जोधपुर: प्रमुख नकदी फसल कपास की बुवाई इस बार कम हुई है, यानी कि रकबा घट गया है. इससे साफ जाहिर है कि उत्पादन कम होगा. अकेले जोधपुर जिले में 20 हजार हेक्टेयर कम बुवाई हुई है. राजस्थान में कपास उत्पाद के प्रमुख जिलों को देखें तो यह आंकड़ा करीब ढाई लाख हेक्टेयर है. गत वर्ष की तुलना में सिर्फ 64 फीसदी ही बुवाई हुई है.
कृषि विभाग की ओर से हाल ही में जारी आंकडों के अनुसार विभाग का लक्ष्य साढ़े सात लाख हेक्टेयर भूमि में बुवाई करने का लक्ष्य था, लेकिन इस साल 5.03 लाख हेक्टेयर भूमि में ही बुवाई हुई है. बात जोधपुर व फलोदी जिले की करें तो यहां 80 हजार हेक्टेयर के लक्ष्य के अनुरूप 60 हजार हेक्टेयर में ही बुवाई हुई है, जो दर्शाता है कि किसानों का मोहभंग हो रहा है. इतना ही नहीं, 5 लाख हैक्टयर में भी करीब 1 लाख हेक्टयर में बोई गई फसल खराब हो चुकी है. प्रदेश में उत्पादक जिलों में श्रीगंगानर, हनुमानगढ, जोधपुर, नागौर, अलवर, बीकानेर व भीलवाड़ा हैं. इस बार सभी जगह पर बुवाई में कमी आई है.
मोहभंग की यह है वजह : कपास की बुवाई में कमी की असली वजह है इसमें लगने वाला कीड़ा गुलाबी सुंडी, जिसे पिंक बॉलवर्म कहा जाता है. इसक प्रकोप कई जिलों में अभी से ही शुरू हो गया है. इस पर नियंत्रण के ठोस उपाय नहीं हैं. यह कीट कपास के डोडे यानी फूल के अंदर होता है. इससे इस पर कीटनाशक स्प्रे का प्रभाव बेहद कम होता हैं. यह फसल को कमोजर कर देता है, जिसके चलते किसान बुवाई कम करने लगे हैं, क्योंकि इस कीट की वजह से प्रति हेक्टेयर पांच से सात क्विंटल का नुकसान होता है. पूर्व में किसानों को कृषि विभाग ने फसल चक्र अपनाने की सलाह दी थी, जिसके तहत दो साल में एक बार बुवाई होती है, लेकिन इसे अपनाने के बाद भी इस कीट से निजात नहीं मिली है. इसके अलावा पैदावर में कमी के बावजूद 2022 में किसानों को 9 से 10 हजार क्विंटल की तुलना में 5 से 7 हजार रुपये प्रति क्विंटल भाव मिले. साथ ही मनरेगा के चलते मजूदर नहीं मिलने से खर्च बढ़ रहा है.
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नई किस्मों के बीज की जरूरत : भारतीय किसान संघ के प्रदेश मंत्री तुलछाराम सिंवर का कहना है कि सरकार को कपास की नई किस्म के बीज अनुदान पर उपलब्ध कराने पर काम करना होगा. इसके अलावा नकली बीजों पर रोक लगाने व नॉन बीटी के मिश्रण को प्रतिबंधित करने के बाद इस समस्या पर निंयत्रण पाया जा सकता है. इसके अलावा, कपास का समर्थन मूल्य निर्धारित करने से किसानों को आर्थिक नुकसान से बचाया जा सकता है. वहीं, किसानों का कपास की बुवाई के प्रति हो रहे मोहभंग को रोका जा सकता है.