 साल पुरानी परंपरा की ओर लौटते हुए प्राकृतिक खेती पर जोर देना है. जब हम मॉडल खेत तैयार कर लेंगे, तो आने वाले समय में यहां जो किसान आएंगे वह भी खेत को देखते हुए खुद प्राकृतिक खेती कर सकेंगे.

यह भी पढ़ें : 'कंचन' से सोना उगलेंगे किसानों के खेत; कानपुर के वैज्ञानिकों ने खोजी काबुली चने की नई किस्म, प्रोटीन से भरपूर

आईआईपीआर के निदेशक डॉ.जीपी दीक्षित (Video Credit; ETV Bharat)
कानपुर: 60 के दशक में शुरू हुई हरित क्रांति के कारण आज देश कृषि उपज में आत्मनिर्भर बन गया है. लेकिन हरित क्रांति के चलते मिट्टी का क्षरण, जैव विविधता की हानि, प्राकृतिक संसाधनों की कमी जैसे नुकसान भी बहुत अधिक देखने को मिल रहे हैं. जिसके चलते मिट्टी की उर्वरा शक्ति खत्म होने के साथ साथ केमिकल के अधिक इस्तेमाल से लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव देखने को मिल रहे हैं. जिसको देखते हुए एक बार फिर से प्राकृतिक खेती पर जोर दिया जाने लगा है. कानपुर स्थित भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान दलहन की प्राकृतिक खेती करने के लिए एक मॉडल खेत तैयार कर रहा है. जिसमें नेचुरल तरीके से दहलन की खेती करने पर रिसर्च किया जाएगा.

भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (आईआईपीआर) के वैज्ञानिकों ने जब कृषि मंत्रालय के अधिकारियों के साथ मिलकर कैमिकल्स और पेस्टीसाइड्स के दुष्प्रभावों पर चर्चा किया. जिसमें यह तय किया गया कि, प्राकृतिक खेती को ही अब बढ़ावा दिया जाएगा. भले ही फसलों का उत्पादन कम हो. ऐसे में आईआईपीआर के अंदर ही एक हेक्टेयर एरिया में पहली बार वैज्ञानिक मॉडल खेत तैयार करेंगे. एक महीने के अंदर ही यह कवायद शुरू हो जाएगी. पहली बार हैसा होगा, जब कैंपस के अंदर प्राकृतिक खेती कर दलहनी फसलों को उगाया जाएगा.

आईआईपीआर के निदेशक डॉ.जीपी दीक्षित ने बताया, कि संस्थान में देशभर के किसान संवाद के लिए जुटते हैं तो उनकी यह प्रतिक्रिया रहती है कि, कैमिकल्स, पेस्टीसाइड्स, डीएपी के इस्तेमाल से फसलों की पैदावार तो बंपर होती है. लेकिन, कहीं न कहीं गेहूं और धान के दानों में जो कैमिकल पहुंचता है, वह हमारे शरीर को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाता है. कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी में भी यह कारण सामने आ रहे हैं. इसलिए अब 50 साल पुरानी परंपरा की ओर लौटते हुए प्राकृतिक खेती पर जोर देना है. जब हम मॉडल खेत तैयार कर लेंगे, तो आने वाले समय में यहां जो किसान आएंगे वह भी खेत को देखते हुए खुद प्राकृतिक खेती कर सकेंगे.

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