विकासनगर: जौनसार बावर जनजातीय क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली का आगाज हो गया है. ब्रह्म मुहूर्त में ग्रामीणों ने मशालें जलाकर दिवाली का आगाज किया है. बूढ़ी दिवाली को मनाने के लिए नौकरी पेशा के लिए शहर गए लोग भी गांव लौट आए हैं. गांव-गांव में बूढ़ी दिवाली को लेकर रौनक देखने को मिल रहा है.
देहरादून जिले का जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर अपनी अनोखी संस्कृति के रूप में विश्व विख्यात है. यहां के त्योहार अलग ही अंदाज में मनाए जाते हैं. जहां देश की दिवाली एक महीने पहले समाप्त हो चुकी है तो वहीं जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर में ठीक एक महीने बाद बूढ़ी दीवाली मनाने की परंपरा है. इसी कड़ी में रविवार यानी 1 दिसंबर की सुबह से बूढ़ी दीवाली का आगाज छोटी दीवाली के रूप में होले मशालें जलाकर शुरू हो गया है.
ग्रामीणों ने ढोल दमाऊं की थाप पर दिवाली पर गाए जाने वाले गीत और मशालें जलाकर बूढ़ी दीवाली का आगाज किया. दूसरे दिन यानी सोमवार को भव्य तरीके से बूढ़ी दीवाली मनाई जाएगी. लोक पंचायत के सदस्य भारत चौहान ने कहा कि जौनसार बावर की समृद्ध संस्कृति है, जिस प्रकार से यहां तीज त्योहारों में लोग पारंपरिक पोशाक पहनकर त्योहारों में नाच गाना होता है, उससे ये प्रतीत होता है कि यह क्षेत्र कितना वैभवशाली और राजाओं की तरह रहा होगा.
एक महीने बाद क्यों मनाई जाती है दिवाली? उन्होंने कहा कि लोगों का बूढ़ी दिवाली को एक महीने बाद मनाने के पीछे अलग-अलग कथन हैं. जिसके तहत ये भी कहा जाता है कि भगवान राम के अयोध्या लौटने की सूचना एक महीने बाद मिली. जिसके बाद यहां एक महीने बाद दिवाली (दीपावली) मनाई जाती है. उनका कहना है कि इस कथन में कोई भी सच्चाई नहीं लगती. क्योंकि, सारे त्योहार समय से मनाए जाते हैं.
इसके अलावा उन्होंने कहा कि बूढ़ी दीवाली इसलिए भी एक महीने बाद मनाने की परंपरा है कि यह क्षेत्र कृर्षि प्रदान है. जब दीपावली का त्योहार होता है, उस समय बारह किस्म के अनाज यानी फसल खेतों में पक कर तैयार होती है, उस दौरान लोग खेती-बाड़ी के काम मे जुटे रहते हैं. काम निपटा कर एक महीने बाद बूढ़ी दीवाली जौनसार बावर में ही नहीं हिमाचल प्रदेश और गढ़वाल के कुछ क्षेत्र में बूढ़ी दीवाली मनाने की परंपरा है.
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