पटना: बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली की वजह से बड़ी संख्या में मरीज बेहतर इलाज के लिए राज्य से बाहर जाने को मजबूर हैं. बावजूद इसके, कैग की ताजा रिपोर्ट ने सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में बड़ी चूक को उजागर किया है. वित्तीय वर्ष 2016-17 से 2021-22 के बीच सरकार द्वारा आवंटित 69790.83 करोड़ के बजट में से सिर्फ 69% राशि ही खर्च की जा सकी, जबकि 21743.004 करोड़ रुपये बिना उपयोग के रह गए. यह न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही का प्रमाण है, बल्कि जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ भी है.
स्वास्थ्य पर CAG की रिपोर्ट: बिहार सरकार की ओर से शीतकालीन सत्र में आज कैग रिपोर्ट भी सदन में पेश किया गया. लोक स्वास्थ्य आधारभूत संरचना और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन पर सीएजी का रिपोर्ट तैयार किया गया है. कैग के रिपोर्ट में वित्तीय वर्ष 2016-17 से 2021-22 के दौरान सरकार की ओर से 69790.83 करोड़ का बजट प्रावधान किया गया था. इसमें से विभाग केवल 48047.79 करोड़ यानी कि 69% राशि ही खर्च कर पाया. 31% राशि जो 21743.004 करोड़ रुपए होता है खर्च नहीं किया गया.
क्या है बजट की राशिः बजट की राशि खर्च नहीं होने के पीछे मुख्य वजह जिलों से समय पर मांग पत्र की प्राप्ति नहीं होना रिपोर्ट में बताया गया है. बिहार में सकल राज्य घरेलू उत्पाद जीएसडीपी के मुकाबले स्वास्थ्य देखभाल पर व्यय की प्रतिशतता केवल 1.33% और 1.73 प्रतिशत के बीच थी, जबकि राज्य के बजट के मुकाबले स्वास्थ्य देखभाल पर व्यय की प्रतिशतता जीएसडीपी और राज्य बजट के आवश्यक 2.5% और 8% की तुलना में कम थी जो कि क्रमश 3.31% और 4.41% के बीच थी.
WHO मानक से कम है डॉक्टरः बिहार में मार्च 2022 तक 12.49 करोड़ की अनुमानित आबादी के सापेक्ष विश्व स्वास्थ्य संगठन ( डब्ल्यू एच ओ) की अनुशंसा को पूरा करने के लिए 124919 एलोपैथिक डॉक्टर की आवश्यकता थी. 1000 पर एक डॉक्टर के हिसाब से, जिसके सापेक्ष जनवरी 2022 तक केवल 2148 मरीजों पर एक डॉक्टर उपलब्ध था यानी 58144 एलोपैथिक डॉक्टर ही बिहार में उपलब्ध था.
उपकरण की कमीः कैग ने अपनी रिपोर्ट में दवा से लेकर स्वास्थ्य सेवा के उपकरण की कमी के तरफ भी इशारा किया है. कैग ने राज्य सरकार को 31 अनुशंसा भी की है जिसमें मानदंडों और मापदंडों के अनुसार स्वास्थ्य देखभाल इकाइयों में पर्याप्त संख्या में स्वास्थ्य कर्मियों की तैनाती होनी चाहिए. पंजीकरण काउंटर और पंजीकरण कर्मचारियों की संख्या बढाते हुए पंजीकरण के लिए प्रतीक्षा का समय कम होना चाहिए. जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन के लिए व्यापक योजना तैयार होना चाहिए.
स्टाफ की कमीः विभाग के कार्यों स्वास्थ्य सेवा निदेशालय, राज्य औषधि नियंत्रक खाद्य सुरक्षा स्कंध, आयुष और मेडिकल कॉलेज एवं अस्पतालों में 49% रिक्तियां थी. सुकृति बोल के सापेक्ष स्टाफ नर्स की कमी 18% पटना में, 72% की कमी पूर्णिया में थे. वहीं पैरामेडिक्स की कमी 45% जमुई में और 90% पूर्वी चंपारण में थे. सीएजी पहले भी बिहार सरकार के विभिन्न विभागों के बारे में रिपोर्ट जारी कर कई खुलासे करता रहा है.
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