मेरठ: मेरठ सिटी में स्थित सेंट जोसेफ कैथेड्रल चर्च 190 साल पुराना है. इसे भगवान यीशु के अनुयायी मेरठ का महा गिरजाघर मानते हैं. फादर जॉन चिन्मय ने ईटीवी भारत की टीम को बताया कि सेंट जोसेफ कैथेड्रल चर्च सन 1834 में तैयार हुआ था. इस चर्च को बेगम समरू ने बनवाया था. बेगम समरू ने यूपी के मेरठ में ही स्थापित सरधना का ऐतिहासिक चर्च भी बनवाया था. सन 1834 से लेकर ईसाइयों में जो कैथलिक समुदाय के लोग हैं, या उनकी आत्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहा है. वह यहां प्रार्थना करने आते हैं.
1956 में मिली थी महा गिरिजाघर की मान्यता: फादर चिन्मय बताते हैं कि आजादी से पहले जब देश पर ब्रिटिश हुकूमत चलती थी. तब ब्रिटिश हुकूमत की आयरिश रेजिमेंट थी, क्योंकि आयरलैंड एक कैथोलिक देश है. इसमें मुख्य रूप से आयरलैंड के सिपाही यहां प्रार्थना करने के लिए आया करते थे. उनके अलावा जो कैथलिक सम्प्रदाय से ताल्लुक रखते थे, वे सिविलियन भी यहां आया करते थे. आजादी के बाद 1956 में जब आगरा धर्मप्रांत से मेरठ धर्मप्रान्त अलग हुआ.
उस समय इस चर्च को महा गिरिजाघर की मान्यता मिली थी, जो कि हर एक धर्म प्रांत में एक ही चर्च होता है. इस समय सेंट जोसेफ महा गिरिजाघर है. महा गिरिजाघर इसलिए कहते हैं, क्योंकि जो धर्माध्यक्ष बिशप होते हैं. उनकी कुर्सी शिक्षा का प्रतीक है. यहां पर रखी रहती है और जब कभी भी बिशप स्वामी यहां पर आकर प्रार्थना करते हैं, तो वे इसी कुर्सी पर बैठते हैं.
फादर चिन्मय बताते हैं कि ये कुर्सी नैतिक शिक्षा और धार्मिक शिक्षा का प्रतीक है. महा गिरिजाघर की उपाधि की वजह से इस चर्च का अलग और विशेष महत्व है. इसीलिए, इसे कैथेड्रल कहा जाता है. वह बताते हैं कि कैथेड्रल लैटिन भाषा का शब्द है. कैथीड्रा यानी चेयर. इसलिए इसको कैथेड्रल कहा जाता है. दिसंबर के पहले हफ्ते से ही क्रिसमस की तैयारियां शुरू हो जाती हैं. न सिर्फ बाहय, बल्कि आत्मिक तैयारियां भी. इस बीच सभी यीशु के अनुयायियों के घर जाते हैं. कैरोल गाये जाते हैं, उसके बाद 9 दिवसीय विशेष प्रार्थना होती है, जो कि 23 दिसंबर की शाम को ही संपन्न हुई है. इसको नवीना प्रार्थना कहते हैं. यह प्रार्थना आत्मिक तैयारी के लिए होती है.
चर्च की सदस्य चांदी लॉयल बताती हैं कि यह चर्च 190 साल पुराना है. यहां क्रिसमस की तैयारियां चल रही हैं. ये त्यौहार सबके लिए शांति प्रेम और एकता का प्रतीक है. सभी को प्रेम, शांति और एकता का संदेश देता है. यहां हर धर्म के लोग अपनी श्रद्धा दिखाने के लिए आते हैं. फादर जॉन चिन्मय बताते हैं कि समय के साथ यहां भी कई बदलाव हुए हैं. हालांकि यह चर्च काफी भव्यता लिए हुए है. उसके अलावा यहां जीर्णोद्धार भी हुआ है. पहले यहां बिजली नहीं थी, वह बाद में यहां आई. यहां खास तीन घंटियां लगायी गयी हैं. यहां बड़े दिन के मौके पर दिनभर जश्न मनता है. यहां लोग मुराद मांगते हैं.
मेरठ सरधना में बेगम समरू ने बनवाया रोमन कैथलिक चर्च: मेरठ मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर सरधना में स्थित ऐतिहासिक चर्च को आस्था और इतिहास का बेजोड़ नमूना कहा जाता है. इस चर्च नाम इतना है कि देश का ऐसा कोई कोना नहीं है जहां से लोग यहां न आते हों. इतना ही नहीं देश के बाहर भी यह लोकप्रिय है. इसका अंदाजा इस बात से ही लगा सकते हैं कि देश के बाहर से भी काफी संख्या में यहां आकर लोग शीश नवाते हैं और पूजा करते हैं.
इस प्रसिद्ध चर्च के बारे में कहा जाता है कि यहां जो भी आता है, उसकी मुराद मां मरियम पूरा करती हैं. इस ऐतिहासिक चर्च को फरजाना उर्फ समरू बेगम के द्वारा बनावाया गया था. इस चर्च को पोप जॉन 23वें ने 1961 में माइनर बसिलिका का दर्जा प्रदान किया था. इसके बाद इस चर्च को चमत्कारी चर्च भी कहा जाता है.
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