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Delhi: 'कोर्ट नागरिकता नहीं दे सकता...' रोहिंग्याओं के स्कूल दाखिला मामले पर दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाई कोर्ट ने रोहिंग्या रेफ्यूजी से जुड़ी याचिका की खारिज. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को गृह मंत्रालय के पास ज्ञापन देने के लिए कहा.

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Oct 29, 2024, 7:41 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने रोहिंग्या शरणार्थियों के बच्चों को दिल्ली के सरकारी स्कूलों में दाखिल कराने के लिए दाखिल की गई याचिका को खारिज कर दिया है. अदालत ने स्पष्ट किया कि शिक्षा का अधिकार विशेष रूप से भारतीय नागरिकों के लिए है, और यह कि वे शरणार्थी, भले ही मानवता की दृष्टि से उनकी स्थिति दुखद हो, इस अधिकार के अंतर्गत नहीं आते.

'कोर्ट नागरिकता नहीं दे सकता'

इस मामले में याचिकाकर्ता अधिवक्ता अशोक अग्रवाल को निर्देश दिया गया कि वे अपने ज्ञापन को गृह मंत्रालय को सौंपें और मंत्रालय से इस पर कानून के अनुसार शीघ्र निर्णय लेने के लिए भी कहा गया. अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि नागरिकता प्रदान करना सरकार का कार्य है.

कोर्ट ने यह मामला अंतरराष्ट्रीय मुद्दों से भी जोड़ते हुए कहा कि यह कोई साधारण मामला नहीं है. राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में भी अदालत ने सावधानी बरतने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया. न्यायालय ने यह भी सलाह दी कि याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए असम एकॉर्ड के संदर्भ में निर्णयों का अध्ययन करना चाहिए, जो इस प्रकार के मामले के कानूनी पहलुओं को समझने में सहायक हो सकते हैं.

बता दें कि, याचिका में आरोप लगाया गया था कि दिल्ली नगर निगम के स्कूल रोहिंग्या शरणार्थी बच्चों को आधार कार्ड, बैंक खाता और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग द्वारा जारी शरणार्थी कार्ड की अनुपलब्धता के कारण दाखिला नहीं दे रहे हैं। याचिका में यह भी उल्लेख किया गया कि जिन बच्चों का दाखिला हो चुका था, उन्हें अन्य वैधानिक लाभों से वंचित किया जा रहा है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार), 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार), और 21ए (शिक्षा का अधिकार) का उल्लंघन है.

यह भी पढ़ें- 13 रोहिंग्या भेजे गए डिटेंशन कैंप, पुलिस ने दर्ज की FIR

यह भी पढ़ें- दिल्ली: रोहिंग्या मुसलमान रिफ्यूज़ी कैम्प में बच्चों को दे रहे शिक्षा

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने रोहिंग्या शरणार्थियों के बच्चों को दिल्ली के सरकारी स्कूलों में दाखिल कराने के लिए दाखिल की गई याचिका को खारिज कर दिया है. अदालत ने स्पष्ट किया कि शिक्षा का अधिकार विशेष रूप से भारतीय नागरिकों के लिए है, और यह कि वे शरणार्थी, भले ही मानवता की दृष्टि से उनकी स्थिति दुखद हो, इस अधिकार के अंतर्गत नहीं आते.

'कोर्ट नागरिकता नहीं दे सकता'

इस मामले में याचिकाकर्ता अधिवक्ता अशोक अग्रवाल को निर्देश दिया गया कि वे अपने ज्ञापन को गृह मंत्रालय को सौंपें और मंत्रालय से इस पर कानून के अनुसार शीघ्र निर्णय लेने के लिए भी कहा गया. अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि नागरिकता प्रदान करना सरकार का कार्य है.

कोर्ट ने यह मामला अंतरराष्ट्रीय मुद्दों से भी जोड़ते हुए कहा कि यह कोई साधारण मामला नहीं है. राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में भी अदालत ने सावधानी बरतने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया. न्यायालय ने यह भी सलाह दी कि याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए असम एकॉर्ड के संदर्भ में निर्णयों का अध्ययन करना चाहिए, जो इस प्रकार के मामले के कानूनी पहलुओं को समझने में सहायक हो सकते हैं.

बता दें कि, याचिका में आरोप लगाया गया था कि दिल्ली नगर निगम के स्कूल रोहिंग्या शरणार्थी बच्चों को आधार कार्ड, बैंक खाता और संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग द्वारा जारी शरणार्थी कार्ड की अनुपलब्धता के कारण दाखिला नहीं दे रहे हैं। याचिका में यह भी उल्लेख किया गया कि जिन बच्चों का दाखिला हो चुका था, उन्हें अन्य वैधानिक लाभों से वंचित किया जा रहा है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार), 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार), और 21ए (शिक्षा का अधिकार) का उल्लंघन है.

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