शिमला: हर राज्य के लिए वित्त आयोग की सिफारिशें अहम रोल रखती हैं. वित्त आयोग की सिफारिशों के बाद ही राज्यों को रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट यानी आरडीजी मिलती है. इस बार 16वें वित्त आयोग की रिपोर्ट आने के बाद अगले साल से उनकी सिफारिशें लागू होंगी. हिमाचल के नजरिए से देखें तो विगत एक दशक तो आरडीजी के लिहाज से अच्छा रहा है, लेकिन अब मुसीबत पेश आ रही है. कारण ये है कि पंद्रहवें वित्त आयोग के आखिरी साल यानी 2025 में हिमाचल की इस साल की आरडीजी सिर्फ 3257 करोड़ रुपये रह गई है.
यानी एक महीने में सिर्फ 271 करोड़ रुपये से कुछ अधिक ही रकम मिलेगी. ये वित्त वर्ष अप्रैल से शुरू होगा. इससे पहले हिमाचल को वर्ष 2024 में 520 करोड़ रुपये प्रति माह आरडीजी मिल रही थी. टेपर फार्मूला यानी क्रमबद्ध तरीके से तय फार्मूले के तहत ग्रांट साल दर साल कम होती है. अब आखिरी साल में ये 3257 करोड़ रुपये रह जाएगी फिर 16वें वित्तायोग की सिफारिशों पर फोकस रहेगा.
राज्य सरकार ने इसके लिए अभी से कवायद शुरू कर दी है. वित्त विभाग के आला अफसर केंद्र के संबंधित मंत्रालय के साथ संपर्क में हैं और राज्य सरकार का प्रयास है कि आने वाले पांच साल के लिए उन्हें अच्छी आरडीजी मिले.
पांच साल में आरडीजी के ये रहे आंकड़े
यदि 15वें वित्त आयोग की बात की जाए तो हिमाचल को उसकी सिफारिशों के बाद 37,199 करोड़ रुपये के करीब रकम मिली थी. ये वर्ष 2021-22 से 2025-26 के लिए पांच साल की रकम थी. टेपर फार्मूला लागू होने के बाद ये क्रमश: हर साल कम होती जाती है. इसके अनुसार वित्त वर्ष 2021-22 में हिमाचल को केंद्र से 10,249 करोड़ रुपये मिले थे. यानी हर महीने 854 करोड़ रुपये के करीब रुपए मिले थे. इस पैसे से वेतन का खर्च काफी हद तक पूरा हो जाता था. फिर अगले साल यानी 2022-23 में ये आरडीजी 9377 करोड़ रुपए रह गई. यानी हर महीने 781 करोड़ रुपये से कुछ ही अधिक मिलते थे. राज्य सरकार को इससे भी काफी सहारा मिलता था. अगले वित्त वर्ष यानी 2023-24 में ये घटकर 8058 करोड़ रुपये रह गई. हिसाब लगाएं तो एक महीने में 671.50 करोड़ रुपये. वर्ष 2024-25 में ये 6258 करोड़ रुपये थी. यानी एक महीने में 521 करोड़ रुपये के करीब. अब इस साल पहली अप्रैल से जो वित्त वर्ष शुरू होगा, उसमें ये आरडीजी महज 3257 करोड़ रुपये ही होगी.
क्या है राजस्व घाटा अनुदान?
एक राज्य के पास कितना राजस्व जुटता है और उसका खर्च क्या होता है? फिर उस राज्य के राजस्व यानी रेवेन्यू और खर्च यानी एक्सपेंडिचर के बीच जो अंतर होता है, उसकी भरपाई के लिए केंद्र राज्यों को आरडीजी यानी रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट देती है. केंद्रीय वित्त मंत्रालय के तहत एक एक्सपेंडिचर विभाग होता है. ये विभाग नियमों के मुताबिक सभी राज्यों को अनुदान जारी करता है. हिमाचल जैसा छोटा राज्य, जिसके खुद के आर्थिक संसाधन सीमित हैं, वो अधिकांशत केंद्र की मदद पर निर्भर रहता है. इस बार 16वें वित्त आयोग की टीम ने सबसे पहले जून 2024 में हिमाचल का दौरा किया था. तब राज्य के वित्त विभाग ने टीम के समक्ष जो मेमोरेंडम दिया था, उसमें हिमाचल की कमजोर आर्थिक स्थिति का हवाला दिया था. तब सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा था कि राज्य को लिए गए कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए भी लोन लेना पड़ रहा है. हिमाचल के बजट का एक बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन और पेंशनर्स की पेंशन पर खर्च हो जाता है. इन दो मदों पर हिमाचल के बजट का 42 प्रतिशत के करीब हिस्सा लग जाता है.
इस साल ही आएंगी 16वें वित्त आयोग की सिफारिशें
खैर, 16वें वित्त आयोग को इसी साल 31 अक्टूबर तक अपनी सिफारिशें देनी हैं. फिर राज्यों के लिए ये सिफारिशें अप्रैल 2026 से लागू होंगी. ऐसे में हिमाचल सरकार के वित्त विभाग के अधिकारी ये प्रयास कर रहे हैं कि हिमाचल को आरडीजी के मोर्चे पर अच्छी रकम की सिफारिश हो जाए.
वेतन व पेंशन की टेंशन, डीए-एरियर की तो बात ना पूछो
हिमाचल की आर्थिक स्थिति कमजोर है. इस साल कर्ज का आंकड़ा एक लाख करोड़ रुपये पार कर जाएगा. राज्य को हर महीने अपने कर्मियों के वेतन पर 1200 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं. पेंशन का बिल ही 800 करोड़ रुपये है. इस तरह हर महीने 2000 करोड़ रुपये इन्हीं दो मदों में चाहिए. इधर, आठ हजार करोड़ रुपये से अधिक की नए वेतन आयोग के एरियर की देनदारी है. फिर 11 फीसदी डीए भी पेंडिंग है. कर्मचारी अपने डीए व एरियर की मांग कर रहे हैं. ऐसे में यदि आने वाले पांच साल के लिए राज्य को अच्छी आरडीजी ना मिली तो आर्थिक हालात और खराब होंगे.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
राज्य के पूर्व वित्त सचिव केआर भारती का कहना है "आरडीजी तो केंद्र से तय नियमों के अनुसार ही मिलती है. ये सही है कि पहले हिमाचल को एक दशक में अच्छी खासी रकम मिली है, लेकिन टेपर फार्मूले के तहत ये निरंतर कम होती चली गई है. विधानसभा में भी इस मसले पर व्यापक चर्चा हो चुकी है. अब राज्य की नजरें 16वें वित्त आयोग की सिफारिशों पर हैं."
आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ राजीव सूद का कहना है "जब तक हिमाचल अपने संसाधन नहीं बढ़ाएगा और आय के नए स्रोत नहीं तलाश करेगा, तब तक संकट टलेगा नहीं". वरिष्ठतम मीडिया कर्मी बलदेव शर्मा मानते हैं "राज्य आर्थिक दुष्चक्र में फंस चुका है. इससे बाहर निकलने के लिए एक नहीं अनेक स्तरों पर प्रयास करने होंगे."
पिछली भाजपा सरकार की गलत नीतियों ने प्रदेश की आर्थिक स्थिति को बुरी तरह कमजोर कर दिया था। हमारी सरकार ने दिन-रात मेहनत कर प्रदेश को मजबूती और विकास की नई राह पर आगे बढ़ाया है।
— Sukhvinder Singh Sukhu (@SukhuSukhvinder) December 10, 2024
BJP के पांच गुटों में मचा घमासान इस बात का सबूत है कि उनके एजेंडे में कभी हिमाचल का विकास था ही नहीं।… pic.twitter.com/6q7pj9cDP2
सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू कह चुके हैं कि इस स्थिति के लिए पूर्व की भाजपा सरकार जिम्मेदार है. सीएम सुक्खू ने मानसून सेशन में विधानसभा में कहा था "जब पूर्व में हिमाचल रेवेन्यू सरप्लस था तो उस समय जयराम सरकार ने कर्मचारियों की देनदारी नहीं दी." वहीं, नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर का कहना है "वर्तमान सरकार ने दो साल में ही इतना लोन ले लिया है, जितना उनकी सरकार ने पांच साल में भी नहीं लिया था."
सुक्खू जी आपकी कांग्रेस सरकार ने बीते 2 वर्ष में जो कर्ज लिया है उसका हिसाब कब दोगे?
— BJP Himachal Pradesh (@BJP4Himachal) January 30, 2025
पूछता है हिमाचल.. pic.twitter.com/UwInZGsvnH
खैर, कर्ज को लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर हिमाचल में निरंतर चला आया है. अब देखना है कि 16वें वित्तायोग की सिफारिशों में हिमाचल के लिए आरडीजी के मोर्चे पर सुख की खबर आती है या नहीं.
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