कांकेर: कांकेर जिले के अंदरूनी गांवों में अब डिजिटल क्रांति शुरू हो चुकी है. नेटवर्क कनेक्टिविटी अब इन गांवों तक पहुंच रही है. एक समय था जब लोगों को आधार कार्ड, पैन कार्ड से लेकर एक फोटो कॉपी कराने के लिए जिला मुख्यालय और ब्लॉक मुख्यालय जाना पड़ता था. ग्रामीण मीलों दूर का सफर कर अपना काम कराते थे.
पैसे निकालने के लिए भी ग्रामीणों को मीलों दूर सफर कर जिला मुख्यालय बैंक आना पड़ता था, लेकिन अब दूरस्थ क्षेत्र में नेटवर्क कनेक्टविटी आने से गांव में ही पैन, आधार कार्ड से लेकर मनी ट्रांसफर तक की सुविधा गांव वाले कर रहे हैं.
गांव के युवक ने खोला डिजिटल केन्द्र: हम बात कर रहे हैं कांकेर जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर बांस कुंड गांव की. ये गांव एक समय में नक्सलियों का गढ़ कहा जाता था. हालांकि धीरे-धीरे से गांव नक्सल मुक्त हो गया. अब इस गांव में नेटवर्क कनेक्टिविटी आई. गांव के ही एक युवा पवन उईके ने एक छोटे से कच्चे मकान में डिजिटल केंद्र खोल लिया. इस केन्द्र के खुलने से गांव वालों की कई समस्याएं खत्म हो गई.
"मैं कॉलेज में पढ़ाई कर रहा हूं. दो महीने पहले मैंने गांव में डिजिटल केंद्र खोला है. पहले ग्रामीणों को फोटो कॉपी, पैन, आधार कार्ड, पासपोर्ट फोटो, फोटोकॉपी कराने जिला मुख्यालय या फिर ब्लॉक मुख्यालय जाना पड़ता था. इतना ही नहीं पैसे निकालने और बिजली बिल, टीवी रिचार्ज तक करने के लिए ग्रामीणों को मशक्कत करना पड़ता था. मैंने सोचा गांव में ही एक डिजिटल केंद्र खोल कर ग्रामीणों की समस्याओं का समाधान करूं. इससे मुझे फायदा भी होगा. इसीलिए मैंने ये डिजिटल केंद्र खोला.आज आस-पास के 5 गांवों के लोग यहां आते हैं." -पवन उईके, गांव का युवक
ग्रामीणों को हुआ फायदा: इस बारे में गांव के उप सरपंच सगनू राम कहते हैं कि, "एक फोटो कॉपी कराने के लिए पहले 20 से 30 किमी जाना पड़ता था. बिजली बिल पटाने के लिए भी ऐसे ही मीलों सफर करना पड़ता था, लेकिन अब बिजली बिल पटाने से लेकर पासपोर्ट फोटो भी यहीं बन जा रहा है. इस दुकान के खुलने से ग्रामीणों को काफी सहूलियत हुई है."
यानी कि कांकेर जिले के दूरस्थ अंचल बासकुंड गांव के पवन उईके के डिजिटल केंद्र खोलने से न सिर्फ पवन को बल्कि गांव के लोगों को भी काफी लाभ हुआ. कांकेर के अधिकतर अंदरूनी गांवों में ऐसे डिजिटल केंद्र हैं. इससे ग्रामीणों को डिजिटल क्रांति से जोड़ कर डिजिटल काम आसान हो रहा है.