रांची: झारखंड में पहले फेज के लिए 13 मई को सिंहभूम, खूंटी, लोहरदगा और पलामू सीट के लिए मतदान होना है. सभी पार्टियों ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है. पीएम मोदी से लेकर राहुल गांधी तक वोटरों को रिझाने में जुटे हैं. एनडीए का दावा है कि इस बार 12 के आंकड़े को पार करते हुए सभी 14 सीटों पर जीत होगी.
वहीं, इंडिया गठबंधन को भरेसा है कि हवा उनके पक्ष में बह रही है. इस बीच बदले राजनीतिक समीकरण की वजह से लोहरदगा की सीट हॉट बन गई है. कांग्रेस प्रत्याशी सुखदेव भगत और भाजपा प्रत्याशी समीर उरांव के बीच की जंग को झामुमो के बागी विधायक चमरा लिंडा ने त्रिकोणीय बना दिया है. चमरा लिंडा तो यहां तक दावा कर रहे हैं कि उनका मुकाबला भाजपा से है. इसकी वजह समझने के लिए पूर्व के चुनावों में आए नतीजों को खंगालना होगा.
2019 में भाजपा और कांग्रेस में थी सीधी टक्कर
यहां गौर करने वाली है कि चमरा लिंडा 2019 के चुनाव में नहीं उतरे थे. उन्होंने 2004, 2009 और 2014 का लोकसभा चुनाव लोहरदगा से बतौर निर्दलीय लड़ा था. रही बात 2019 के चुनाव परिणाम की तो चमरा की अनुपस्थिति के बावजूद यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर हुई थी. भाजपा प्रत्याशी रहे सुदर्शन भगत को कुल 3,71,595 वोट मिले थे जबकि कांग्रेस के सुखदेव भगत को 3,61,232 वोट. इस लिहाज से भाजपा के सुदर्शन भगत महज 10,363 वोट के अंतर से चुनाव जीतने में सफल रहे थे. शायद यही वजह रही कि भाजपा ने सुदर्शन भगत का टिकट काटकर समीर उरांव को लोहरदगा से मैदान में उतारा है. क्योंकि उरांव जनजाति बहुल इस इलाके में समीर उरांव काफी सक्रिय रहे हैं. गौर करने वाली बात है कि 2019 के चुनाव में शेष 12 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी.
लोहरदगा की विस सीटों पर किसका पलड़ा भारी
लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र में कुल पांच विधानसभा सीटें (मांडर, सिसई, गुमला, बिशुनपुर, लोहरदगा) हैं. सभी विधानसभा सीटें इंडिया गठबंधन के पास हैं. मांडर से कांग्रेस की नेहा शिल्पी तिर्की और लोहरदगा से कांग्रेस के रामेश्वर उरांव विधायक हैं. जबकि सिसई से झामुमो के जीगा सुसारन होरो, गुमला से झामुमो के भूषण तिर्की और बिशुनपुर से खुद चमरा लिंडा झामुमो के विधायक हैं. जाहिर है कि इंडिया गठबंधन के प्रभाव वाले क्षेत्र में भाजपा को कई चुनौतियों से गुजरना होगा.
2019 के लोस चुनाव के वक्त एनडीए का था दबदबा
दरअसल, झारखंड में लोकसभा चुनाव के कुछ माह बाद ही विधानसभा का भी चुनाव होता है. लिहाजा, 2019 के लोकसभा चुनाव के वक्त सभी पांच विधानसभा सीटों पर समीकरण कुछ और था. उस वक्त चमरा लिंडा के बिशुनपुर सीट को छोड़कर अन्य चार सीटों पर एनडीए का कब्जा था. मांडर से भाजपा की गंगोत्री कुजूर, सिसई से दिनेश उरांव, गुमला से शिवशंकर उरांव और लोहरदगा सीट पर एनडीए की सहयोगी आजसू के कमल किशोर भगत विधायक थे. एनडीए के चार सीटिंग विधायकों की ताकत के बावजूद सुरदर्शन भगत को जीतने में पसीने छूट गये थे.
2019 के लोस चुनाव में विधानसभावार वोटों का गणित
इस बात पर गौर करना जरुरी है कि 2019 के लोस चुनाव के समय लोहरदगा सीट के तहत आने वाले पांच में से चार विस सीटों पर एनडीए का कब्जा था. इसके बावजूद सिसई और गुमला में भाजपा प्रत्याशी पिछड़ गये थे. इसकी भरपाई चमरा लिंडा के गढ़ कहे जाने वाले बिशुनपुर से हुई थी. दरअसल, भाजपा प्रत्याशी को मांडर में 91,442 वोट मिले थे जबकि कांग्रेस प्रत्याशी को 90,254 वोट. यहां भाजपा को सिर्फ 1,188 वोट की बढ़ मिली थी.
सिसई में भाजपा प्रत्याशी के मिले 61,504 वोट की तुलना में कांग्रेस प्रत्याशी के खाते में 71,978 वोट गये थे. यहां भाजपा 10,474 वोट से पिछड़ गई थी. गुमला में भाजपा को 62,628 वोट मिल थे. वहीं कांग्रेस को 69,313 वोट. यहां भी भाजपा 6,685 वोट से पिछड़ गई थी. लेकिन अप्रत्याशित रुप से बिशुनपुर में भाजपा को 13,309 वोट की बढ़त मिली थी.
भाजपा को यहां 73,255 वोट जबकि कांग्रेस को 59,946 वोट मिले थे. इसी पॉकेट का वोट कांग्रेस की हार का कारण बना. रही सही उम्मीदों पर आजसू की मेहनत ने लोहरदगा विस क्षेत्र में पूरा कर दिया. यहां कांग्रेस को मिले 68,577 वोट की तुलना में भाजपा 80,698 वोट लाकर 12,121 वोट की बढ़त हासिल करने में सफल रही.
गौर करने वाली बात है कि झामुमो के बागी विधायक चमरा लिंडा इस बार बतौर निर्दलीय मैदान में उतर चुके हैं. झामुमो उनको रोकने में नाकाम रहा. उनके खिलाफ पार्टी स्तर पर अबतक नहीं हुई कार्रवाई का मतलब समझा जा सकता है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र के बिशुनपुर से विधायक चमरा लिंडा आखिर किसके बूते मैदान में उतरे हैं. क्योंकि झामुमो के नेता कह चुके हैं कि पार्टी का सपोर्ट इंडिया गठबंधन के कांग्रेस प्रत्याशी सुखदेव भगत को रहेगा.
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