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हाईकोर्ट की फटकार के बाद एक्शन में पेयजल विभाग के सचिव, जांच करने साहिबगंज पहुंची टीम - Urban water supply scheme - URBAN WATER SUPPLY SCHEME

Urban water supply schemes in Sahibganj. शहरी जलापूर्ति योजना को लेकर हाईकोर्ट ने पेयजल विभाग के सचिव को फटकार लगाई. जिसके बाद सचिव के निर्देश पर एक टीम जांच करने साहिबगंज पहुंची. टीम ने यहां योजना से संबंधित पूरी जानकारी ली.

Urban water supply scheme
जांच करने पहुंचे अधिकारी (ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Sep 4, 2024, 10:48 PM IST

साहिबगंज : शहरी जलापूर्ति योजना पर हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया है. 12 साल बाद भी लोगों को पीने का पानी नहीं मिल रहा है. हाईकोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पेयजल विभाग के सचिव मस्त राम मीणा को फटकार लगाई है. उन्हें पूरी जानकारी के साथ 10 सितंबर को फिर उपस्थित होने को कहा है. इधर, योजना का कितना क्रियान्वयन धरातल पर हुआ है, सचिव के निर्देश पर इसकी जांच के लिए बुधवार को चार सदस्यीय टीम पहुंची है.

मुख्य अभियंता (पीएमयू) अनिल कुमार की अध्यक्षता में टीम ने पीएचईडी विभाग के अभियंत्रण विभाग के कांफ्रेंस हॉल में बैठकर योजना का जायजा लिया. नक्शा निकाला और देखा कि कहां और कितने किलोमीटर पाइप बिछाई गई है और कहां बाकी है. योजना का कितना प्रतिशत काम हुआ है या योजना कब तक पूरी होगी, इसकी भी जांच की गई. विभाग के अभियंता से सभी बातों पर चर्चा की गई और वे रिपोर्ट तैयार करने में जुटे रहे.

जिला पेयजल आपूर्ति विभाग को दो जगहों पर रेलवे लाइन क्रॉसिंग को लेकर मालदा डिवीजन से एनओसी नहीं मिली है. कारण यह है कि विभाग की ओर से रेलवे को राशि जमा नहीं की गई. पहला रेलवे क्रॉसिंग साहिबगंज स्टेशन के सामने है. दूसरा टोंगा स्टैंड पार करने के बाद पुराना फादी होते हुए पुरानी क्रॉसिंग से झरना कॉलोनी तक पानी की पाइप लाइन डालनी है.

क्या कहते हैं अधिकारी

पीएचईडी अधिकारी गोविंद कच्छप ने बताया कि सचिव के आदेश पर वे देर शाम तक भुगतान की प्रक्रिया में जुटे रहे. साहिबगंज स्टेशन के सामने के लिए 1.06 करोड़ और झरना कॉलोनी के लिए 26 लाख का भुगतान होना था. कुछ तकनीकी समस्या के कारण देर शाम तक भुगतान हो पाया.

गौरतलब है कि शहरी पेयजल आपूर्ति योजना की शुरुआत 2012 में हुई थी. इस काम को करने के लिए दोशियान कंपनी को दिया गया था. 70 फीसदी काम पूरा करने के बाद इसमें और समय लग गया. जिसके बाद विभाग की ओर से इसे ब्लैक लिस्टेड कर दिया गया.

दूसरी बार जब टेंडर हुआ तो परमार कंस्ट्रक्शन को मिला. 22 करोड़ की लागत से इसे पूरा करना था, इस कंपनी को ठेका मिलने के बाद कोरोना के दौरान दो साल तक कोई काम नहीं हुआ. इस योजना में हो रही देरी को देखते हुए शहर के समाजसेवी सिद्धेश्वर मंडल ने दो बार हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. दूसरी बार 2018 में याचिका दायर की गई थी. हाईकोर्ट ने इस मामले का संज्ञान लिया है. इसमें कहा गया है कि पेयजल की व्यवस्था करना लोगों का मौलिक अधिकार है.

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साहिबगंज : शहरी जलापूर्ति योजना पर हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया है. 12 साल बाद भी लोगों को पीने का पानी नहीं मिल रहा है. हाईकोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पेयजल विभाग के सचिव मस्त राम मीणा को फटकार लगाई है. उन्हें पूरी जानकारी के साथ 10 सितंबर को फिर उपस्थित होने को कहा है. इधर, योजना का कितना क्रियान्वयन धरातल पर हुआ है, सचिव के निर्देश पर इसकी जांच के लिए बुधवार को चार सदस्यीय टीम पहुंची है.

मुख्य अभियंता (पीएमयू) अनिल कुमार की अध्यक्षता में टीम ने पीएचईडी विभाग के अभियंत्रण विभाग के कांफ्रेंस हॉल में बैठकर योजना का जायजा लिया. नक्शा निकाला और देखा कि कहां और कितने किलोमीटर पाइप बिछाई गई है और कहां बाकी है. योजना का कितना प्रतिशत काम हुआ है या योजना कब तक पूरी होगी, इसकी भी जांच की गई. विभाग के अभियंता से सभी बातों पर चर्चा की गई और वे रिपोर्ट तैयार करने में जुटे रहे.

जिला पेयजल आपूर्ति विभाग को दो जगहों पर रेलवे लाइन क्रॉसिंग को लेकर मालदा डिवीजन से एनओसी नहीं मिली है. कारण यह है कि विभाग की ओर से रेलवे को राशि जमा नहीं की गई. पहला रेलवे क्रॉसिंग साहिबगंज स्टेशन के सामने है. दूसरा टोंगा स्टैंड पार करने के बाद पुराना फादी होते हुए पुरानी क्रॉसिंग से झरना कॉलोनी तक पानी की पाइप लाइन डालनी है.

क्या कहते हैं अधिकारी

पीएचईडी अधिकारी गोविंद कच्छप ने बताया कि सचिव के आदेश पर वे देर शाम तक भुगतान की प्रक्रिया में जुटे रहे. साहिबगंज स्टेशन के सामने के लिए 1.06 करोड़ और झरना कॉलोनी के लिए 26 लाख का भुगतान होना था. कुछ तकनीकी समस्या के कारण देर शाम तक भुगतान हो पाया.

गौरतलब है कि शहरी पेयजल आपूर्ति योजना की शुरुआत 2012 में हुई थी. इस काम को करने के लिए दोशियान कंपनी को दिया गया था. 70 फीसदी काम पूरा करने के बाद इसमें और समय लग गया. जिसके बाद विभाग की ओर से इसे ब्लैक लिस्टेड कर दिया गया.

दूसरी बार जब टेंडर हुआ तो परमार कंस्ट्रक्शन को मिला. 22 करोड़ की लागत से इसे पूरा करना था, इस कंपनी को ठेका मिलने के बाद कोरोना के दौरान दो साल तक कोई काम नहीं हुआ. इस योजना में हो रही देरी को देखते हुए शहर के समाजसेवी सिद्धेश्वर मंडल ने दो बार हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. दूसरी बार 2018 में याचिका दायर की गई थी. हाईकोर्ट ने इस मामले का संज्ञान लिया है. इसमें कहा गया है कि पेयजल की व्यवस्था करना लोगों का मौलिक अधिकार है.

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