शिमला: हिमाचल हाईकोर्ट ने बुधवार को अपने फैसले में कहा था कि सरकार बिना तैयारी के 6 वर्ष की आयु से कम बच्चों को पहली कक्षा में दाखिला देने से मना नहीं कर सकती. याचिका पर फैसला सुनाते हुए हिमाचल हाईकोर्ट की डबल बेंच ने कहा था कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अपनाने से पहले प्रदेश सरकार को इस संदर्भ में केंद्र सरकार द्वारा 31 मार्च 2021 को जारी सूचना के तहत दिए सुझावों को चरणबद्ध तरीके से लागू करना होगा.
याचिकाकर्ता और हाईकोर्ट के अधिवक्ता नीरज शाश्वत ने आज मंडी में प्रेस कान्फ्रेंस में कहा कि नई शिक्षा नीति के तहत बच्चों का दाखिला करने के लिए स्कूलों को तीन प्रमुख नियमों का पालन करना होगा. स्कूल में बाल वाटिका होना, आधारभूत ढांचा व ईसीसी योग्यता प्राप्त अध्यापक का होना जरूरी है, लेकिन प्रदेश के अधिकतर स्कूल इन नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं
याचिकाकर्ता नीरज शाश्वत के मुताबिक, 'कोर्ट ने फैसला दिया है कि आधारभूत ढांचे और अन्य चीजों के बिना स्कूलों में अभी नई शिक्षा नीति को लागू करना संभव नहीं है. 5 साल तक एलकेजी और यूकेजी पूरी कर चुके बच्चों को भी स्कूल में अब दाखिला देना होगा, जबकि पहले नई शिक्षा नीति के तहत शिक्षा विभाग ने पहली कक्षा में 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों को दाखिला देने के लिए रोक लगा दी थी. हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद प्रदेश भर में 30 हजार से ज्यादा बच्चों को इसका लाभ मिलेगा, जिनके पहले दाखिल नहीं किए गए थे. अगर शिक्षा विभाग और स्कूल बच्चे का दाखिला करने से इनकार करते हैं तो यह न्यायालय के आदेशों की अवमानना होगी.'
हिमाचल हाईकोर्ट कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश राजीव शकधर और न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा था कि, 'किसी भी स्थिति में याचिकाकर्ता छात्रों को यूकेजी कक्षा दोहराने के लिए मजबूर करने से एनईपी (न्यू एजुकेशन पॉलिसी) 2020 का उद्देश्य पूरा नहीं होगा, क्योंकि सबसे पहले बालवाटिका-1, बालवाटिका-2 और बालवाटिका-3 के लिए पाठ्यक्रम अभी तक तैयार और प्रभावी नहीं किया गया है. इतना ही नहीं प्रदेश सरकार ने प्रारंभिक बाल देखभाल और शिक्षा (ईसीसीई) के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए कोई प्रशिक्षित शिक्षक भी नियुक्त नहीं किया है.'