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फिर वही पुरानी कहानी? दो पन्नों के भाषण के बाद दिया था विजय सिन्हा ने इस्तीफा, अब क्या करेंगे अवध बिहारी - विजय कुमार सिन्हा

जो हालात बिहार विधानसभा में आज बने हैं ठीक 1 साल 5 महीने पहले भी थे. तब विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर विजय सिन्हा आसीन थे. उस वक्त उन्होंने अपना आखिरी जोर लगाया था. अब जोर आजमाइश की बारी आरजेडी दिखा रही है. वर्तमान स्पीकर अवध बिहारी चौधरी कॉन्फिडेंट हैं.. पढ़ें पूरी खबर-

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Feb 8, 2024, 8:08 PM IST

पटना : कहते हैं इतिहास अपने आप को दोहराता है. आज जिस मुहाने पर बिहार में राजद खड़ी है. उसी मुहाने पर 2022 के अगस्त में बीजेपी खड़ी थी. 10 अगस्त 2022 को नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ अपना समर्थन वापस लेकर राजद के साथ सरकार बना ली थी. उस समय वर्तमान उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा विधानसभा के अध्यक्ष थे. जैसे ही समर्थन वापस लिया गया उनके खिलाफ भी अविश्वास प्रस्ताव विधानसभा में लाया गया. तब विजय सिन्हा ने इस्तीफा नहीं दिया था.

इतिहास दोहराता है.. : विजय सिन्हा ने 24 अगस्त 2022 को सदन को संचालित करके अपने दो पेज के भाषण को पढ़ा. लोकतंत्र की दुहाई दी. उसके बाद इस्तीफा दिया. इस्तीफा देने से पहले उन्होंने डिप्टी स्पीकर महेश्वर हजारी को ना बुलाकर जदयू के पूर्व मंत्री नरेंद्र नारायण यादव को सदन की कार्रवाई संचालित करने को कहा. हालांकि बाद में बाद में डिप्टी स्पीकर महेश्वर हजारी ने सभा को संचालित किया.

तब विजय सिन्हा अड़े थे : इस बात को याद करना इसलिए जरूरी है क्योंकि कहते हैं राजनीति अपने आप को दोहराती है और आज राजद कोटे के स्पीकर अवध बिहारी चौधरी ने भी वही कहा जो 2022 अगस्त में तत्कालीन स्पीकर विजय कुमार सिन्हा ने कहा था. जब तक अवध बिहारी चौधरी इस्तीफा नहीं दे देते हैं तब तक कई कयास लगाए जा रहे हैं. कहा यह जा रहा है कि विधानसभा में खेल हो सकता है. तेजस्वी यादव बड़े गेम प्लान में लगे हुए हैं. जो फ्लोर टेस्ट होगा उसमें कई विधायक इधर से उधर जा सकते हैं. इन तमाम कयासों के बीच में अवध बिहारी चौधरी का स्पीकर पद से इस्तीफा न देना इन बातों को हवा दे रहा है.

नियम के मुताबिक अभी अबध बिहारी नही देंगे इस्तीफा : अविश्वास प्रस्ताव लाने के 14 दिन तक स्पीकर अपने पद से इस्तीफा नहीं दे सकते हैं. अवध बिहारी चौधरी ने विधानसभा के नियम का हवाला देते हुए कहा कि वह अभी इस्तीफा नहीं देंगे. अभी वह विधानसभा अध्यक्ष पद पर काबिज रह सकते हैं. जाहिर सी बात है जो विधानसभा का नियम है उसके मुताबिक वह उस दिन तक विधानसभा के अध्यक्ष रहेंगे जब तक की फ्लोर टेस्ट नहीं हो जाता.

क्या है नियम : बिहार विधानसभा की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमावली के नियम 110 में अध्यक्ष को पद से हटाने के संकल्प को देने का प्रावधान है. जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 179 में है. इस प्रकार के प्रस्ताव की स्वीकृति और अस्वीकृति का निर्णय 'सदन का अध्यासी सदस्य' ही कर सकते हैं. जिसका आधार 38 सदस्य के खड़ा होकर संकल्प प्रस्ताव का समर्थन करना होता है. दरअसल, अध्यक्ष के निर्वाचन में सभी भूमिका माननीय सदस्यों एवं सदन की होती है अतः उन्हें पद से हटाने की शक्ति भी इन्हीं में निहित होती है.

जातियों के पोलराइजेशन पर नजर : वरिष्ठ पत्रकार और राजनीति के जानकारी अरविंद मोहन कहते हैं कि कई राज्यों में फ्लोर टेस्ट को लेकर पैसों का आदान-प्रदान हुआ है लेकिन, बिहार में अब तक ऐसा नहीं सुना गया है. टिकट बांटने के लेनदेन में पैसा चलता है. लेकिन, विधायकों के तोड़फोड़ में पैसा नहीं चलता है. बिहार में जो जातीय समीकरण है उसी पर ज्यादा खेल होने की संभावना जताई जा रही है. जातियों का पोलराइजेशन इस बार ज्यादा होता दिखाई दे रहा है और यह नीतीश कुमार के बजाय तेजस्वी यादव के पक्ष में जाता हुआ दिख रहा है. जो कॉन्फिडेंस दिख रहा है वह इसी बल पर दिख रहा है.

इसलिए है कॉन्फिडेंस : अरविंद मोहन कहते है कि ''लालू परिवार पैसा खर्च नहीं कर सकता है और उनके साथ कोई ऐसा पूंजीपति भी नहीं है जो इसको लेकर पैसा खर्च करेगा. जातियों के पोलराइजेशन में जो समीकरण दिख रहा है वह तेजस्वी यादव के पक्ष में जाता हुआ दिख रहा है. लेकिन क्या समीकरण बैठेगा ये तो फ्लोर टेस्ट के समय पता चलेगा. फिलहाल जो नियम है उसके मुताबिक अवध बिहारी चौधरी फ्लोर टेस्ट पहले नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे सकते हैं लेकिन, उन्हें इन्हीं बातों का कॉन्फिडेंस है इसलिए इस्तीफा नहीं दे रहे हैं.''

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पटना : कहते हैं इतिहास अपने आप को दोहराता है. आज जिस मुहाने पर बिहार में राजद खड़ी है. उसी मुहाने पर 2022 के अगस्त में बीजेपी खड़ी थी. 10 अगस्त 2022 को नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ अपना समर्थन वापस लेकर राजद के साथ सरकार बना ली थी. उस समय वर्तमान उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा विधानसभा के अध्यक्ष थे. जैसे ही समर्थन वापस लिया गया उनके खिलाफ भी अविश्वास प्रस्ताव विधानसभा में लाया गया. तब विजय सिन्हा ने इस्तीफा नहीं दिया था.

इतिहास दोहराता है.. : विजय सिन्हा ने 24 अगस्त 2022 को सदन को संचालित करके अपने दो पेज के भाषण को पढ़ा. लोकतंत्र की दुहाई दी. उसके बाद इस्तीफा दिया. इस्तीफा देने से पहले उन्होंने डिप्टी स्पीकर महेश्वर हजारी को ना बुलाकर जदयू के पूर्व मंत्री नरेंद्र नारायण यादव को सदन की कार्रवाई संचालित करने को कहा. हालांकि बाद में बाद में डिप्टी स्पीकर महेश्वर हजारी ने सभा को संचालित किया.

तब विजय सिन्हा अड़े थे : इस बात को याद करना इसलिए जरूरी है क्योंकि कहते हैं राजनीति अपने आप को दोहराती है और आज राजद कोटे के स्पीकर अवध बिहारी चौधरी ने भी वही कहा जो 2022 अगस्त में तत्कालीन स्पीकर विजय कुमार सिन्हा ने कहा था. जब तक अवध बिहारी चौधरी इस्तीफा नहीं दे देते हैं तब तक कई कयास लगाए जा रहे हैं. कहा यह जा रहा है कि विधानसभा में खेल हो सकता है. तेजस्वी यादव बड़े गेम प्लान में लगे हुए हैं. जो फ्लोर टेस्ट होगा उसमें कई विधायक इधर से उधर जा सकते हैं. इन तमाम कयासों के बीच में अवध बिहारी चौधरी का स्पीकर पद से इस्तीफा न देना इन बातों को हवा दे रहा है.

नियम के मुताबिक अभी अबध बिहारी नही देंगे इस्तीफा : अविश्वास प्रस्ताव लाने के 14 दिन तक स्पीकर अपने पद से इस्तीफा नहीं दे सकते हैं. अवध बिहारी चौधरी ने विधानसभा के नियम का हवाला देते हुए कहा कि वह अभी इस्तीफा नहीं देंगे. अभी वह विधानसभा अध्यक्ष पद पर काबिज रह सकते हैं. जाहिर सी बात है जो विधानसभा का नियम है उसके मुताबिक वह उस दिन तक विधानसभा के अध्यक्ष रहेंगे जब तक की फ्लोर टेस्ट नहीं हो जाता.

क्या है नियम : बिहार विधानसभा की प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमावली के नियम 110 में अध्यक्ष को पद से हटाने के संकल्प को देने का प्रावधान है. जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 179 में है. इस प्रकार के प्रस्ताव की स्वीकृति और अस्वीकृति का निर्णय 'सदन का अध्यासी सदस्य' ही कर सकते हैं. जिसका आधार 38 सदस्य के खड़ा होकर संकल्प प्रस्ताव का समर्थन करना होता है. दरअसल, अध्यक्ष के निर्वाचन में सभी भूमिका माननीय सदस्यों एवं सदन की होती है अतः उन्हें पद से हटाने की शक्ति भी इन्हीं में निहित होती है.

जातियों के पोलराइजेशन पर नजर : वरिष्ठ पत्रकार और राजनीति के जानकारी अरविंद मोहन कहते हैं कि कई राज्यों में फ्लोर टेस्ट को लेकर पैसों का आदान-प्रदान हुआ है लेकिन, बिहार में अब तक ऐसा नहीं सुना गया है. टिकट बांटने के लेनदेन में पैसा चलता है. लेकिन, विधायकों के तोड़फोड़ में पैसा नहीं चलता है. बिहार में जो जातीय समीकरण है उसी पर ज्यादा खेल होने की संभावना जताई जा रही है. जातियों का पोलराइजेशन इस बार ज्यादा होता दिखाई दे रहा है और यह नीतीश कुमार के बजाय तेजस्वी यादव के पक्ष में जाता हुआ दिख रहा है. जो कॉन्फिडेंस दिख रहा है वह इसी बल पर दिख रहा है.

इसलिए है कॉन्फिडेंस : अरविंद मोहन कहते है कि ''लालू परिवार पैसा खर्च नहीं कर सकता है और उनके साथ कोई ऐसा पूंजीपति भी नहीं है जो इसको लेकर पैसा खर्च करेगा. जातियों के पोलराइजेशन में जो समीकरण दिख रहा है वह तेजस्वी यादव के पक्ष में जाता हुआ दिख रहा है. लेकिन क्या समीकरण बैठेगा ये तो फ्लोर टेस्ट के समय पता चलेगा. फिलहाल जो नियम है उसके मुताबिक अवध बिहारी चौधरी फ्लोर टेस्ट पहले नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे सकते हैं लेकिन, उन्हें इन्हीं बातों का कॉन्फिडेंस है इसलिए इस्तीफा नहीं दे रहे हैं.''

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