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CM योगी के नजूल बिल को BJP प्रदेशाध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने रोका, बोले- सहमति नहीं; क्या यूपी में बढ़ेगा सरकार-संगठन में टकराव - Clash between Yogi and organization - CLASH BETWEEN YOGI AND ORGANIZATION

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और संगठन के बीच की लड़ाई गुरुवार को मानसून सत्र तक पहुंच गई है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास विभाग से जुड़ा नजूल बिल विधानसभा से पास हो चुका है. गुरुवार को विधान परिषद में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने इस पर असहमति जता दी.

योगी के बिल को भूपेंद्र चौधरी ने रोक दिया है.
योगी के बिल को भूपेंद्र चौधरी ने रोक दिया है. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 1, 2024, 8:10 PM IST

Updated : Aug 2, 2024, 11:12 AM IST

लखनऊ: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और संगठन के बीच की लड़ाई गुरुवार को मानसून सत्र तक पहुंच गई है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास विभाग से जुड़ा नजूल बिल विधानसभा से पास हो चुका है. गुरुवार को विधान परिषद में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने इस पर असहमति जता दी. विधानसभा में पास बिल अब विधान परिषद में फंस गया है. MLC भूपेन्द्र चौधरी ने कहा कि अभी इस मुद्दे पर सहमति नहीं है. इसलिए इसे प्रवर समिति में भेजा जाए. विधान परिषद सभापति ने आग्रह स्वीकार कर लिया.

यूपी लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद जब तब संगठन और सरकार आमने-सामने नजर आने लगे हैं. इससे पहले डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने 29 जुलाई को भाजपा ओबीसी मोर्चा की कार्य समिति के बैठक में कहा था कि सरकार से बड़ा संगठन है. चुनाव सरकार नहीं बल्कि पार्टी का संगठन जिताता है. 14 जुलाई को भी केशव मौर्य ने इस तरह का भाषण दिया था. कई मौकों पर वह ऐसा ही बयान देते रहे हैं. योगी से उनकी तल्खी खुलकर सामने आ चुकी है.

इस बार मामला मुख्यमंत्री के विभाग का है. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के कहने पर विधान परिषद में बिल रोक दिया गया है. यह बिल अब प्रवर समिति में जाएगा जहां लगभग 2 महीने तक इस पर गहन विचार विमर्श किया जाएगा. इसके बाद में संशोधन होंगे और तब या बिल दोबारा विधान परिषद में आएगा. जिसका सीधा अर्थ है कि यह बिल अब शीतकालीन सत्र में ही पास हो सकेगा.

नजूल बिल को लेकर न केवल समाजवादी पार्टी बल्कि भारतीय जनता पार्टी के विधायकों ने भी बुधवार को विधानसभा में विरोध किया था. इस संबंध में बड़ा हंगामा हुआ था. भारतीय जनता पार्टी के पूर्व मंत्री और प्रयागराज से विधायक सिद्धार्थनाथ सिंह ने भी इस मुद्दे पर विरोध किया था. इसके बावजूद बिल विधानसभा से पारित हो चुका था. विधान परिषद में गुरुवार को प्रश्नकाल के बाद जब नजूल बिल पर चर्चा शुरू हुई तो विपक्ष ने इस पर विरोध जताया.

विपक्ष का विरोध अपनी जगह था. मगर भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और विधान परिषद सदस्य भूपेंद्र सिंह चौधरी ने भी इसको संतुष्टिपरक नहीं बताया. उन्होंने विधान परिषद सभापति से अनुरोध किया कि इस बिल को प्रवर समिति के लिए भेज दिया जाए, जहां इसका परीक्षण किया जाएगा. संशोधनों के बाद इसे लागू किया जाएगा.

निश्चित तौर पर इसको सरकार वर्सेस संगठन का मामला बताया जा रहा है. मुख्यमंत्री के आवास विभाग की ओर से ले गए इस बिल को जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी के नेता नकार रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि सरकार और संगठन के बीच अभी कुछ ठीक नहीं हुआ है.

दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के विधान परिषद सदस्य आशुतोष सिन्हा का कहना है कि नजूल बिल के प्रावधान कुछ पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए बनाए गए हैं. इसलिए इसका प्रवर समिति में जाना और करीब 2 महीने तक इसका परीक्षण होना बहुत जरूरी है. इसको अगले सत्र में ही पास करने के लिए लाया जाए.

क्या है यह नजूल बिल : सदन में ले गए नजूल बिल में उसे जमीन की बात हो रही है जो कि राज्य सरकार की होती है. विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग तरीके से इसका आवंटन लीक के आधार पर किया जाता है. कई बार नजूल की जमीन कब्जे के आधार पर भी आवंटित की जाती है. समय-समय पर नजूल के पत्तों को फ्री होल्ड भी किया जाता है. मगर इस बार के बिल में यह स्पष्ट था कि जो भी जमीन प्लीज का समय पूरा कर चुकी है उसको फ्री होल्ड नहीं किया जाएगा. सरकार इस जमीन को कब्जदार से वापस लेकर उसका उपयोग करेगी. इस मुद्दे को लेकर विभक्ति नहीं भारतीय जनता पार्टी के सदस्य भी नजूल बिल का विरोध कर रहे हैं.

विधेयक की खास बातें

  • पारित विधेयक के मुताबिक नजूल भूमि के पूर्ण स्वामित्व परिवर्तन संबंधी किसी भी न्यायालय की कार्यवाही या प्राधिकारी के समक्ष आवेदन निरस्त हो जाएंगे और अस्वीकृत समझे जाएंगे.
  • यदि इस संबंध में कोई धनराशि जमा की गई है तो ऐसे जमा किए जाने की तारीख से उसे भारतीय स्टेट बैंक की मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट (एमसीएलआर) की ब्याज दर पर कैलकुलेट करते हुए धनराशि वापस कर दी जाएगी.
  • नजूल भूमि के ऐसे पट्टाधारक जिनका पट्टा अभी भी चालू है और नियमित रूप से पट्टा किराया जमा कर रहे हैं और पट्टे की किसी भी शर्त का उल्लंघन नहीं किया है, के पट्टों को सरकार या तो ऐसी शर्तों पर जैसा सरकार समय-समय पर निर्धारित करती है, जारी रख सकती है या ऐसे पट्टों का निर्धारण कर सकती है.
  • पट्टा अवधि की समाप्ति के बाद ऐसी भूमि समस्त विलंगमों से मुक्त होकर स्वतः राज्य सरकार में निहित हो जाएगी.इस अधिनियम के अंतर्गत नजूल भूमि का आरक्षण एवं उसका उपयोग केवल सार्वजनिक इकाइयों के लिए ही किया जाएगा.

लखनऊ: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और संगठन के बीच की लड़ाई गुरुवार को मानसून सत्र तक पहुंच गई है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आवास विभाग से जुड़ा नजूल बिल विधानसभा से पास हो चुका है. गुरुवार को विधान परिषद में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने इस पर असहमति जता दी. विधानसभा में पास बिल अब विधान परिषद में फंस गया है. MLC भूपेन्द्र चौधरी ने कहा कि अभी इस मुद्दे पर सहमति नहीं है. इसलिए इसे प्रवर समिति में भेजा जाए. विधान परिषद सभापति ने आग्रह स्वीकार कर लिया.

यूपी लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद जब तब संगठन और सरकार आमने-सामने नजर आने लगे हैं. इससे पहले डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने 29 जुलाई को भाजपा ओबीसी मोर्चा की कार्य समिति के बैठक में कहा था कि सरकार से बड़ा संगठन है. चुनाव सरकार नहीं बल्कि पार्टी का संगठन जिताता है. 14 जुलाई को भी केशव मौर्य ने इस तरह का भाषण दिया था. कई मौकों पर वह ऐसा ही बयान देते रहे हैं. योगी से उनकी तल्खी खुलकर सामने आ चुकी है.

इस बार मामला मुख्यमंत्री के विभाग का है. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के कहने पर विधान परिषद में बिल रोक दिया गया है. यह बिल अब प्रवर समिति में जाएगा जहां लगभग 2 महीने तक इस पर गहन विचार विमर्श किया जाएगा. इसके बाद में संशोधन होंगे और तब या बिल दोबारा विधान परिषद में आएगा. जिसका सीधा अर्थ है कि यह बिल अब शीतकालीन सत्र में ही पास हो सकेगा.

नजूल बिल को लेकर न केवल समाजवादी पार्टी बल्कि भारतीय जनता पार्टी के विधायकों ने भी बुधवार को विधानसभा में विरोध किया था. इस संबंध में बड़ा हंगामा हुआ था. भारतीय जनता पार्टी के पूर्व मंत्री और प्रयागराज से विधायक सिद्धार्थनाथ सिंह ने भी इस मुद्दे पर विरोध किया था. इसके बावजूद बिल विधानसभा से पारित हो चुका था. विधान परिषद में गुरुवार को प्रश्नकाल के बाद जब नजूल बिल पर चर्चा शुरू हुई तो विपक्ष ने इस पर विरोध जताया.

विपक्ष का विरोध अपनी जगह था. मगर भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और विधान परिषद सदस्य भूपेंद्र सिंह चौधरी ने भी इसको संतुष्टिपरक नहीं बताया. उन्होंने विधान परिषद सभापति से अनुरोध किया कि इस बिल को प्रवर समिति के लिए भेज दिया जाए, जहां इसका परीक्षण किया जाएगा. संशोधनों के बाद इसे लागू किया जाएगा.

निश्चित तौर पर इसको सरकार वर्सेस संगठन का मामला बताया जा रहा है. मुख्यमंत्री के आवास विभाग की ओर से ले गए इस बिल को जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी के नेता नकार रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि सरकार और संगठन के बीच अभी कुछ ठीक नहीं हुआ है.

दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के विधान परिषद सदस्य आशुतोष सिन्हा का कहना है कि नजूल बिल के प्रावधान कुछ पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए बनाए गए हैं. इसलिए इसका प्रवर समिति में जाना और करीब 2 महीने तक इसका परीक्षण होना बहुत जरूरी है. इसको अगले सत्र में ही पास करने के लिए लाया जाए.

क्या है यह नजूल बिल : सदन में ले गए नजूल बिल में उसे जमीन की बात हो रही है जो कि राज्य सरकार की होती है. विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग तरीके से इसका आवंटन लीक के आधार पर किया जाता है. कई बार नजूल की जमीन कब्जे के आधार पर भी आवंटित की जाती है. समय-समय पर नजूल के पत्तों को फ्री होल्ड भी किया जाता है. मगर इस बार के बिल में यह स्पष्ट था कि जो भी जमीन प्लीज का समय पूरा कर चुकी है उसको फ्री होल्ड नहीं किया जाएगा. सरकार इस जमीन को कब्जदार से वापस लेकर उसका उपयोग करेगी. इस मुद्दे को लेकर विभक्ति नहीं भारतीय जनता पार्टी के सदस्य भी नजूल बिल का विरोध कर रहे हैं.

विधेयक की खास बातें

  • पारित विधेयक के मुताबिक नजूल भूमि के पूर्ण स्वामित्व परिवर्तन संबंधी किसी भी न्यायालय की कार्यवाही या प्राधिकारी के समक्ष आवेदन निरस्त हो जाएंगे और अस्वीकृत समझे जाएंगे.
  • यदि इस संबंध में कोई धनराशि जमा की गई है तो ऐसे जमा किए जाने की तारीख से उसे भारतीय स्टेट बैंक की मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट (एमसीएलआर) की ब्याज दर पर कैलकुलेट करते हुए धनराशि वापस कर दी जाएगी.
  • नजूल भूमि के ऐसे पट्टाधारक जिनका पट्टा अभी भी चालू है और नियमित रूप से पट्टा किराया जमा कर रहे हैं और पट्टे की किसी भी शर्त का उल्लंघन नहीं किया है, के पट्टों को सरकार या तो ऐसी शर्तों पर जैसा सरकार समय-समय पर निर्धारित करती है, जारी रख सकती है या ऐसे पट्टों का निर्धारण कर सकती है.
  • पट्टा अवधि की समाप्ति के बाद ऐसी भूमि समस्त विलंगमों से मुक्त होकर स्वतः राज्य सरकार में निहित हो जाएगी.इस अधिनियम के अंतर्गत नजूल भूमि का आरक्षण एवं उसका उपयोग केवल सार्वजनिक इकाइयों के लिए ही किया जाएगा.
Last Updated : Aug 2, 2024, 11:12 AM IST
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