बेगूसराय: बेगूसराय का बखरी जिसे तंत्र-मंत्र जादू टोना की नगरी माना जाता है, यहां दुर्गा पूजा का अपना खास महत्त्व है. बखरी बजार के बीच में अवस्थित बखरी शक्ति पीठ दुर्गा मंदिर में इस बार लोग केदार नाथ मंदिर के स्वरूप का दर्शन कर सकेंगे. इसको लेकर केदार नाथ मंदिर का भव्य मॉडल बन कर तैयार हो चुका. जो बखरी ही नहीं बेगूसराय जिला के लोगो के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.
आरती के लिए वाराणसी से आए पंडा: इस शक्ति पीठ में दुर्गा पूजा की शुरुआत से ही हजारों हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन को आ रहे हैं. खास तौर पर शाम में होने वाले आरती के समय यहां का नजारा बेहद खास होता है. वाराणसी से आए पंडा के द्वारा संध्या आरती में दूर दूर से लोग शामिल होते हैं. जिससे यहां का नजारा देखने लायक होता है. बखरी सदियों से तंत्र साधना का बड़ा केंद्र रहा है, जहां दूर-दूर से लोग दुर्गा पूजा मे तंत्र साधना की सिद्धि के लिए आते हैं.
बखरी और तंत्र साधना की कहानी: बखरी के संदर्भ में आज भी एक कहावत मशहूर है की कभी यहां की लड़कियां भी डायन हुआ करती थी. माना जाता है कि मुगल काल से यहां दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई थी, जो वक्त के साथ अपनी श्रद्धा और भव्यता के लिए सभी जगह मशहूर है. मध्य प्रदेश के परमार वंश के धार नगरी के राजा द्वारा यहां दुर्गा पूजा की शुरुआत सबसे पहले की गई थी.
इस मंदिर को प्रप्त है शक्तिपीठ का दर्जा: ऐसा माना जाता है कि यहां मांगी गई मन की हर मुराद पूरी होती है. इस शक्ति पीठ में अष्टमी के दिन तंत्र साधक अपनी साधना के लिय आते हैं. जादू टोने के लिए प्रसिद्ध बहुरा मामा की इस धरती पर इस मंदिर को शक्तिपीठ का दर्जा प्राप्त है. ऐसे बखरी मुख्यालय में मां दुर्गा के तीन मंदिर स्थापित हैं.
कहां के कारीगरों ने बनाया केदारनाथ थीम पंडाल: दुर्गा पूजा के अवसर पर ऊंचे ऊंचे आकर्षक तोरण द्वारों, भव्य पंडालों और उसकी सजावट मन को मोहने वाली है. इस बार शक्ति पीठ का पंडाल देश के नामचीन मंदिर केदारनाथ की तर्ज पर बनाया गया है, जो काफी आकर्षक लग रहा है. इसे देखकर लोग यकीन नहीं कर पा रहे हैं कि यह केदार नाथ का मंदिर नहीं है. इसका निर्माण बंगाल से आए कारीगरों द्वारा किया गया है.
दूर-दूर से आते हैं तंत्र साधक: मंदिर की विशेषता यह है की यह मंदिर तंत्र-मंत्र की सिद्धि और मनोकामना पूर्ति के लिए आसपास के राज्यों के साथ पड़ोसी देशों में भी प्रसिद्ध है. यहां हर साल दूर-दूर से साधक आते हैं. महाअष्टमी को ही माता को छप्पन प्रकार का भोग लगाया जाता है. नवरात्र में नौ दिनों तक वाराणसी के अस्सी घाट के पंडितों द्वारा यहां महा आरती होती है. परमार वंश के अमित परमार बताते हैं कि इस मंदिर का इतिहास सैकड़ो साल पुराना है. यहां माता हमेशा विराजमान रहती हैं. महाअष्टमी की रात तंत्र साधक सिद्धि के लिय आते है.
"इस मंदिर का निर्माण मुगल काल से पहले परमार वंश के द्वारा किया गया था, वह परंपरा आज भी जीवित है. यहां साधक पूरे साल जो पूजापाठ तंत्र-मंत्र करते है उसकी सिद्धि के लिय अष्टमी के दिन खास तौर पर आते है. आरती के लिए वाराणसी के गंगा घाट पर बनाए गए मंच की तर्ज पर मंदिर परिसर में मंच तैयार किए गए हैं."-अमित परमार, सदस्य, परमार वंश
मुगल काल से पहले हुआ मंदिर का निर्माण: वहीं इस संबंध मे पूजा समिति के सचिव तारानंद सिंह कहते हैं कि पुराने दुर्गा मंदिर का निर्माण मुगल काल से पहले हुआ था. यह आस्था का बड़ा केंद्र है जो सिद्ध दुर्गा शक्ति पीठ है. यहां जो भी श्रद्धालु आते है उनकी मनोकामना पूरी होती है.
"हम लोग मात्र कर्ता धर्ता हैं, यहां सब कुछ मां की कृपा से होता है. वर्तमान मे मंदिर को तोड़ दिया गया है, जिसके बनाने की प्रक्रिया जारी है. इस बार मंदिर की कमेटी ने पंडाल को केदार नाथ मंदिर के तर्ज पर बनाने का निर्णय लिया था."-तारा नंद सिंह, सचिव
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