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भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम की संवैधानिकता पर मंथन, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मांगा जवाब - Chhattisgarh Beggary Prevention Act

CHHATTISGARH HIGHCOURT बिलासपुर हाईकोर्ट ने भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम को लेकर राज्य सरकार से जवाब मांगा है. मामले में अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद होगी.

Bilaspur High Court
बिलासपुर हाईकोर्ट (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Aug 9, 2024, 10:04 AM IST

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम को राज्य में अंसवैधानिक घोषित करने की मांग करते हुए जनहित याचिका दायर की गई थी. मामले में गुरुवार को सुनवाई हुई. इस मामले में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से शपथपत्र मांगा है, जिसमें यह जानकारी मंगाई गई कि अब तक क्या कार्रवाई की गई है? कितने डिटेंशन सेंटर राज्य में काम कर रहे हैं? मामले की अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद होगी.

राज्य में अधिनियम के तहत भीख मांगना जुर्म: अधिवक्ता अमन सक्सेना ने एक जनहित याचिका लगाई थी. उन्होंने मामले की खुद पैरवी करते हुए राज्य में भिक्षा वृत्ति निवारण अधिनियम को अंसवैधानिक घोषित करने की मांग की है. राज्य में यह अधिनियम भिक्षा को एक जुर्म करार देता है. गरीबों को मुजरिम बताया जाता है. इस विधान के तहत पुलिस किसी भी व्यक्ति को इसके संदेह मे डिटेन कर सकती है. मध्यप्रदेश में साल 1973 में पारित इस विधान को छत्तीसगढ़ सरकार ने इसी रूप में ही स्वीकार कर लिया था. इसे चुनौती देते हुए अधिवक्ता अमन सक्सेना ने हाईकोर्ट में पीआईएल लगाई है, जिसमें बताया गया है कि राज्य में करीब ढाई हजार परिवार भिक्षा पर निर्भर हैं. इन लोगों को सरकार के सहयोग की जरूरत है.

दो हफ्ते बाद होगी अगली सुनवाई: इस मामले में चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की डिवीजन बेंच में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या इस एक्ट का दुरूपयोग किया गया है? जवाब में उन्होंने कहा कि कभी भी एक्ट का दुरूपयोग हो सकता है. मिसयूज के कारण ही एक्ट अंसवैधानिक नहीं होगा. अगर एक्ट ही गलत रूप में बनाया गया है तो वह अंसवैधानिक होता है. मामले की सुनवाई के दौरान एडवोकेट अमन सक्सेना ने कोर्ट में बताया कि केन्द्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री ने संसद में सभी राज्यों के जो आंकड़े पेश किए थे, उसमें छत्तीसगढ़ में 8 हजार भिक्षुओं के रहने का उल्लेख किया गया था. यह साल 2011 की जनगणना के आधार पर बताया गया था. मामले में दो हफ्ते बाद अगली सुनवाई होगी.

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राज्य में अधिनियम के तहत भीख मांगना जुर्म: अधिवक्ता अमन सक्सेना ने एक जनहित याचिका लगाई थी. उन्होंने मामले की खुद पैरवी करते हुए राज्य में भिक्षा वृत्ति निवारण अधिनियम को अंसवैधानिक घोषित करने की मांग की है. राज्य में यह अधिनियम भिक्षा को एक जुर्म करार देता है. गरीबों को मुजरिम बताया जाता है. इस विधान के तहत पुलिस किसी भी व्यक्ति को इसके संदेह मे डिटेन कर सकती है. मध्यप्रदेश में साल 1973 में पारित इस विधान को छत्तीसगढ़ सरकार ने इसी रूप में ही स्वीकार कर लिया था. इसे चुनौती देते हुए अधिवक्ता अमन सक्सेना ने हाईकोर्ट में पीआईएल लगाई है, जिसमें बताया गया है कि राज्य में करीब ढाई हजार परिवार भिक्षा पर निर्भर हैं. इन लोगों को सरकार के सहयोग की जरूरत है.

दो हफ्ते बाद होगी अगली सुनवाई: इस मामले में चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की डिवीजन बेंच में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या इस एक्ट का दुरूपयोग किया गया है? जवाब में उन्होंने कहा कि कभी भी एक्ट का दुरूपयोग हो सकता है. मिसयूज के कारण ही एक्ट अंसवैधानिक नहीं होगा. अगर एक्ट ही गलत रूप में बनाया गया है तो वह अंसवैधानिक होता है. मामले की सुनवाई के दौरान एडवोकेट अमन सक्सेना ने कोर्ट में बताया कि केन्द्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री ने संसद में सभी राज्यों के जो आंकड़े पेश किए थे, उसमें छत्तीसगढ़ में 8 हजार भिक्षुओं के रहने का उल्लेख किया गया था. यह साल 2011 की जनगणना के आधार पर बताया गया था. मामले में दो हफ्ते बाद अगली सुनवाई होगी.

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