अररिया: बिहार के अररिया के भौगोलिक मिजाज सूबे के सभी जिलों से अलग है. यहां पिछले तीन साल से स्ट्रॉबेरी की खेती की जा रही है. अररिया प्रखंड के हडियाबाड़ा पंचायत के किसान अब्दुल रहमान स्ट्रॉबेरी की खेती कर जिले में एक नई पहचान बनाई है. स्ट्रॉबेरी से लाखों की कमाई कर रहे हैं. यहां के लोग दार्जिलिंग और महाराष्ट्र और का नहीं बल्कि अपने ही जिले के स्ट्रॉबेरी का स्वाद ले रहे हैं.
दो बीघा में स्ट्रॉबेरी की खेती: स्ट्रॉबेरी की खेती आमतौर पर ठंडे इलाकों में की जाती है. भारत में कई राज्य जैसे नैनीताल, देहरादून, हिमाचल प्रदेश महाराष्ट्र के महाबलेश्वर, नीलगिरी, दार्जिलिंग आदि जगहों पर स्ट्रॉबेरी की खेती व्यावसायिक तौर पर की जाती है. अगर अररिया में स्ट्रॉबेरी किये जाने की बात सुनेंगे तो अचरज जरूर होगा. लेकिन ये हकीकत है. ऐसा ही स्ट्रॉबेरी की सफल खेती अररिया प्रखंड के हडियाबाड़ा पंचायत में हो रहा है.
रोज तोड़े जा रहे 50 से 60 किलो स्ट्रॉबेरी : अब्दुल रहमान का मानना है कि स्ट्रॉबेरी खेती सिर्फ दो बीघा में कर उससे 50 से 60 किलो रोजाना फल तोड़े जा रहे हैं. इस खेती से साल में लाखों की कमाई हो रही है. बाजार में डब्बा पैक 400 रुपये प्रति किलोग्राम आसानी से बिक रहा है. वहीं दूसरी जगह से उपजाये गए स्ट्रॉबेरी और अररिया के फल में काफी अंतर है. क्योंकि यहां का फल काफी बड़ा है. स्ट्रॉबेरी की खेती को अब दूसरे जिले से भी लोग आकर देख रहे हैं.
स्ट्रॉबेरी बिकते देख आया आइडिया: स्ट्रॉबेरी की खेती की शुरुआत तीन वर्ष पहले अररिया शहर के आज़ाद नगर निवासी अब्दुल रहमान ने की. अब्दुल रहमान ने बताया कि मैंने स्ट्रॉबेरी को सिर्फ बड़े शहरों के बाजार में ही बिकते देखा था. मुझमें इसकी खेती करने की लालसा जगी. फिर मैंने एनएच 57 पर टोल प्लाजा के करीब दो बीघे में करने की शुरुआत की. इसकी खेती के लिए काफी जानकारी इकट्ठा की और स्ट्रॉबेरी की खेती की शुरुआत कर दी.
स्ट्रॉबेरी ने बदली तकदीर : किसान अब्दुल रहमान कि "महाराष्ट्र के पूणे से स्ट्रॉबेरी के पौधे को मंगाया और खेती शुरू हो गई. अब्दुल रहमान ने बताया कि इसकी खेती में डेढ़ से दो लाख रुपये प्रति बीघा खर्च आता है. पौधा लगाने के ढाई से तीन महीने बाद स्ट्रॉबेरी तैयार होता है. पैदावार अच्छी हुई तो साल में दो बीघे में लाखों रुपये की आमदनी होती है." स्ट्रॉबेरी की खेती अररिया के मौसम के लिए काफी उपयुक्त है और ये काफी फायदे की खेती है.
रासायनिक खाद नहीं के बराबर: किसान अब्दुल रहमान ने बताया कि स्ट्रॉबेरी के खेती के लिए चिकनी मिट्टी की आवश्यकता होती है. खेती के पहले खाद के रूप में मिट्टी में कंपोस्ट और वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग किया जाता है. रासायनिक खाद में सिर्फ डीएपी पौधों में डाला जाता है. इससे स्ट्रॉबेरी का फल काफी आकर्षक होता है. फल जितने बड़े और गहरे लाल रंग का होगा उसकी कीमत बाजार में अच्छी मिलती है.
"मैंने भी छोटे पैमाने पर स्ट्रॉबेरी की खेती की है. यहां आकर मुझे खेती को देखकर काफी अच्छा लगा है. मेरी कोशिश होगी कि मैं भी बड़े पैमाने पर स्ट्रॉबेरी की खेती करूं." -नजीबुर रहमान, किसान, समस्तीपुर
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