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नेशनल गेम्स घोटाला मामले में सीबीआई का क्लोजर रिपोर्ट अस्वीकार, विशेष अदालत ने जांच जारी रखने का दिया आदेश - National Games Scam - NATIONAL GAMES SCAM

CBI Closure Report. नेशनल गेम घोटाला मामले में सीबीआई के क्लोजर रिपोर्ट को स्पेशल कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया है. विशेष अदालत ने मामले की जांच जारी रखने का आदेश दिया है.

NATIONAL GAMES SCAM
रांची सीबीआई कोर्ट (ईटीवी भारत- फाइल फोटो)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Sep 13, 2024, 4:26 PM IST

रांची: नेशनल गेम्स घोटाला मामले में सीबीआई के क्लोजर रिपोर्ट को अस्वीकार करते हुए विशेष अदालत ने जांच जारी रखने का आदेश दिया है. दरअसल, इसी साल सीबीआई ने साक्ष्य की कमी का हवाला देते हुए क्लोजर रिपोर्ट फाइल किया था. इसको याचिकाकर्ता सूर्य सिंह बेसरा और पंकज कुमार यादव ने विधानसभा समिति की रिपोर्ट को आधार बनाकर चुनौती दी थी.

याचिकाकर्ता का पक्ष सुनने के बाद पीके शर्मा की विशेष अदालत ने सीबीआई को जांच जारी रखने का आदेश दिया है. याचिकाकर्ता पंकज कुमार यादव के अधिवक्ता प्रशांत कुमार श्रीवास्तव ने ईटीवी भारत को बताया कि 10 सितंबर को कोर्ट ने आदेश जारी किया है.

दरअसल, 12 फरवरी 2011 से 26 फरवरी 2011 तक झारखंड में 34वें राष्ट्रीय खेल का आयोजन हुआ था. लेकिन इस आयोजन के लिए स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स के निर्माण, परामर्शी का चयन, सामान की खरीदारी की प्रक्रिया कई वर्ष पहले शुरु हो गयी थी. इसी दौरान आयोजन में धांधली की बातें सामने आई थी. यह मामला विधानसभा में उठा था. इसी आधार पर 23 अगस्त 2006 को विशेष समिति का गठन हुआ था. समिति के संयोजक सरयू राय बनाये गये थे. समिति में गिरिनाथ सिंह, राधाकृष्ण किशोर, रवींद्र कुमार राय, आलमगीर आलम, रवींद्रनाथ महतो और अपर्णा सेन गुप्ता को सदस्य मनोनीत किया गया था.

समिति को यह देखना था कि मेगा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स का प्राक्कलन 206 करोड़ से बढ़ाकर 450 करोड़ रु. करने के पीछे कोई अनियमितता तो नहीं हुई थी. जांच में यह बात सामने आई थी कि परामर्शी और संवेदक निविदा देते समय ऐसे विशेषज्ञों का नाम दिए थे जो वास्तव में निविदादाता कंपनियों के साथ नहीं पाए गये. नियम के विरूद्ध टेंडर किया गया.

समान की खरीददारी में अनियमितता बरती गयी. आयोजन समिति, टेंडर समिति, पूर्व विभागीय मंत्री सवालों के घेरे में थे. समिति ने एक उच्च स्तरीय कमेटी गठित करने की अनुशंसा की थी. समिति ने बताया कि मेगा स्पोर्ट्स का प्रारंभिक आकलन 206 करोड़ का था. निविदा के समय प्राक्कलन बढ़कर 340.67 करोड़ हो गया. जबकि निविदा के निष्पादन के समय यह राशि 424 करोड़ पहुंच गई.

तत्कालीन विभागीय मंत्री सुदेश महतो ने समिति को बताया था कि 34वें राष्ट्रीय खेल-2007 के आयोजन के लिए मेजबान के रूप में चयनित होना गौरव की बात है. आधारभूत संरचना, खेल सुविधा और मुख्य स्टेडियम, इंडोर स्टेडियम, रणताल, शूटिंग रेंज जैसी जरूरतों को देखते हुए अगस्त 2004 में परामर्शी ने 206 करोड़ रु की लागत का आकलन किया था. इसके बाद संरचनाओं में कई चीजें जोड़ी गईं. निर्माण सामग्रियों को लागत मूल्य और मजदूरी दर में वृद्धि के चलते प्राक्कलित राशि में वृद्धि हो गई.

आपको बता दें कि पूर्व में इस घोटाले की जांच की जिम्मेदारी एसीबी को दी गई थी. लेकिन जांच में विलंब होने पर अलग-अलग समय पर तीन याचिकाएं दायर कर सीबीआई से मामले की जांच का आग्रह किया गया था. अप्रैल 2022 में झारखंड हाईकोर्ट ने जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के बाद सीबीआई से जांच कराने का आदेश दिया था. इससे पहले साल 2018 में तत्कालीन खेल मंत्री अमर कुमार बाउरी ने सीबीआई जांच की अनुशंसा की थी. एसीबी ने जांच के दौरान पूर्व खेल निदेशक पीसी मिश्रा, आयोजन समिति सचिव एसएम हाशमी और कोषाध्यक्ष मधुकांत पाठक को जेल भेजा था.

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याचिकाकर्ता का पक्ष सुनने के बाद पीके शर्मा की विशेष अदालत ने सीबीआई को जांच जारी रखने का आदेश दिया है. याचिकाकर्ता पंकज कुमार यादव के अधिवक्ता प्रशांत कुमार श्रीवास्तव ने ईटीवी भारत को बताया कि 10 सितंबर को कोर्ट ने आदेश जारी किया है.

दरअसल, 12 फरवरी 2011 से 26 फरवरी 2011 तक झारखंड में 34वें राष्ट्रीय खेल का आयोजन हुआ था. लेकिन इस आयोजन के लिए स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स के निर्माण, परामर्शी का चयन, सामान की खरीदारी की प्रक्रिया कई वर्ष पहले शुरु हो गयी थी. इसी दौरान आयोजन में धांधली की बातें सामने आई थी. यह मामला विधानसभा में उठा था. इसी आधार पर 23 अगस्त 2006 को विशेष समिति का गठन हुआ था. समिति के संयोजक सरयू राय बनाये गये थे. समिति में गिरिनाथ सिंह, राधाकृष्ण किशोर, रवींद्र कुमार राय, आलमगीर आलम, रवींद्रनाथ महतो और अपर्णा सेन गुप्ता को सदस्य मनोनीत किया गया था.

समिति को यह देखना था कि मेगा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स का प्राक्कलन 206 करोड़ से बढ़ाकर 450 करोड़ रु. करने के पीछे कोई अनियमितता तो नहीं हुई थी. जांच में यह बात सामने आई थी कि परामर्शी और संवेदक निविदा देते समय ऐसे विशेषज्ञों का नाम दिए थे जो वास्तव में निविदादाता कंपनियों के साथ नहीं पाए गये. नियम के विरूद्ध टेंडर किया गया.

समान की खरीददारी में अनियमितता बरती गयी. आयोजन समिति, टेंडर समिति, पूर्व विभागीय मंत्री सवालों के घेरे में थे. समिति ने एक उच्च स्तरीय कमेटी गठित करने की अनुशंसा की थी. समिति ने बताया कि मेगा स्पोर्ट्स का प्रारंभिक आकलन 206 करोड़ का था. निविदा के समय प्राक्कलन बढ़कर 340.67 करोड़ हो गया. जबकि निविदा के निष्पादन के समय यह राशि 424 करोड़ पहुंच गई.

तत्कालीन विभागीय मंत्री सुदेश महतो ने समिति को बताया था कि 34वें राष्ट्रीय खेल-2007 के आयोजन के लिए मेजबान के रूप में चयनित होना गौरव की बात है. आधारभूत संरचना, खेल सुविधा और मुख्य स्टेडियम, इंडोर स्टेडियम, रणताल, शूटिंग रेंज जैसी जरूरतों को देखते हुए अगस्त 2004 में परामर्शी ने 206 करोड़ रु की लागत का आकलन किया था. इसके बाद संरचनाओं में कई चीजें जोड़ी गईं. निर्माण सामग्रियों को लागत मूल्य और मजदूरी दर में वृद्धि के चलते प्राक्कलित राशि में वृद्धि हो गई.

आपको बता दें कि पूर्व में इस घोटाले की जांच की जिम्मेदारी एसीबी को दी गई थी. लेकिन जांच में विलंब होने पर अलग-अलग समय पर तीन याचिकाएं दायर कर सीबीआई से मामले की जांच का आग्रह किया गया था. अप्रैल 2022 में झारखंड हाईकोर्ट ने जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के बाद सीबीआई से जांच कराने का आदेश दिया था. इससे पहले साल 2018 में तत्कालीन खेल मंत्री अमर कुमार बाउरी ने सीबीआई जांच की अनुशंसा की थी. एसीबी ने जांच के दौरान पूर्व खेल निदेशक पीसी मिश्रा, आयोजन समिति सचिव एसएम हाशमी और कोषाध्यक्ष मधुकांत पाठक को जेल भेजा था.

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