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वन अधिकार अधिनियम को लेकर कार्यशाला का आयोजनः अबुआ वीर और अबुआ दिशोम से आदिवासियों को जंगलों में दी जाएगी सुविधा- सीएम - Forest Rights Act - FOREST RIGHTS ACT

Forest department workshop in Ranchi. वन अधिकार अधिनियम को लेकर रांची में कार्यशाला का आयोजन किया गया. इसमें शामिल हुए सीएम चंपाई सोरेन ने अबुआ वीर और अबुआ दिशोम अभियान से झारखंड के आदिवासियों को जंगलों में सुविधा दी जाएगी.

CM Champai Soren participated in workshop on Forest Rights Act in Ranchi
रांची में वन अधिकार अधिनियम को लेकर कार्यशाला (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jun 24, 2024, 3:56 PM IST

रांची: झारखंड के जंगलों और वन क्षेत्र में रहने वाले लोगों को सुरक्षित रखने के लिए सोमवार को वन विभाग द्वारा एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. जिसमें मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन, मंत्री दीपक बिरुआ, मुख्य सचिव एल ख्यांगते, वन विभाग की प्रधान सचिव वंदना दादेल ,सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता संजय उपाध्याय सहित कई जिलों के डीसी और डीएफओ मौजूद रहे.

वन अधिकार अधिनियम को लेकर सीएम का बयान (ETV Bharat)

इस कार्यक्रम में मौजूद अधिकारियों को वन अधिनियम को बेहतर तरीके से लागू करने के लिए समझाया गया. विभिन्न जिलों से आए उपायुक्तों और जिला वन पदाधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा कि अधिकारी खुद वन क्षेत्र में जाकर वहां की समस्याओं को जानें. जंगल में रह रहे आदिवासियों को वन अधिकार देने के लिए वन क्षेत्र को समझने का प्रयास करें तभी कोई निर्णय लें. उन्होंने कहा कि अधिकारी जब तक वन अधिकार नियम को अच्छे तरीके से नहीं समझेंगे तब तक वन क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों को उनका अधिकार नहीं मिल पाएगा.

वहीं इस कार्यशाला में आए अधिकारियों को संबोधित करते हुए मंत्री दीपक बिरुआ ने कहा कि जंगली क्षेत्र में उग्रवाद और डायन जैसी कुप्रथा का बढ़ावा मिलने का मुख्य कारण जमीन विवाद है. उन्होंने वन विभाग के अधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा कि जंगली क्षेत्र की समस्याओं के समाधान को लिए वन अधिकार अधिनियम को बेहतर तरीके से लागू करें.

इस कार्यशाला में मुख्य अतिथि रूप में मौजूद मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने कहा कि जंगल को बचाने के लिए आदिवासी ने हमेशा ही संघर्ष किया है. उन्होंने 1980 के दशक की घटनाओं को याद करते हुए कहा कि आदिवासियों के परंपरा को समाप्त करने के लिए कोल्हान में गोली कांड हुई थी लेकिन आदिवासी उस वक्त भी जंगल को बचाने के लिए तीर-धनुष से संघर्ष करते रहे और तत्कालीन भारत सरकार की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी आदिवासियों के विरोध के सामने झुकना पड़ा. इसीलिए आदिवासियों का जंगलों और पहाड़ों के प्रति प्रेम को देखते हुए उन्हें जंगलों में रहने के लिए पट्टा पर जमीन देने की प्रक्रिया शुरू करने को लेकर अधिकारियों को दिशा निर्देश दिए जा रहे हैं.

मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने कहा कि अबुआ वीर और अबुआ दिशोम अभियान की शुरुआत होते ही यह स्पष्ट कर दिया है कि जो भी आदिवासी जंगलों के बीच में या फिर जंगलों के आसपास रह रहे हैं. उन्हें जमीन का पट्टा दिया जाए ताकि वह खेती गृहस्थी के साथ-साथ अपना जीवन यापन कर सकें

इसे भी पढ़ें- मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने घाटशिला वासियों को दी 105 करोड़ की सौगात, कई विकास योजना का किया शिलान्यास - CM Champai Soren in Ghatsila

इसे भी पढ़ें- मुख्यमंत्री ने उद्योग विभाग के अधिकारियों के साथ की उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक, ग्रामोद्योग को बढ़ावा और महिलाओं को प्रशिक्षित करने के दिए निर्देश - CM high level review meeting

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वन अधिकार अधिनियम को लेकर सीएम का बयान (ETV Bharat)

इस कार्यक्रम में मौजूद अधिकारियों को वन अधिनियम को बेहतर तरीके से लागू करने के लिए समझाया गया. विभिन्न जिलों से आए उपायुक्तों और जिला वन पदाधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा कि अधिकारी खुद वन क्षेत्र में जाकर वहां की समस्याओं को जानें. जंगल में रह रहे आदिवासियों को वन अधिकार देने के लिए वन क्षेत्र को समझने का प्रयास करें तभी कोई निर्णय लें. उन्होंने कहा कि अधिकारी जब तक वन अधिकार नियम को अच्छे तरीके से नहीं समझेंगे तब तक वन क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों को उनका अधिकार नहीं मिल पाएगा.

वहीं इस कार्यशाला में आए अधिकारियों को संबोधित करते हुए मंत्री दीपक बिरुआ ने कहा कि जंगली क्षेत्र में उग्रवाद और डायन जैसी कुप्रथा का बढ़ावा मिलने का मुख्य कारण जमीन विवाद है. उन्होंने वन विभाग के अधिकारियों को निर्देश देते हुए कहा कि जंगली क्षेत्र की समस्याओं के समाधान को लिए वन अधिकार अधिनियम को बेहतर तरीके से लागू करें.

इस कार्यशाला में मुख्य अतिथि रूप में मौजूद मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने कहा कि जंगल को बचाने के लिए आदिवासी ने हमेशा ही संघर्ष किया है. उन्होंने 1980 के दशक की घटनाओं को याद करते हुए कहा कि आदिवासियों के परंपरा को समाप्त करने के लिए कोल्हान में गोली कांड हुई थी लेकिन आदिवासी उस वक्त भी जंगल को बचाने के लिए तीर-धनुष से संघर्ष करते रहे और तत्कालीन भारत सरकार की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी आदिवासियों के विरोध के सामने झुकना पड़ा. इसीलिए आदिवासियों का जंगलों और पहाड़ों के प्रति प्रेम को देखते हुए उन्हें जंगलों में रहने के लिए पट्टा पर जमीन देने की प्रक्रिया शुरू करने को लेकर अधिकारियों को दिशा निर्देश दिए जा रहे हैं.

मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने कहा कि अबुआ वीर और अबुआ दिशोम अभियान की शुरुआत होते ही यह स्पष्ट कर दिया है कि जो भी आदिवासी जंगलों के बीच में या फिर जंगलों के आसपास रह रहे हैं. उन्हें जमीन का पट्टा दिया जाए ताकि वह खेती गृहस्थी के साथ-साथ अपना जीवन यापन कर सकें

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