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दिल्ली में महंगाई की मार झेल रहे रावण के पुतले बनाने वाले कारोबारी - Dussehra 2024

Dussehra 2024: तातारपुर रावण के पुतलों के लिए मशहूर है. लेकिन इस बार रावण कारोबारी महंगाई और पटाखों के प्रतिबंध से परेशान हैं.

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Oct 5, 2024, 2:08 PM IST

नई दिल्ली: दशहरा, जिसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक त्योहार है. यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और रावण का पुतला जलाना इस पर्व की एक पुरानी परंपरा है. वेस्ट दिल्ली के ततारपुर में एशिया का सबसे बड़ा रावण पुतला बाजार है, जहां कारीगर दिन-रात एक करके रावण के विशाल पुतले तैयार करते हैं. लेकिन इस वर्ष महंगाई और पटाखों पर लगाए गए प्रतिबंध ने इस परंपरा को गंभीर संकट में डाल दिया है.

महंगाई का असर: इस वर्ष रावण के पुतले बनाने वाले कारीगरों का कहना है कि महंगाई ने उनके कारोबार को बुरी तरह प्रभावित किया है. पिछले साल के मुकाबले बांस, कागज और तार जैसे सामग्रियों के दाम दोगुने हो चुके हैं. इस कारण पुतले बनाने का खर्च भी बढ़ गया है जो अंततः उनके मुनाफे को कम कर रहा है. कई कारीगरों ने बताया है कि इस साल पुतलों की बिक्री में उम्मीद के मुताबिक उत्साह नहीं दिखाई दे रहा है, जिसके चलते उन्हें काफी चिंता हो रही है.

महंगाई की मार झेल रहे रावण कारोबारी (ETV Bharat)

पटाखों पर प्रतिबंध: पटाखों पर लगाया गया प्रतिबंध भी इस परंपरा की चमक को घटा रहा है. ट्रेडर्स और कारीगरों का मानना है कि पटाखों के बिना रावण जलाने का अनुभव अधूरा होता है. रावण के पुतले जलाने का उत्सव पटाखों के शोर से भरा होता है, और यह संपूर्ण अनुभव का एक अभिन्न हिस्सा होता है. लेकिन अब यह चिंता बढ़ रही है कि रावण के जलने पर उत्सव का आनंद कैसे लिया जाएगा.

यह भी पढ़ें- झंडेवालान मंदिर में नवरात्रि के तीसरे दिन हुई मां चंद्रघंटा की पूजा, देखिए तस्वीरें

व्यापार के आयाम: ततारपुर का रावण पुतला बाजार, जो पहले विदेशों में भी निर्यात किया जाता था, अब केवल दिल्ली-एनसीआर तक सीमित रह गया है. यहां पुतले 5 फुट से लेकर 60 फीट तक के आकार में तैयार किए जाते हैं, लेकिन इस साल मांग बहुत कम है. स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि यदि यही स्थिति रही, तो आने वाले वर्षों में यह परंपरा भी संकट में पड़ सकती है.

बढ़ती महंगाई और पटाखों पर प्रतिबंध केवल रावण के पुतला बनाने वाले कारोबारी ही नहीं, बल्कि आम लोगों को भी परेशान कर रहा है. लोग सरकार की नीतियों पर सवाल उठा रहे हैं कि आखिरकार जब सामान्य मौकों पर प्रतिबंध टूट जाते हैं, तो धार्मिक पर्वों पर ही क्यों उनका पालन किया जाता है. दशहरे का त्योहार बुराई के प्रतीक रावण को जलाने का है, लेकिन इस बार ये संपूर्ण परंपरा अनेक चुनौतियों का सामना कर रही है. रावण जलाने का कार्यक्रम अब केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक चिंताओं का केंद्र बन चुका है.

यह भी पढ़ें- नवरात्र के तीसरे दिन मंदिरों में मां चंद्रघंटा की पूजा, उमड़े श्रद्धालु

नई दिल्ली: दशहरा, जिसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक त्योहार है. यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और रावण का पुतला जलाना इस पर्व की एक पुरानी परंपरा है. वेस्ट दिल्ली के ततारपुर में एशिया का सबसे बड़ा रावण पुतला बाजार है, जहां कारीगर दिन-रात एक करके रावण के विशाल पुतले तैयार करते हैं. लेकिन इस वर्ष महंगाई और पटाखों पर लगाए गए प्रतिबंध ने इस परंपरा को गंभीर संकट में डाल दिया है.

महंगाई का असर: इस वर्ष रावण के पुतले बनाने वाले कारीगरों का कहना है कि महंगाई ने उनके कारोबार को बुरी तरह प्रभावित किया है. पिछले साल के मुकाबले बांस, कागज और तार जैसे सामग्रियों के दाम दोगुने हो चुके हैं. इस कारण पुतले बनाने का खर्च भी बढ़ गया है जो अंततः उनके मुनाफे को कम कर रहा है. कई कारीगरों ने बताया है कि इस साल पुतलों की बिक्री में उम्मीद के मुताबिक उत्साह नहीं दिखाई दे रहा है, जिसके चलते उन्हें काफी चिंता हो रही है.

महंगाई की मार झेल रहे रावण कारोबारी (ETV Bharat)

पटाखों पर प्रतिबंध: पटाखों पर लगाया गया प्रतिबंध भी इस परंपरा की चमक को घटा रहा है. ट्रेडर्स और कारीगरों का मानना है कि पटाखों के बिना रावण जलाने का अनुभव अधूरा होता है. रावण के पुतले जलाने का उत्सव पटाखों के शोर से भरा होता है, और यह संपूर्ण अनुभव का एक अभिन्न हिस्सा होता है. लेकिन अब यह चिंता बढ़ रही है कि रावण के जलने पर उत्सव का आनंद कैसे लिया जाएगा.

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व्यापार के आयाम: ततारपुर का रावण पुतला बाजार, जो पहले विदेशों में भी निर्यात किया जाता था, अब केवल दिल्ली-एनसीआर तक सीमित रह गया है. यहां पुतले 5 फुट से लेकर 60 फीट तक के आकार में तैयार किए जाते हैं, लेकिन इस साल मांग बहुत कम है. स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि यदि यही स्थिति रही, तो आने वाले वर्षों में यह परंपरा भी संकट में पड़ सकती है.

बढ़ती महंगाई और पटाखों पर प्रतिबंध केवल रावण के पुतला बनाने वाले कारोबारी ही नहीं, बल्कि आम लोगों को भी परेशान कर रहा है. लोग सरकार की नीतियों पर सवाल उठा रहे हैं कि आखिरकार जब सामान्य मौकों पर प्रतिबंध टूट जाते हैं, तो धार्मिक पर्वों पर ही क्यों उनका पालन किया जाता है. दशहरे का त्योहार बुराई के प्रतीक रावण को जलाने का है, लेकिन इस बार ये संपूर्ण परंपरा अनेक चुनौतियों का सामना कर रही है. रावण जलाने का कार्यक्रम अब केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक चिंताओं का केंद्र बन चुका है.

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