भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (आईआईपीआर) के वैज्ञानिकों ने जब कृषि मंत्रालय के अधिकारियों के साथ मिलकर कैमिकल्स और पेस्टीसाइड्स के दुष्प्रभावों पर चर्चा किया. जिसमें यह तय किया गया कि, प्राकृतिक खेती को ही अब बढ़ावा दिया जाएगा. भले ही फसलों का उत्पादन कम हो. ऐसे में आईआईपीआर के अंदर ही एक हेक्टेयर एरिया में पहली बार वैज्ञानिक मॉडल खेत तैयार करेंगे. एक महीने के अंदर ही यह कवायद शुरू हो जाएगी. पहली बार हैसा होगा, जब कैंपस के अंदर प्राकृतिक खेती कर दलहनी फसलों को उगाया जाएगा.
आईआईपीआर के निदेशक डॉ.जीपी दीक्षित ने बताया, कि संस्थान में देशभर के किसान संवाद के लिए जुटते हैं तो उनकी यह प्रतिक्रिया रहती है कि, कैमिकल्स, पेस्टीसाइड्स, डीएपी के इस्तेमाल से फसलों की पैदावार तो बंपर होती है. लेकिन, कहीं न कहीं गेहूं और धान के दानों में जो कैमिकल पहुंचता है, वह हमारे शरीर को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाता है. कैंसर जैसी लाइलाज बीमारी में भी यह कारण सामने आ रहे हैं. इसलिए अब 50 साल पुरानी परंपरा की ओर लौटते हुए प्राकृतिक खेती पर जोर देना है. जब हम मॉडल खेत तैयार कर लेंगे, तो आने वाले समय में यहां जो किसान आएंगे वह भी खेत को देखते हुए खुद प्राकृतिक खेती कर सकेंगे.