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पांढुर्णा में 2 गांव के लोग एक-दूसरे पर बरसाएंगे पत्थर, जानिए आस्था और परंपरा की दिलचस्प कहानी - Pandhurna Gotmar Mela 2024

पांढुर्णा में सदियों से गोटमार मेले की परंपरा चली आ रही है. जिसमें दो गांव के लोग इकट्ठा होकर एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं. यह काफी खतरनाक है. इसमें अभी तक 14 लोगों की जान भी जा चुकी है. प्रशासन ने इस बार इसमें बदलाव करते हुए रबर की गेंद से खेलने का सुझाव दिया था, लेकिन लोग नहीं माने. खेल स्थल पर भारी मात्रा में पुलिस बल तैनात कर दिया गया है.

PANDHURNA GOTMAR MELA 2024
पांढुर्णा का गोटमार मेला (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Sep 2, 2024, 10:54 PM IST

छिन्दवाड़ा: पांढुर्णा में दशकों से एक परंपरा चली आ रही है. जिसमें दो गांवों के लोग एक जगह पर इकट्ठा होकर एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं. इस दौरान एसपी सहित भारी संख्या में पुलिस बल भी मौजूद रहता है. अभी तक इसमें चोट लगने की वजह से 14 लोगों की जान भी जा चुकी है. मानवाधिकार आयोग ने इसको संज्ञान में लेकर इसमें कुछ बदलाव का भी प्रस्ताव रखा था. पुलिस ने लोगों को रबर की गेंद उपलब्ध कराने की बात कही थी, लेकिन स्थानीय नहीं माने. इस परंपरा का नाम गोटमार मेला है. इस साल 3 सितंबर को इस मेले का आयोजन किया जाएगा.

दो गांवों के लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं

प्रसिद्ध गोटमार मेला पांढुर्णा व सावरगांव के बीच जाम नदी पर आयोजित किया जाता है. इस दौरान दोनों गांव के लोग एक दूसरे पर जमकर पत्थर बरसाते हैं. मेले की आराध्य मां चंडिका के चरणों में माथा टेककर लोग गोटमार मेले में शामिल होते हैं. इस मेले के समापन पर झंडा रूपी पलाश के पेड़ को खिलाड़ी मां चंडिका के मंदिर में अर्पित करते हैं. प्रशासन ने इसके लिए तैयारियां पूरी कर ली हैं. हजारों की संख्या में पुलिस बल को तैनात कर दिया गया है. इसके लिए आस-पास के जिलों से भी पुलिस बुलाई गई है. फेंकने के लिए प्रशासन ने सड़कों पर पत्थर का ढेर लगा दिया है.

प्रशासन ने कई बार इसको रोकने का असफल प्रयास किया

इस खेल में अभी तक 14 लोगों की जान जा चुकी है, इसके अलावा कई लोग गंभीर रूप से घायल भी हो चुके हैं. इसमें होने वाले खतरों को देखते हुए प्रशासन ने समय-समय पर इसको रोकने या बदलाव करने का प्रयास किया, लेकिन इसको खेलने वाले लोग नहीं माने. 2009 में मानवाधिकार आयोग ने संज्ञान लेते हुए इस पर रोक लगाने की कोशिश की. तत्कालीन कलेक्टर निकुंज श्रीवास्तव ने व एसपी मनमीत सिंह नारंग ने स्थल पर भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर मेले को रोकने का प्रयास किया था. जिससे आक्रोशित लोगों ने शहर में कई जगह तोड़फोड़ की और खेल स्थल पर पहुंचकर प्रशासन पर पत्थरबाजी भी कर दी थी.

GOTMAR MELA THROW STONE
फेंकने के लिए प्रशासन द्वारा पत्थरों का इंतजाम कर दिया गया है (ETV Bharat)

रबर की गेंद का इस्तेमाल करने का आईडिया भी नहीं आया काम

साल 2001 में प्रशासन ने रबर की गेंद से गोटमार खेलने का सुझाव दिया. इसके लिए खेल स्थल पर रबर की गेंद बिछा दी गई. शुरू में तो लोगों ने गेंद का इस्तेमाल किया, लेकिन दोपहर होते-होते उन्होंने पास की नदी से पत्थर लाकर एक दूसरे पर बरसाना शुरू कर दिया. इससे पहले भी 1979 और 1987 में प्रशासन ने इसको रोकने का प्रयास किया था. पत्थर चला रहे लोगों को हटाने के लिए आंसू गैस के गोले दागे गए थे, लेकिन यह परंपरा अपने उसी रूप में दशकों से चली आ रही है. प्रशासन ने कई बार इसको रोकने या इसमें बदलाव करने की कोशिश की, लेकिन उसको हर बार हार लोगों की जिद के सामने हार माननी पड़ी.

परंपरा से जुड़ी है एक प्रेम कहानी

गोटमार मेले की यह परंपरा एक प्रेम कहानी से जुड़ी है. इसको लेकर किवदंती है कि, यह दो गांव की दुश्मनी और प्रेम करने वाले युगल की याद में शुरू हुई. सावरगांव की लड़की थी और पांढुर्णा का लड़का, जो एक-दूसरे से प्रेम करते थे. एक दिन लड़का-लड़की को लेकर भाग रहा था और जाम नदी को पार करते समय लड़की पक्ष के लोगों ने देख लिया. फिर पत्थर मारकर रोकने की कोशिश की. यह बात लड़का पक्ष को पता चली तो वह उन्हें बचाने के लिए लड़की वालों पर पत्थर बरसाने लगे. हालांकि ये प्रेमी-प्रेमिका कौन थे आज तक किसी को पता नहीं. इसका इतिहास में भी कहीं जिक्र नहीं मिलता है, लेकिन तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है.

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तैयारियां पूरी कर ली गई है

पांढुर्णा कलेक्टर अजय देव शर्मा ने कहा है कि, "गोटमार मेला को लेकर सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं. अस्थाई अस्पताल भी बनाए गए हैं. परंपरा रीति रिवाज के अनुसार शांतिपूर्ण से तरीके से हो और गोटमार मेले में किसी प्रकार की परेशानी ना हो इसके लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं." पांढुर्ना-सावरगांव के लोगों ने सभी से शांति के साथ गोटमार मेला खेलने की अपील की है.

छिन्दवाड़ा: पांढुर्णा में दशकों से एक परंपरा चली आ रही है. जिसमें दो गांवों के लोग एक जगह पर इकट्ठा होकर एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं. इस दौरान एसपी सहित भारी संख्या में पुलिस बल भी मौजूद रहता है. अभी तक इसमें चोट लगने की वजह से 14 लोगों की जान भी जा चुकी है. मानवाधिकार आयोग ने इसको संज्ञान में लेकर इसमें कुछ बदलाव का भी प्रस्ताव रखा था. पुलिस ने लोगों को रबर की गेंद उपलब्ध कराने की बात कही थी, लेकिन स्थानीय नहीं माने. इस परंपरा का नाम गोटमार मेला है. इस साल 3 सितंबर को इस मेले का आयोजन किया जाएगा.

दो गांवों के लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं

प्रसिद्ध गोटमार मेला पांढुर्णा व सावरगांव के बीच जाम नदी पर आयोजित किया जाता है. इस दौरान दोनों गांव के लोग एक दूसरे पर जमकर पत्थर बरसाते हैं. मेले की आराध्य मां चंडिका के चरणों में माथा टेककर लोग गोटमार मेले में शामिल होते हैं. इस मेले के समापन पर झंडा रूपी पलाश के पेड़ को खिलाड़ी मां चंडिका के मंदिर में अर्पित करते हैं. प्रशासन ने इसके लिए तैयारियां पूरी कर ली हैं. हजारों की संख्या में पुलिस बल को तैनात कर दिया गया है. इसके लिए आस-पास के जिलों से भी पुलिस बुलाई गई है. फेंकने के लिए प्रशासन ने सड़कों पर पत्थर का ढेर लगा दिया है.

प्रशासन ने कई बार इसको रोकने का असफल प्रयास किया

इस खेल में अभी तक 14 लोगों की जान जा चुकी है, इसके अलावा कई लोग गंभीर रूप से घायल भी हो चुके हैं. इसमें होने वाले खतरों को देखते हुए प्रशासन ने समय-समय पर इसको रोकने या बदलाव करने का प्रयास किया, लेकिन इसको खेलने वाले लोग नहीं माने. 2009 में मानवाधिकार आयोग ने संज्ञान लेते हुए इस पर रोक लगाने की कोशिश की. तत्कालीन कलेक्टर निकुंज श्रीवास्तव ने व एसपी मनमीत सिंह नारंग ने स्थल पर भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर मेले को रोकने का प्रयास किया था. जिससे आक्रोशित लोगों ने शहर में कई जगह तोड़फोड़ की और खेल स्थल पर पहुंचकर प्रशासन पर पत्थरबाजी भी कर दी थी.

GOTMAR MELA THROW STONE
फेंकने के लिए प्रशासन द्वारा पत्थरों का इंतजाम कर दिया गया है (ETV Bharat)

रबर की गेंद का इस्तेमाल करने का आईडिया भी नहीं आया काम

साल 2001 में प्रशासन ने रबर की गेंद से गोटमार खेलने का सुझाव दिया. इसके लिए खेल स्थल पर रबर की गेंद बिछा दी गई. शुरू में तो लोगों ने गेंद का इस्तेमाल किया, लेकिन दोपहर होते-होते उन्होंने पास की नदी से पत्थर लाकर एक दूसरे पर बरसाना शुरू कर दिया. इससे पहले भी 1979 और 1987 में प्रशासन ने इसको रोकने का प्रयास किया था. पत्थर चला रहे लोगों को हटाने के लिए आंसू गैस के गोले दागे गए थे, लेकिन यह परंपरा अपने उसी रूप में दशकों से चली आ रही है. प्रशासन ने कई बार इसको रोकने या इसमें बदलाव करने की कोशिश की, लेकिन उसको हर बार हार लोगों की जिद के सामने हार माननी पड़ी.

परंपरा से जुड़ी है एक प्रेम कहानी

गोटमार मेले की यह परंपरा एक प्रेम कहानी से जुड़ी है. इसको लेकर किवदंती है कि, यह दो गांव की दुश्मनी और प्रेम करने वाले युगल की याद में शुरू हुई. सावरगांव की लड़की थी और पांढुर्णा का लड़का, जो एक-दूसरे से प्रेम करते थे. एक दिन लड़का-लड़की को लेकर भाग रहा था और जाम नदी को पार करते समय लड़की पक्ष के लोगों ने देख लिया. फिर पत्थर मारकर रोकने की कोशिश की. यह बात लड़का पक्ष को पता चली तो वह उन्हें बचाने के लिए लड़की वालों पर पत्थर बरसाने लगे. हालांकि ये प्रेमी-प्रेमिका कौन थे आज तक किसी को पता नहीं. इसका इतिहास में भी कहीं जिक्र नहीं मिलता है, लेकिन तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है.

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तैयारियां पूरी कर ली गई है

पांढुर्णा कलेक्टर अजय देव शर्मा ने कहा है कि, "गोटमार मेला को लेकर सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं. अस्थाई अस्पताल भी बनाए गए हैं. परंपरा रीति रिवाज के अनुसार शांतिपूर्ण से तरीके से हो और गोटमार मेले में किसी प्रकार की परेशानी ना हो इसके लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं." पांढुर्ना-सावरगांव के लोगों ने सभी से शांति के साथ गोटमार मेला खेलने की अपील की है.

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