देहरादून (हिमांशु चौहान): भीख मांगने और कूड़ा बीनने के लिए मजबूर मासूमों के लिए जिला प्रशासन ने 'भिक्षा नहीं शिक्षा दो' नाम से एक विशेष अभियान चलाया है. इस अभियान के तहत इन बच्चों के हाथों में कलम और किताब दिखाई दे रही है. ऐसे बच्चों को जिला प्रशासन द्वारा साधु राम इंटर कॉलेज में बनाए गए इंटेंसिव केयर सेंटर में लाया जा रहा है. इस पहल का लक्ष्य बच्चों को शिक्षा और खेल से एक बेहतरीन भविष्य देना है.
अभी तक 23 से ज्यादा बच्चों का हुआ रेस्क्यू: अभियान के तहत अभी तक 23 से ज्यादा बच्चों को रेस्क्यू किया गया है. अब इन बच्चों को देहरादून स्थित साधुराम इंटर कॉलेज में स्थापित आधुनिक यूनिवर्सिटी केयर सेंटर में पढ़ाया जा रहा है. बच्चों को खेल के साथ-साथ शिक्षित किया जा रहा है. नौनिहालों का भी पढ़ाई में खूब मन लग रहा है.
फर्नीचर, खेल सामग्री और अन्य उपकरणों से सुसज्जित इस सेंटर में बच्चे ना केवल पढ़ाई में रुचि दिखा रहे हैं, बल्कि ड्राइंग, पेंटिंग और अन्य गतिविधियों में अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित कर रहे हैं. जो बच्चे गरीबी के कारण सड़कों पर भीख मांगते थे और कूड़ा-कबाड़ उठाते थे, अब वो किताब और पेंसिल के जरिए अपने सपनों को साकार कर रहे हैं. इस सेंटर में लगातार नए बच्चों को जोड़ा जा रहा है.
नई पहल से बच्चे खुश: स्कूल में पढ़ने आ रहे कुछ बच्चों ने बातचीत में बताया कि वो पहले कूड़ा बीनने व गंगा में सिक्के खोजने का काम करते थे. वहां से उनको रेस्क्यू कर इस सेंटर में लाया गया. अब यहां पर अच्छा लग रहा है. यहां अंग्रेजी, गणित, हिंदी का पाठ पढ़ाया जा रहा है. अब वो आगे पढ़ाई जारी रखेंगे.
भीख मांगने और कूड़ा बीनने वाले बच्चे हो रहे शिक्षित: इस पहल को लेकर जिलाधिकारी सविन बंसल ने बताया कि बच्चे राज्य और देश का भविष्य हैं. भीख मांगने और कूड़ा बीनने वाले बच्चों को सेंटर में ले जाकर खेलकूद और पढ़ाई कराई जा रही है. बच्चों को यहां खाना भी दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि बच्चों में पढ़ने और खेलकूद की रुचि देखी जा रही है. हमें उम्मीद है कि बच्चे पढ़ाई करेंगे. इसके बाद इन बच्चों का स्कूलों में दाखिला करा दिया जाएगा. बच्चों की पढ़ाई का खर्च जिला प्रशासन वहन करेगा.
डीएम सविन बंसल के अनुसार, बच्चों को लाने और घर छोड़ने के लिए दो गाड़ियों की व्यवस्था की गई है. ये गाड़ियां इन बच्चों को उनके घरों से इंटेंसिव केयर सेंटर लेकर आती हैं और पढ़ाई के बाद शाम को इन्ही गाड़ियों से सभी बच्चों को घर छोड़ा जाता है.
पढ़ाई में बच्चों का खूब लग रहा मन: अध्यापक रामलाल ने बताया कि जितने भी बच्चे उनके पास पहुंच रहे हैं, वो सभी बाहरी बच्चे हैं और पढ़ाई में उनका खूब मन लग रहा है. ये पहल ना केवल बच्चों को सड़क से स्कूल तक लाने में सफल हो रही है, बल्कि आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बनाने की दिशा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. उन्होंने कहा कि सेंटर में बच्चे अब विभिन्न स्कूली गतिविधियां जैसे खेल और मनोरंजन में हिस्सा बनकर अपनी छिपी क्षमताओं को निखार रहे हैं. यह प्रयास उनकी सोच और जीवन शैली में सकारात्मक बदलाव ला रही है. बच्चे भी पढ़ाई में खूब दिलचस्पी दिखा रहे हैं.
बच्चों में देखा जा रहा बदलाव: शिक्षक रवीना लंबा ने बताया कि शुरुआती में कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ा है, लेकिन अब एक महीने बाद बच्चे सीख रहे हैं और इनमें अनुशासन भी आ रहा है और बदलाव भी देखने को मिल रहा है. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह पहल ना केवल बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ा रही है, बल्कि प्रेरणा का काम भी कर रही है.
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