भरतपुर: धनतेरस के पर्व पर धन दौलत के भगवान कुबेर की पूजा की जाती है, साथ ही मान्यता है कि धनतेरस के अवसर पर चांदी का सिक्का या अन्य सामान खरीदने से भगवान कुबेर की कृपा बनी रहती है. धनतेरस पर चांदी का सिक्का खरीदने का प्रचलन आज से नहीं, बल्कि रियासतकाल से ही यह मान्यता है. भरतपुर रियासत में भी आज से 261 साल पहले सिक्के ढाले जाते थे. महाराजा सूरजमल ने वर्ष 1763 में भरतपुर और डीग की टकसालों में सिक्के ढलवाए थे. इतना ही नहीं, महाराजा सूरजमल के ये सिक्के ना केवल भरतपुर बल्कि हरियाणा और मेरठ तक चलते थे.
इतिहासकार रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि भरतपुर राज्य में सबसे पहला सिक्का वर्ष 1763 में धनतेरस के दिन जारी हुआ था. महाराजा सूरजमल ने भरतपुर और डीग की टकसालों में चांदी और तांबे के दो तरह के सिक्के ढलवाए थे. चांदी के सिक्के का वजन 171.86 ग्रेन और तांबे के सिक्के का वजन 280.4 ग्रेन था. चांदी के सिक्के का वजन बाद में बढ़ाकर 174.70 ग्रेन कर ढाला जाने लगा, जिसके 100 रुपयों का मूल्य 99.819 कलदार रुपयों के बराबर था. तांबे के सिक्के की तोल 18 माशा थी. भरतपुर राज्य में 1 माशा 8 रत्ती के बराबर होता था.
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सिक्कों पर चांद-सितारे : इतिहास का रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि आजकल चांदी के सिक्कों पर लक्ष्मी -गणेश और सराफा मंडल आदि के नाम खुदे होते हैं, लेकिन उस समय के सिक्कों पर डाई के माध्यम से चांद, सितारे, फूल, कटार और लाठी जैसे प्रतीक चिह्न बनाए जाते थे. भरतपुर रियासत के सिक्के वर्ष 1763 से वर्ष 1910 तक प्रचलन में रहे. आज पूरे भारत में एक ही करेंसी/मुद्रा चलती है, लेकिन रियासतकाल में अलग अलग राज्यों की अपनी मुद्रा या सिक्के चलते थे.
कुछ रियासतें ऐसी भी थीं, जिनमें खुद के सिक्के नहीं चलते थे, लेकिन भरतपुर रियासत में खुद के चांदी और चांदी के सिक्के चलते थे. इतिहास का रामवीर सिंह वर्मा ने बताया कि भरतपुर रियासत के सिक्के वर्तमान भरतपुर क्षेत्र के अलावा हरियाणा, बुलंदशहर, मेरठ, धौलपुर, करौली और चंबल पार के राज्यों तक चलते थे.