प्रयागराज: जिले के चिल्ड्रन नेशनल इंस्टीट्यूट अनाथालय में 1962 में रहने वाली रानी और सुषमा नाम की दो बहनों को डेनमार्क की महिला गोद लेकर अपने साथ ले गई थी. अब रानी और सुषमा यहां पहुंचकर अपने बचपन याद ताजा की.
बच्चियों को कराई खरदीदारी
दरअसल, डेनमार्क से 61 साल बाद 2 अप्रैल को चिल्ड्रन नेशनल इंस्टीट्यूट अनाथालय पहुंचकर रानी और सुषमा का बचपन की यादें ताजा हो गया. इन दोनों ने 61 साल पहले जहां रहती थी, उस हिस्से को देखने के साथ ही उन्होंने पूरे परिसर का एक-एक कोना देखा और दो दिनों तक उसी परिसर में समय बिताकर अपने बचपन की सभी यादों को ताजा किया. इतना ही नहीं उन्होंने अनाथालय में रहने वाली बच्चियों को बाजार ले जाकर न सिर्फ खरदीदारी करवाई, बल्कि उन्हें उपहार भी दिलवाया. इसके साथ ही बच्चियों को शहर के दार्शनिक स्थलों का भ्रमण भी करवाया.
'सालों से प्रयागराज आना चाह रही थी'
वहीं, सुषमा और रानी ने बताया कि वो बचपन में डेनमार्क चली गई और वहीं पली बढ़ी, लेकिन उनके जेहन में प्रयागराज का वो अनाथालय बसा हुआ था, जहां उनका शुरुआती बचपन बीता था. वो अक्सर आपस में इस घर की यादों के बारे में चर्चा करती रहती थी और एक बार यहां वापस आना चाहती थी. अपने बचपन के घर को देखने के लिए सालों से वो विचार करती थी, लेकिन किसी कारण वापस आना संभव नहीं होता था. लेकिन मार्च महीने में उन्होंने प्लान बनाया और दोनों बहनें भारत भ्रमण पर आई. दिल्ली से होते हुए वो सीधा प्रयाजराज पहुंची और उन्होंने आनंद भवन के अंदर स्वराज भवन परिसर में जाकर चिल्ड्रन नेशनल इंस्टीट्यूट को देखा, जहां उनका बचपन बीता था.
इस दौरान अनाथालय में रहने वाली बच्चियों के साथ न मौज मस्ती भी की. साथ ही उनके साथ फोटो और वीडियो भी बनाया और उसे अपने साथ वापस ले गई. इसके साथ ही अनाथालय की बच्चियों से वादा किया है कि वो हर दो साल में एक बार उनसे मिलने जरूर आएंगी. जिससे हमेशा उनके जेहन में यहां की यादें ताजा रहेंगी.
दोनों को डेनमार्क की एक महिला ने लिया था गोद
बता दें कि 1962 तक प्रयागराज के अनाथालय में रही दोनों बहनों को डेनमार्क की एक महिला ने गोद ले लिया था और अपने साथ ले गई. इसके बाद वह दोनों बहनों की अच्छी परवरिश की. चिल्ड्रन नेशनल इंस्टीट्यूट के सचिव कर्नल आर के कॉक ने बताया कि रानी और सुषमा प्रयागराज आई हुई थी और जिस वक्त वो दोनों कैम्पस में आई हैं, उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े. यहीं, नहीं कर्नल कॉक ने यह भी बताया कि उनके यहां से जाने वाली लड़कियां इस संस्थान को अपना मायका मानती हैं और उसी तरह से वो अपने इस घर में वापस आती हैं और यहां रहने वाली बच्चियों के साथ समय बिताती हैं.
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