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यूपी में कितने दलित DM, SP, SHO और अधिकारी की तैनाती, सांसद चंद्रशेखर ने मुख्य सचिव से मांगा जवाब

मुख्य सचिव को लिखे पत्र में चंद्रशेखर ने कहा कि प्रदेश में जाति आधारित उत्पीड़न, शोषण, अपराध व हिंसा की घटनाएं बढ़ती ही जा रही

सांसद चंद्रशेखर आजाद
सांसद चंद्रशेखर आजाद (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 3 hours ago

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में नौ विधानसभा सीट के उपचुनाव के दौरान आजाद पार्टी (कांशीराम) अध्यक्ष और नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने नया दांव खेल दिया है. दलित राजनीति को हवा देते हुए चंद्रशेखर ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह को पत्र लिखकर दलित अफसर की सूची मांग ली है. सात बिंदुओं पर लिखे गए अपने पत्र में चंद्रशेखर ने ब्यूरोक्रेसी को लेकर बड़े सवाल उठाए हैं.

यूपी में जाति आधारित हिंसा और अपराध बढ़ रहा
चंद्रशेखर ने प्रमुख सचिव को भेज गए पत्र लिखा है कि 'आबादी के हिसाब से उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है. प्रदेश की आबादी लगभग 25 करोड़ है. वर्तमान में प्रदेश में 75 जिले हैं. प्रदेश की इस बड़ी जनसंख्या की तकरीबन 22% आबादी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की है. भारत के संविधान में जाति के आधार पर शोषण, अत्याचार व गैर बराबरी को खत्म करने व SC/ST को प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई. मैं भी इसी राज्य का हूं, इसलिए मुझे चिंता है. क्योंकि यहां जाति आधारित उत्पीड़न, शोषण, अपराध व हिंसा की घटनाएं कम होने की जगह बढ़ती ही जा रही हैं. '

वंचित वर्ग के पीड़ितों के बिना FIR थाने से भगाया जा रहा
सांसद ने आगे लिखा है कि 'हैरत की बात ये है कि अन्याय, अत्याचार व उत्पीड़न होने पर वंचित वर्ग के पीड़ितों को थाने से बिना FIR लिखे भगा देने की घटना, पुलिसकर्मियों द्वारा अभद्रता से पेश आने की घटना, FIR दर्ज भी होती है. कमजोर धाराएं लगाने की घटना, पीड़ितों द्वारा दी गई तहरीर बदल देने की घटना प्रकाश में आती रहतीं हैं. मेरी पार्टी के पदाधिकारियों व मैंने निजी तौर पर अनुभव किया है कि वंचित वर्ग के उत्पीड़न के मामलों में स्थानीय प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन का रवैया ज्यादातर मामलों में अत्यंत असंवेदनशील या आरोपी पक्ष की तरफ झुकाव का ही रहता है. किसी सभ्य समाज के निर्माण में यह स्थिति न सिर्फ बड़ी रुकावट बल्कि पीड़ादायक भी है.'

अधिकारियों और कर्मचारियों का रवैया गैरजिम्मेदाराना
चंद्रशेखर ने पत्र में लिखा है कि 'भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में देश के नागरिकों को एक समान न्याय, जीने की स्वतंत्रता व सामाजिक न्याय की अवधारणा को साकार करने के लिए विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका को पृथक-पृथक दायित्व दिए गए हैं. इनमें से कार्यपालिका वो महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो कि स्थानीय स्तर पर वंचित वर्गों के शोषण, अत्याचार, उत्पीड़न व हिंसा को रोकने का सबसे प्रभावी स्तंभ है. लेकिन प्रदेश की प्रशासनिक सेवा व पुलिस प्रशासन में बैठे ज्यादातर अधिकारी व कर्मचारी इस अन्याय- अत्याचार के खिलाफ लचर व गैर जिम्मेदाराना रवैया रखते हैं.

वास्तव में आरोपों में कितना दम?
इन समस्या के मूल में जो सबसे बड़ा आरोप लगता वो है कि निर्णय लेने के पदों पर वंचित वर्गों के अधिकारियों, कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों को प्रतिनिधित्व न दिया जाना बल्कि दूसरे शब्दों में कहें तो जिलाधिकारी, अपर जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक, अपर पुलिस अधीक्षक व थानाध्यक्षों की जाति देखकर नियुक्ति करना. इसलिए संसद सदस्य होने के साथ ही गृह संबंधी मामलों की संसदीय समिति का सदस्य और SC/ST कल्याण संबंधी संसदीय समिति का सदस्य होने के नाते मैं तथ्यों के साथ समझना चाहता हूं कि वास्तव में इन आरोपों में कितना दम है?


ये हैं चन्द्रशेखर के सवाल
1. उत्तर प्रदेश के विभिन्न विभागों में कितने अपर मुख्य सचिव/ मुख्य सचिव और सचिव SC/ST वर्ग के तैनात हैं.
2. उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग से कितने जिलाधिकारी, अपर जिलाधिकारी कार्यरत हैं.
3. उत्तर प्रदेश के 18 मंडलों में कितने कमिश्नर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के हैं.
4. प्रदेश के कितने जिलों में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक/पुलिस अधीक्षक SC/ST वर्ग के हैं.
5. प्रदेश के किस जोन में ADG/IG व किस रेंज में DIG SC/ST वर्गों के हैं.
6. प्रदेश के कितने पुलिस महानिदेशक (DG) व कितने अप पुलिस महानिदेशक SC/ST वर्ग से आते हैं.
7. प्रदेश के 75 जिलों में कोतवाली/थानों में कितने प्रभारी निरीक्षक SC/ST वर्गों से तैनात किए गए हैं.

इसे भी पढ़ें-सांसद चंद्रशेखर का ऐलान, सभी सीटों पर उपचुनाव लड़ेगी पार्टी, कहा- गरीबों पर हो रहे जुर्म, सूबे में है ताकतवर लोगों की सरकार

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में नौ विधानसभा सीट के उपचुनाव के दौरान आजाद पार्टी (कांशीराम) अध्यक्ष और नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने नया दांव खेल दिया है. दलित राजनीति को हवा देते हुए चंद्रशेखर ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह को पत्र लिखकर दलित अफसर की सूची मांग ली है. सात बिंदुओं पर लिखे गए अपने पत्र में चंद्रशेखर ने ब्यूरोक्रेसी को लेकर बड़े सवाल उठाए हैं.

यूपी में जाति आधारित हिंसा और अपराध बढ़ रहा
चंद्रशेखर ने प्रमुख सचिव को भेज गए पत्र लिखा है कि 'आबादी के हिसाब से उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है. प्रदेश की आबादी लगभग 25 करोड़ है. वर्तमान में प्रदेश में 75 जिले हैं. प्रदेश की इस बड़ी जनसंख्या की तकरीबन 22% आबादी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की है. भारत के संविधान में जाति के आधार पर शोषण, अत्याचार व गैर बराबरी को खत्म करने व SC/ST को प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई. मैं भी इसी राज्य का हूं, इसलिए मुझे चिंता है. क्योंकि यहां जाति आधारित उत्पीड़न, शोषण, अपराध व हिंसा की घटनाएं कम होने की जगह बढ़ती ही जा रही हैं. '

वंचित वर्ग के पीड़ितों के बिना FIR थाने से भगाया जा रहा
सांसद ने आगे लिखा है कि 'हैरत की बात ये है कि अन्याय, अत्याचार व उत्पीड़न होने पर वंचित वर्ग के पीड़ितों को थाने से बिना FIR लिखे भगा देने की घटना, पुलिसकर्मियों द्वारा अभद्रता से पेश आने की घटना, FIR दर्ज भी होती है. कमजोर धाराएं लगाने की घटना, पीड़ितों द्वारा दी गई तहरीर बदल देने की घटना प्रकाश में आती रहतीं हैं. मेरी पार्टी के पदाधिकारियों व मैंने निजी तौर पर अनुभव किया है कि वंचित वर्ग के उत्पीड़न के मामलों में स्थानीय प्रशासन एवं पुलिस प्रशासन का रवैया ज्यादातर मामलों में अत्यंत असंवेदनशील या आरोपी पक्ष की तरफ झुकाव का ही रहता है. किसी सभ्य समाज के निर्माण में यह स्थिति न सिर्फ बड़ी रुकावट बल्कि पीड़ादायक भी है.'

अधिकारियों और कर्मचारियों का रवैया गैरजिम्मेदाराना
चंद्रशेखर ने पत्र में लिखा है कि 'भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में देश के नागरिकों को एक समान न्याय, जीने की स्वतंत्रता व सामाजिक न्याय की अवधारणा को साकार करने के लिए विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका को पृथक-पृथक दायित्व दिए गए हैं. इनमें से कार्यपालिका वो महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो कि स्थानीय स्तर पर वंचित वर्गों के शोषण, अत्याचार, उत्पीड़न व हिंसा को रोकने का सबसे प्रभावी स्तंभ है. लेकिन प्रदेश की प्रशासनिक सेवा व पुलिस प्रशासन में बैठे ज्यादातर अधिकारी व कर्मचारी इस अन्याय- अत्याचार के खिलाफ लचर व गैर जिम्मेदाराना रवैया रखते हैं.

वास्तव में आरोपों में कितना दम?
इन समस्या के मूल में जो सबसे बड़ा आरोप लगता वो है कि निर्णय लेने के पदों पर वंचित वर्गों के अधिकारियों, कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों को प्रतिनिधित्व न दिया जाना बल्कि दूसरे शब्दों में कहें तो जिलाधिकारी, अपर जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक, अपर पुलिस अधीक्षक व थानाध्यक्षों की जाति देखकर नियुक्ति करना. इसलिए संसद सदस्य होने के साथ ही गृह संबंधी मामलों की संसदीय समिति का सदस्य और SC/ST कल्याण संबंधी संसदीय समिति का सदस्य होने के नाते मैं तथ्यों के साथ समझना चाहता हूं कि वास्तव में इन आरोपों में कितना दम है?


ये हैं चन्द्रशेखर के सवाल
1. उत्तर प्रदेश के विभिन्न विभागों में कितने अपर मुख्य सचिव/ मुख्य सचिव और सचिव SC/ST वर्ग के तैनात हैं.
2. उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग से कितने जिलाधिकारी, अपर जिलाधिकारी कार्यरत हैं.
3. उत्तर प्रदेश के 18 मंडलों में कितने कमिश्नर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के हैं.
4. प्रदेश के कितने जिलों में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक/पुलिस अधीक्षक SC/ST वर्ग के हैं.
5. प्रदेश के किस जोन में ADG/IG व किस रेंज में DIG SC/ST वर्गों के हैं.
6. प्रदेश के कितने पुलिस महानिदेशक (DG) व कितने अप पुलिस महानिदेशक SC/ST वर्ग से आते हैं.
7. प्रदेश के 75 जिलों में कोतवाली/थानों में कितने प्रभारी निरीक्षक SC/ST वर्गों से तैनात किए गए हैं.

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