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एनआईसीयू की कमी के चलते अति गंभीर नवजातों के इलाज में दिक्कत, लखनऊ में सिर्फ इस अस्पताल में मैटरनल आईसीयू की सुविधा

केजीएमयू और डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में ही निओनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 2 hours ago

मातृ एवं शिशु रेफरल अस्पताल
मातृ एवं शिशु रेफरल अस्पताल (Photo credit: ETV Bharat)

लखनऊ : राजधानी के दो बड़े चिकित्सा संस्थानों में रोजाना अतिगंभीर (जो स्वत सांस न ले पाते हों) स्थिति में दो दर्जन ऐसे नवजात शिशु आते हैं, जिनका इलाज अन्य किसी भी सरकारी अस्पताल में उपलब्ध नहीं है. बेड की समस्या के चलते किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) और डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में बच्चों को भर्ती करने में काफी समस्या का सामना करना पड़ता है. निओनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) की कमी के चलते बच्चों को इलाज नहीं मिल पाता है. जिससे मौत भी हो जाती है.

ऐसे बच्चों को पड़ती है एनआईसीयू की आवश्यकता : मातृ एवं शिशु रेफरल अस्पताल के एमएस डॉ. श्रीकेश सिंह ने बताया कि अस्पताल में तमाम व्यवस्थाएं हैं. अति गंभीर मरीजों को देखा जाता है. खासकर प्रीमेच्योर बेबी में कई बार उनके शरीर का कोई अंग विकसित नहीं होने पर नवजात का इलाज यहां होता है. इसके अलावा जन्म के तुरंत बाद रोया न हो, पेट में गंदा पानी पहुंच जाने से गंभीर संक्रमण, कम वजन के बच्चे, जन्मजात हृदय रोग, फेफड़ों में संक्रमण या जो जन्म के समय बीमार होते हैं और श्वांस नहीं ले पाते हैं, उनके लिए एनआईसीयू किसी वरदान से कम नहीं है.

मातृ एवं शिशु रेफरल अस्पताल की विभागाध्यक्ष डॉ. नीतू सिंह ने बताया कि प्रदेश भर से आने वाली गर्भवती महिलाओं का प्रसव यहां होता है. मरीज का ओवरलोड अधिक रहता है. रेफरल केसों की संख्या अधिक होती है. डॉ. राम मनोहर लोहिया संस्थान में छह बेड का एनआईसीयू है. 6 से 12 बेड एसएनसीयू के हैं. एनआईसीयू के बेड कम हैं, इसलिए खाली होने पर तुरंत मरीज को भर्ती किया जाता है. सामान्यतः रोजाना 20 से 25 बच्चे आते हैं, इनमें से कुल चार-पांच बच्चे भर्ती होते हैं.


क्वीन मेरी महिला अस्पताल, केजीएमयू की विभागाध्यक्ष डॉ. अंजू ने कहा कि अस्पताल में नियोनेटल यूनिट (एनएनयू) में चार वेंटीलेटर हैं, यहां पर क्वीन मेरी में ही जन्मे बच्चे भर्ती किए जाते हैं, इसके अलावा ट्राॅमा सेंटर में 52 बेड एनआईसीयू में रोजाना मुश्किल से तीन से चार बच्चे ही भर्ती हो पाते हैं.

वीरांगना अवंतीबाई महिला चिकित्सालय में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सलमान का कहना है कि सरकारी अस्पतालों के स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में अब विकल्प के रूप में सी पैप (कंटीन्यूअस पॉजिटिव एयर प्रेशर) की उपलब्धता कराई जा रही है, लेकिन अतिगंभीर बच्चों को मेडिकल कॉलेज भेजा जाता है. एनआईसीयू में अत्याधुनिक चिकित्सकीय उपकरण और प्रशिक्षित स्टाफ होते हैं जो शिशुओं की 24 घंटे विशेष निगरानी रखते हैं.

शहीद पथ स्थित मातृ एवं शिशु रेफरल अस्पताल से अपने बच्चे का इलाज करा रहे तीमारदार देवरिया के हरि ओम मिश्रा और बाराबंकी की मोहनी ने बताया कि यहां पर इलाज बहुत अच्छा होता है. खासकर पेडियाट्रिक्स के डॉ. श्रीकेश सिंह बहुत अच्छे से ओपीडी में देखते हैं और उन्होंने बच्चे का ऑपरेशन करने की सलाह दी थी. उन्होंने ऑपरेशन किया, यहां का इलाज बहुत अच्छा है. यहां के डॉक्टरों ने हमारे बच्चों की जान बचाई है.


एनएचएम अधिकारी डॉ. सूर्यांश ओझा ने बताया कि राज्य के सरकारी अस्पतालों में करीब 100 एसएनसीयू स्थापित हैं, जिले की मांग के अनुरूप 10 बेड से लेकर 30 बेड तक की सुविधा उपलब्ध है. राजधानी में छह बड़े सरकारी अस्पतालों में एसएनसीयू हैं. वेंटीलेटर के विकल्प में सरकारी अस्पतालों की एसएनसीयू में सी पैप मशीन उपलब्ध कराई गई है. अस्पताल पहुंचने वाले हर बच्चे को पर्याप्त इलाज उपलब्ध है.

यह भी पढ़ें : कुपोषित बच्चों का इलाज : लखनऊ के लोहिया अस्पताल में तैयार हो रही अलग यूनिट, जानें खासियत - Treatment of malnourished children

यह भी पढ़ें : लोहिया संस्थान का कोविड अस्पताल बंद, अब रेफरल हॉस्पिटल में होगा गर्भवती और बच्चों का इलाज

लखनऊ : राजधानी के दो बड़े चिकित्सा संस्थानों में रोजाना अतिगंभीर (जो स्वत सांस न ले पाते हों) स्थिति में दो दर्जन ऐसे नवजात शिशु आते हैं, जिनका इलाज अन्य किसी भी सरकारी अस्पताल में उपलब्ध नहीं है. बेड की समस्या के चलते किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) और डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में बच्चों को भर्ती करने में काफी समस्या का सामना करना पड़ता है. निओनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (एनआईसीयू) की कमी के चलते बच्चों को इलाज नहीं मिल पाता है. जिससे मौत भी हो जाती है.

ऐसे बच्चों को पड़ती है एनआईसीयू की आवश्यकता : मातृ एवं शिशु रेफरल अस्पताल के एमएस डॉ. श्रीकेश सिंह ने बताया कि अस्पताल में तमाम व्यवस्थाएं हैं. अति गंभीर मरीजों को देखा जाता है. खासकर प्रीमेच्योर बेबी में कई बार उनके शरीर का कोई अंग विकसित नहीं होने पर नवजात का इलाज यहां होता है. इसके अलावा जन्म के तुरंत बाद रोया न हो, पेट में गंदा पानी पहुंच जाने से गंभीर संक्रमण, कम वजन के बच्चे, जन्मजात हृदय रोग, फेफड़ों में संक्रमण या जो जन्म के समय बीमार होते हैं और श्वांस नहीं ले पाते हैं, उनके लिए एनआईसीयू किसी वरदान से कम नहीं है.

मातृ एवं शिशु रेफरल अस्पताल की विभागाध्यक्ष डॉ. नीतू सिंह ने बताया कि प्रदेश भर से आने वाली गर्भवती महिलाओं का प्रसव यहां होता है. मरीज का ओवरलोड अधिक रहता है. रेफरल केसों की संख्या अधिक होती है. डॉ. राम मनोहर लोहिया संस्थान में छह बेड का एनआईसीयू है. 6 से 12 बेड एसएनसीयू के हैं. एनआईसीयू के बेड कम हैं, इसलिए खाली होने पर तुरंत मरीज को भर्ती किया जाता है. सामान्यतः रोजाना 20 से 25 बच्चे आते हैं, इनमें से कुल चार-पांच बच्चे भर्ती होते हैं.


क्वीन मेरी महिला अस्पताल, केजीएमयू की विभागाध्यक्ष डॉ. अंजू ने कहा कि अस्पताल में नियोनेटल यूनिट (एनएनयू) में चार वेंटीलेटर हैं, यहां पर क्वीन मेरी में ही जन्मे बच्चे भर्ती किए जाते हैं, इसके अलावा ट्राॅमा सेंटर में 52 बेड एनआईसीयू में रोजाना मुश्किल से तीन से चार बच्चे ही भर्ती हो पाते हैं.

वीरांगना अवंतीबाई महिला चिकित्सालय में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सलमान का कहना है कि सरकारी अस्पतालों के स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में अब विकल्प के रूप में सी पैप (कंटीन्यूअस पॉजिटिव एयर प्रेशर) की उपलब्धता कराई जा रही है, लेकिन अतिगंभीर बच्चों को मेडिकल कॉलेज भेजा जाता है. एनआईसीयू में अत्याधुनिक चिकित्सकीय उपकरण और प्रशिक्षित स्टाफ होते हैं जो शिशुओं की 24 घंटे विशेष निगरानी रखते हैं.

शहीद पथ स्थित मातृ एवं शिशु रेफरल अस्पताल से अपने बच्चे का इलाज करा रहे तीमारदार देवरिया के हरि ओम मिश्रा और बाराबंकी की मोहनी ने बताया कि यहां पर इलाज बहुत अच्छा होता है. खासकर पेडियाट्रिक्स के डॉ. श्रीकेश सिंह बहुत अच्छे से ओपीडी में देखते हैं और उन्होंने बच्चे का ऑपरेशन करने की सलाह दी थी. उन्होंने ऑपरेशन किया, यहां का इलाज बहुत अच्छा है. यहां के डॉक्टरों ने हमारे बच्चों की जान बचाई है.


एनएचएम अधिकारी डॉ. सूर्यांश ओझा ने बताया कि राज्य के सरकारी अस्पतालों में करीब 100 एसएनसीयू स्थापित हैं, जिले की मांग के अनुरूप 10 बेड से लेकर 30 बेड तक की सुविधा उपलब्ध है. राजधानी में छह बड़े सरकारी अस्पतालों में एसएनसीयू हैं. वेंटीलेटर के विकल्प में सरकारी अस्पतालों की एसएनसीयू में सी पैप मशीन उपलब्ध कराई गई है. अस्पताल पहुंचने वाले हर बच्चे को पर्याप्त इलाज उपलब्ध है.

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