भीलवाड़ा: एक दशक पहले दीवाली पर उद्योगपति, व्यवसायी व दुकानदार बही खाते में लेखा-जोखा रखते थे, लेकिन अब डिजिटल युग में बहीखाते का चलन कम हो गया है. पहले दिवाली पर बहियां खूब बिकती थी, अब इनकी बिक्री नाम मात्र की रह गई है. वर्तमान में दीपावली की पूजन के दिन सिर्फ एक बही खाता ही शगुन के रूप पूजा के लिए लेते हैं.
वस्त्रनगरी भीलवाड़ा में तमाम उद्योगपति और व्यवसायी दीपावली से पूर्व हाथ से बने बही-खाते खरीदकर उसकी पूजा करते थे. उसके बाद उसी में पूरे वर्ष के लेनदेन का हिसाब रखते थे, लेकिन वह बीते दौर की बात हो गई. अब सारा काम डिजिटल में आ गया. बिक्री कम होने से भीलवाड़ा में बही- खाता विक्रेताओं के चेहरे पर मायूसी देखने को मिल रही है. पहले दीपावली के एक माह पहले ही बहीखातों की दुकान लग जाती थी, लेकिन वर्तमान में ना के बराबर बिक्री हो रही है.
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अब लैपटॉप की करते हैं पूजा: बही खाता विक्रेता अंकुश जैन ने कहा कि दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन के समय हाथ बही खातों को काफी उपयोग में लेते थे, जहां पुराने खाते की जगह नए बही- खाते डालकर हिसाब रखा जाता था. अब वर्तमान डिजिटल युग में बही-खाते केवल शगुन के रूप में काम लिए जाते हैं. यहां तक कि कई व्यापारी लैपटॉप की पूजा करते हैं.
अब शगुन के रूप में लेते हैं: बही-खातों के होलसेल विक्रेता सुमित ने कहा कि डिजिटल युग में बही खातों की बिक्री बहुत कम हो गई. पहले बड़े लेजर, रजिस्टर व बही खातों की बिक्री होती थी. अब स्याही वाले पेन की जगह बॉलपेन का उपयोग ले रहे हैं. सिर्फ शगुन के रूप में बही खाता लिया जाता है. वर्तमान में सारा हिसाब-किताब कंप्यूटर से हो रहा है. बही खाता व्यवसाय पर पहले की तुलना में 90 प्रतिशत प्रभाव पड़ा है.
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90 प्रतिशत डिजिटल हो गया हिसाब किताब: भीलवाड़ा पेट्रोल डीजल ऐसोसिएशन के अध्यक्ष ईश्वर खोईवाल ने कहा कि डिजिटल युग से हिंदुस्तान ही नहीं, पूरे विश्व में काफी प्रभाव पड़ा है 90% लोग डिजिटल माध्यम से कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल के माध्यम से हिसाब करते हैं. डिजिटल युग के कारण ही बही खाते की बिक्री कम हो गई है, ग्रामीण क्षेत्र में जरूर कुछ बही खातों का चलन है.