भरतपुर. द्वापर युग भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का युग रहा है. भगवान श्री कृष्ण ने बृज क्षेत्र में अवतार लेकर यहीं पर अपनी लीलाएं कीं. पूरा बृज क्षेत्र भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं और अवतार का साक्षात प्रमाण है. गोवर्धन की सप्तकोशी परिक्रमा मार्ग का महत्वपूर्ण पड़ाव पूंछरी का लौठा भी आस्था का केंद्र और धार्मिकस्थल है. इस पौराणिक महत्व के स्थल से कई किंवदंतियां भी जुड़ी हुई हैं. राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा भी पूंछरी का लौठा और यहां स्थित श्रीनाथजी के परम भक्त हैं. मुख्यमंत्री बनने के बाद भजनलाल शर्मा ने अपने पहले बजट के माध्यम से अपने भगवान गिरिराज जी व श्रीनाथजी के स्थल पूंछरी का लौठा को विकसित करने की घोषणा की है. आइए जानते हैं कि पूंछरी का लौठा धार्मिक स्थान को लेकर क्या-क्या किंवदंतियां हैं और यहां का इतिहास क्या है.
भगवान शंकर व हनुमान जी का रूप : पंडित प्रेमी शर्मा ने बताया कि गिरिराज जी की सप्तकोशीय परिक्रमा मार्ग में पूंछरी का लौठा राजस्थान के डीग जिले में स्थित है. यह परिक्रमा मार्ग का महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है. मान्यता है कि पूंछरी का लौठा सतयुग में भगवान शंकर, त्रेता युग में हनुमान जी और द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के सखा मधुमंगल थे.
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सखा के पास पहुंचने वाले भक्तों पर कृपा : मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण बचपन में अपने सखा मधुमंगल (पूंछरी का लौठा जिन्हें लोटा बाबा भी कहा जाता है) के साथ लुका छुपी खेल रहे थे. मधुमंगल छुप गए, लेकिन जब भगवान कृष्ण उन्हें खोजने निकले तो अन्य सखाओं ने भगवान श्री कृष्ण को अपने साथ खेलने बुला लिया. भगवान कृष्ण खेल में ऐसे मगन हुए कि सखा मधुमंगल को खोजना भूल गए और वो आज तक पूंछरी का लौठा में प्रतीक्षारत हैं. किवदंती ये भी है कि एक बार भगवान श्री कृष्णा गाय चराने गए थे और अपने सखा मधुमंगल को यह कहकर इस स्थान पर बैठ गए कि मैं गायों को खोजकर लाता हूं, लेकिन वो वापस सखा के पास नहीं लौटे.
कहा जाता है कि जब भगवान श्री कृष्ण नंदगांव छोड़कर मथुरा जा रहे थे तो गोपियां उनके रथ के पीछे-पीछे दौड़ रही थीं, लेकिन जब रथ आंखों से ओझल हो गया तो सखियों ने यहां बैठे एक व्यक्ति को देखा और एक-दूसरे से बोलने लगीं कि कृष्ण का रथ किधर गया तू पूछ री, तू पूछ री. तभी से इसका नाम पूंछरी का लौठा पड़ गया. मान्यता है कि पूंछरी का लौठा परिक्रमा करने वाले भक्तों को सप्तकोशीय परिक्रमा पूर्ण करने की शक्ति प्रदान करते हैं.मान्यता यह भी है कि परिक्रम करने आने वाले जो भक्त पूंछरी का लौठा मंदिर में दर्शन करने पहुंचते हैं भगवान श्री कृष्ण उनकी हर मनोकामना पूर्ण करते हैं.
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नाम का इतिहास : मान्यता है कि गोवर्धन पर्वत का आकार बैठी हुई गाय के आकार का है. उसका पिछला भाग पूंछ यानी पूंछरी का लौठा है. यहां गोवर्धन पर्वत सिकुड़ जाता है और श्रृद्धालु इसे गाय की पूंछ के रूप में मानते हैं. कुछ भक्त पूंछरी का लौठा की पूजा हनुमान जी रूप मानकर भी करते हैं.
अब होगा विकास : असल में गिरिराज जी की परिक्रमा का 21 किलोमीटर का मार्ग साढ़े 19 किमी उत्तर प्रदेश में और डेढ़ किलोमीटर मार्ग राजस्थान के डीग में स्थित है. इसी डेढ़ किमी मार्ग में पूंछरी का लौठा स्थित है. राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा पूंछरी का लौठा में स्थित श्रीनाथजी और गिरिराज जी के परम भक्त हैं. वर्षों से मुख्यमंत्री यहां पर नियमित दर्शन व पूजा करने आते हैं. हाल ही में पेश किए गए अंतरिम बजट में राजस्थान के अन्य धार्मिक स्थलों के साथ ही पूंछरी का लौठा को शामिल कर विकसित करने की घोषणा की गई. सभी धार्मिक स्थलों के विकास पर 300 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे.