फरीदाबाद: सनातन धर्म में हर त्योहार का अपना अलग-अलग महत्व होता है. यही वजह है कि हर एक त्योहार को सनातन धर्म में पूरी निष्ठा के साथ मनाया जाता है. एक महापर्व ऐसा भी है. जिसे लोक आस्था का महापर्व कहा जाता है. यानी छठ पूजा. वैसे तो छठ पूजा का पर्व साल में दो बार मनाया जाता है, लेकिन सबसे ज्यादा महत्व कार्तिक महीने में आने वाले छठ महापर्व का है. यही वजह है कि अब लोक आस्था का पर्व यानी छठ महापर्व विभिन्न देश और दुनिया में मनाया जाता है. इस साल यानी छठ महापर्व की शुरुआत 5 नवंबर 2024 यानी आज से हो रही है.
नहाए खाए से शुरू हुआ छठ महापर्व: आज से छठ महापर्व की शुरुआत हो गई है. छठ महापर्व 8 नवंबर तक चलेगा. ये पर्व सबसे कठिन माना जाता है. क्योंकि इस महापर्व में जो व्रत करते हैं. उन्हें सबसे लंबा व्रत यानी 36 घंटे का व्रत रखना पड़ता है. पंडित उमा शंकर मिश्रा के अनुसार इस छठ महापर्व की शुरुआत मां सीता ने की थी. इसके अलावा महाभारत काल में कर्ण ने भी छठ पूजा का व्रत रखा था और छठ पूजा की थी. शास्त्रों के अनुसार सूर्य भगवान की बहन मां छठी मैया है. वो भगवान कार्तिकेय की पत्नी हैं. पार्वती माता के छठे रूप को ही छठी माता कहा जाता है.
उगते और डूबे सूर्य को दिया जाता है अर्घ्य: जिन महिलाओं को बच्चे नहीं होते हैं. खासतौर पर वो महिलाएं इस पर्व को करती हैं. इसके अलावा अपने पुत्र की लंबी आयु को लेकर भी इस व्रत को किया जाता है मान्यता ऐसी है कि मां छठी का ध्यान करते हुए अगर कोई व्यक्ति कुछ मांगता है, तो मां उनकी मनोकामनाएं हमेशा पूरी करती है. वैसे तो उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, लेकिन लोक आस्था का ऐसा एकमात्र महापर्व है. छठ महापर्व जिसमें डूबते हुए सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है. चार दिवसीय लोक आस्था का महापर्व चतुर्थ तिथि से सप्तमी तिथि तक मनाया जाएगा.
पवित्रता के साथ मनाया जाता है प्रसाद: 5 नवंबर 2024 को आस्था का महापर्व नहाए खाए से शुरू हो गया है. आज व्रत करने वाले भक्त दिन में एक बार ही प्रसाद का ग्रहण करेंगे. इस प्रसाद को पवित्रता के साथ बनाया जाता है. इस प्रसाद में कच्चा चावल, कद्दू, चना और दाल को पीतल, मिट्टी या फिर कांस्य के बर्तन में पकाया जाता है, इसके बाद व्यक्ति इसका ग्रहण करते हैं.
दूसरे दिन महिलाएं रखेंगी निर्जली व्रत: इसके बाद 6 नवंबर को यानी महापर्व के दूसरे दिन खरना मनाया जाएगा. खरना की रात को व्रती महिलाएं पूरे विधि विधान और स्वच्छता के साथ गुड़ से बनी मीठी खीर, मीठा भात के साथ गुड़ से बनी हुई पूड़ी को तैयार करती हैं. इसके बाद पूरे परिवार के साथ अपने घर में छठी मैया की पूजा करते हैं. उसके बाद छठी मैया को प्रसाद का भोग लगते हैं. फिर उसी पूरे परिवार के साथ खुद भी महिलाएं प्रसाद ग्रहण करके निर्जला व्रत का संकल्प लेती हैं.
चौथे दिन होता है व्रत का समापन: महापर्व के तीसरे दिन व्रती पूरे विधि विधान के साथ निर्जला व्रत करते हैं. शाम को तरह-तरह के फल, मिठाइयां, ठेकुआ आदि लेकर नदी तालाब या कृत्रिम जल के स्रोत के किनारे रखकर व्रती पानी में स्नान करते हैं और डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं. इसके साथ ही अगली सुबह यानी महापर्व के चौथे दिन शाम की तरह ही सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं और छठी मैया को प्रणाम करते हैं और सभी छठ घाट से अपने घर लौट लौटते हैं और इसी के साथ ही छठ महापर्व का समापन होता है.
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