बुरहानपुर। शहर के आलमगंज क्षेत्र में आज भी 200 साल पुरानी परंपरा जीवित है. दरअसल, किन्नरों द्वारा हर साल उनके गुरु की याद में पुरानी परंपरा निभाई जाती है. उनकी याद में गाजे-बाजे के साथ संदल निकाला जाता है. संदल के दौरान किन्नरों ने गर्मजोशी से खुशियां मनाईं. किन्नर ढोल-नगाड़ों की थाप पर जमकर झूमे. पूरा रास्ते में किन्नर हाथों में बड़े थाल में फूल मालाएं लेकर निकले. नाचते-गाते सड़कों पर किन्रर निकले तो राहगीर ये जानने की कोशिश करते नजर आए कि ये क्या और क्यों हो रहा है.
देशवासियों के लिए सुख-समृद्धि की दुआ मांगी
यह संदल आलमगंज से शुरू होकर ट्रांसपोर्ट नगर स्थित कब्रिस्तान पहुंचा, यहां किन्नरों के गुरु के कब्र पर चादर चढ़ाई गई. किन्नरों ने अपने गुरु से देश में अमन चैन की दुआ मांगी. बता दें कि साल में एक दिन किन्नर जश्न मनाते हैं. अपने गुरु की कब्र पर चादर और फूलों की माला चढ़ाते हैं. इस दौरान देशवासियों की सुख समृद्धि की कामना करते हैं. किन्नरों की प्रमुख शकीला उर्फ पिंकी किन्नर ने बताया "यह परंपरा 200 सालों से चली आ रही है. इस दिन बड़ी शिद्दत से जश्न मनाया जाता है. गुरु की याद में संदल निकालते हैं."
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पड़ोसी राज्यों को किन्नरों की दावत देने की परंपरा
किन्नरों की प्रमुख शकीला बताती हैं "इस मौके पर आसपास के किन्नरों को दावत के लिए बुलाते हैं. एक-दूसरे को बधाइयां दी जाती हैं. हम सब किन्नर देशवासियों के बेहतर स्वास्थ्य, रोजगार, सुख समृद्धि, संतान सुख प्राप्ति, लोगों के कष्ट दूर करने सहित देश मे अमन-चैन की दुआ करते हैं. हमारे गुरु के आशीर्वाद से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं." इस दिन को आलमगंज के किन्नर बड़े उत्सव के रूप में मनाते हैं. हर साल बड़ी संख्या में महाराष्ट्र, गुजरात सहित अन्य राज्यों के किन्नरों को बुलाया जाता है, लेकिन इस बार दीपावली पर्व के चलते जिले के किन्नरों को ही बुलाया गया. इस दौरान नेपानगर, बुरहानपुर के किन्नर मौजूद रहे.