धार। इंदौर हाई कोर्ट के निर्देश पर धार की भोजशाला के आर्कियोलॉजिकल सर्वे का कार्य आज शनिवार को दूसरे दिन भी जारी है. सुबह करीब 8:30 बजे ASI (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया) की टीम ने गौशाला परिसर के अंदर प्रवेश किया. सर्वे टीम आज फिर परिसर के अंदर के शिलालेख और प्राचीन प्रतीक चिन्ह आदि की मैपिंग और प्रमाण एकत्र करेगी. इस दौरान यह भी आकलन किया जाएगा कि भोजशाला के अंदर जो निर्माण कार्य है वह किस शैली का है और उसका प्राचीन उल्लेख और संदर्भ किस शासन काल का रहा है.
शाम तक चलेगा सर्वे
गौरतलब है धार स्थित भोजशाला विवाद को लेकर इंदौर हाई कोर्ट की बेंच ने हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन की एक याचिका को स्वीकार करते हुए गौशाला के नए सिरे से सर्वे के आदेश 11 मार्च को दिए थे. जिसे 6 हफ्ते में भोजशाला की सर्वे रिपोर्ट हाई कोर्ट को सौंपनी है. हाईकोर्ट के आदेश पर ही भोजशाला के सर्वे के लिए पांच सदस्य कमेटी गठित की गई थी. इस समिति ने 22 मार्च से ही सर्वे का कार्य शुरू किया है. हालांकि पहले दिन सुबह 6:30 से करीब 12:00 तक चले सर्वे में टीम ने गौशाला के अंदर के तमाम प्रमाण और अन्य जानकारी एकत्र की थी. इसके बाद जुम्मे की नमाज अंदर परिसर में होने के कारण ही सर्वे दोपहर 12:00 बजे के बाद बंद कर दिया गया था आज फिर 8:30 बजे आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया की टीम ने भोज शाला परिसर के अंदर प्रवेश किया है, जिसकी शाम तक जारी रहने की संभावना है.
सर्वे के खिलाफ याचिका
शुक्रवार से हुए सर्वे को गैर जरूरी मानते हुए मुस्लिम पक्ष ने सर्वे को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी. जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. लेकिन अब मुस्लिम पक्ष दोबारा सुप्रीम कोर्ट जाएगा और तमाम प्रमाण और भारत सरकार द्वारा 1902 और 1903 में किए गए सर्वे का हवाला देकर याचिका प्रस्तुत करेगा. इस मामले में शहर काजी का कहना है कि पहले जो सर्वे हुआ था उसकी रिपोर्ट के बाद भारत सरकार ने विवादित स्थल को कमाल मौलाना मस्जिद बताया था. लेकिन अब यदि सर्वे के बाद तथ्यों में बदलाव सामने आता है तो यह सर्वे शंका करने वाला कहा जाएगा. मुस्लिम पक्ष का कहना है कि पूरे मामले से अब सुप्रीम कोर्ट को अवगत कराया जाएगा जिससे कि बार-बार उठने वाले इस विवाद पर विराम लगाया जा सके.
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क्या है भोजशाला विवाद की वजह
भोजशाला को सभी हिंदू संगठन राजा भोज कालीन इमारत मानते हुए इसे सरस्वती का मंदिर मानते हैं. हिंदूओं का कहना है कि राजवंश काल में यहां कुछ समय के लिए मुस्लिमों को नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई थी. जबकि वहीं दूसरे पक्ष मुस्लिमों का कहना है कि वो सालों से यहां नमाज पढ़ रहे हैं. वे इसे भोजशाला कमान मौलाना मस्जिद मानते हैं. जबकि हिंदू इसे पूजा का स्थल या कहें सरस्वती मंदिर मानते हैं.