रायबरेली: जन्माष्टमी पर प्रदेश भर में जगह जगह भव्य आयोजन होते हैं. कहीं मेला तो कहीं कुश्ती तो कहीं झांकी निकलती है. रायबरेली के सतांव ब्लॉक के कोंसा ग्राम पंचायत के दल्ली खेड़ा गांव के ब्रह्मदेव के रूप में विराजमान काली बाबा का भव्य और दिव्य दरबार मौजूद है. जहां हर साल जन्माष्टमी के दिन यहां विशाल दंगल और रात में शानदार जवाबी कीर्तन का कार्यक्रम आयोजित होता है. करीब 200 साल पुराना काली बाबा के इस दंगल में देश के कई राज्यों और जिलों से नामी गिरामी पहलवान अपनी कुश्ती के दांव दिखाने दल्ली खेड़ा मंदिर प्रांगण पहुंचते हैं. जन्माष्टमी के पूरे दिन बाबा के दरबार में विशाल मेला लगता है.
बता दें कि, गुरुबक्शगंज-बछरावां मार्ग पर स्थित खगिया खेड़ा गांव से एक किलोमीटर पश्चिम में एक मनोरम स्थान है काली बाबा का मंदिर. इलाके के लोग काली बाबा को ब्रह्मदेवता के रूप में पूजते हैं. बाबा के भक्तों का मानना है कि, जो व्यक्ति सच्चे मन से किसी भी शुक्रवार या सोमवार को अपराह्न पूर्व काली बाबा के दरबार में हाजिरी लगाकर अपनी अरदास करता है तो निश्चित रूप से उस पर बाबा की कृपा बरसती है.
क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि, काली बाबा मंदिर का इतिहास करीब दो सौ साल पुराना है. दल्ली खेड़ा गांव में एक बाजपेई परिवार में एक काली प्रसाद बाजपेई के रूप में पैदा हुए एक साधारण बालक, अपने स्वाभिमान सम्मान और मर्यादा की रक्षा के लिए आत्म बलिदान देकर काली बाबा बन गए. ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक, काली प्रसाद कम उम्र में ही बछरावां के निकट दूलमपुर गांव में सांमत के यहां नौकरी कर ली. जहां एक मामले को लेकर सामंत ने उनको जमकर जलील किया. जिससे आहत होकर उन्होंने सामंत को सबक सिखाने का संकल्प लेकर वहां से चले गए.
दल्लीखेड़ा आकर उन्होंने परिजनों से कहा कि मृत्यु के बाद उनके शरीर का अंतिम संस्कार ऐसी विधि से किया जाए जिससे उनका पुनर्जन्म प्रेत योनि में हो. जानकारी के मुताबिक इसके कुछ समय बाद काली प्रसाद बाजपेई ने अपनी जान दे दी. उनकी अंतिम इच्छा के मुताबिक परिजनों ने उनका अंतिम संस्कार कर दिया और मिट्टी का चबूतरा बना दिया गया.
दल्ली खेड़ा गांव निवासी बताते हैं कि, अंतिम संस्कार के करीब पंद्रह दिन बाद काली प्रसाद वाजपेई प्रेत योनि के रूप में दूलमपुर में प्रकट हुए और काली प्रसाद वाजपेई ने सामंत के परिवार को नाश करना शुरू कर दिया. जवान पुरुषों और महिलाओं की अचानक मौत होने लगी. विकलांग संतानें पैदा होने लगी. सामंत परिवार के घर में काली प्रसाद वाजपेई के प्रेत स्वरूप को ब्रह्म देवता मानकर उनकी आराधना की गई और अपने आरोपों के लिए क्षमा याचना की गई. बताते हैं कि ब्रह्म स्वरूप काली प्रसाद ने कुछ शर्तों के साथ सामंत परिवार को क्षमा कर दिया. यहीं से वह काली बाबा के रूप में प्रतिष्ठित हो गए. शर्तो के मुताबिक सामंत परिवार ने दूलमपुर में भी काली बाबा का दरबार स्थापित किया है.
सतांव में काली बाबा के दरबार में जन्माष्टमी के दिन लगने वाला दंगल करीब दो सौ साल पुराना है. जानकर बताते हैं कि, काली बाबा की समाधि पर पहला दंगल साल 1897 के आस पास लगा था. शुरुआती दौर में बाबा के दंगल में इलाके के छोटे छोटे बच्चे कुश्ती लड़ते थे. बाद में कोंसा गांव के कुछ प्रतिष्ठित लोग दंगल के आयेजन से जुड़ गए और दंगल का स्वरूप विस्तृत होने लगा. बीते 15 साल में काली बाबा का दंगल प्रादेशिक हो गया. अब बाबा के दरबार की सेवा व्यवस्था के लिए एक समिति बन गई है. यही समिति जन्माष्टमी को दिन में दंगल का आयेजन और रात को जवाबी कीर्तन का आयोजन कराता है. समिति के सदस्यों के मुताबिक इस बार जवाबी कीर्तन का मुकाबला क्रांति माला कानपुर और बाबा विकल एटा के बीच आयोजित होना है.