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झारखंड में भाजपा की नैया पार लगाएंगे शिवराज सिंह चौहान और हिमंता बिस्वा सरमा, सत्ता हासिल करना बड़ी चुनौती - Jharkhand BJP

Jharkhand election incharge. झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं. इसे देखते हुए शिवराज सिंह चौहान को बीजेपी ने झारखंड का चुनाव प्रभारी बनाया है. वहीं हिमंता बिस्वा सरमा को सह प्रभारी बनाया गया है. दोनों के सामने विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जीत दिलाने की चुनौती होगी.

Jharkhand election incharge
शिवराज सिंंह चौहान और हिमंता बिस्वा शर्मा (ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jun 17, 2024, 4:01 PM IST

रांची: झारखंड में इसी साल नवंबर-दिसंबर में विधानसभा का चुनाव होना है. लिहाजा, लोकसभा चुनाव खत्म होते ही ना सिर्फ सत्ताधारी दल बल्कि मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने भी अपनी तैयारी शुरू कर दी है. इस बार भाजपा ने मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सह मोदी कैबिनेट में मंत्री बने शिवराज सिंह चौहान को झारखंड का चुनाव प्रभारी बनाया है. उनके नेतृत्व में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी 29 सीटों पर जीत दर्ज की है.

उनके इस अभियान में सहयोग के लिए असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को चुनाव सह प्रभारी बनाया गया है. हिमंता के नेतृत्व में भाजपा ने असम की 14 में से 9 सीटों पर जीत हासिल की थी. खास बात है कि शिवराज सिंह चौहान की पहचान बेहद मिलनसार और भाजपा के कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में होती है. जबकि कांग्रेस से भाजपा में आए हिमंता बिस्वा को भाषण की आक्रामक शैली के लिए जाना जाता है. इस बाबत पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह ने पत्र जारी कर दिया है. 2019 के चुनाव के वक्त भाजपा ने ओम माथुर को झारखंड का चुनाव प्रभारी बनाया था. दोनों ही नेताओं के लिए झारखंड में बीजेपी को फिर से सरकार में लाने की चुनौती होगी.

दरअसल, राज्य बनने के बाद पहली बार 2014 में भाजपा ने झारखंड में बहुमत की सरकार बनायी थी. वही दौर था जब पहली बार राज्य को रघुवर दास के रूप में गैर आदिवासी मुख्यमंत्री मिला था. तब झारखंड में डबल इंजन की सरकार का हवाला दिया जाता था. लेकिन 2019 के चुनाव में प्रदेश की जनता ने भाजपा को नकार दिया. यहां तक कि मुख्यमंत्री रहते रघुवर दास भी अपनी परंपरागत जमशेदपुर पूर्वी सीट से चुनाव हार गये. उस दौरान अपने बूते 65 पार का नारा देने वाली भाजपा 25 सीटों पर सिमट गई थी. वहीं 30 विधायकों के साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा सबसे बड़ा दल बनकर उभरा.

कांग्रेस और राजद से सहयोग से झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने. लेकिन चार साल का कार्यकाल पूरा करने के चंद दिनों के भीतर यानी 31 जनवरी को उन्हें सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी. ईडी ने उन्हें लैंड स्कैम मामले में गिरफ्तार कर लिया. उनके जेल जाने के बाद से झारखंड में चंपाई सोरेन के नेतृत्व में सरकार चल रही है.

पिछले दिनों ईटीवी भारत के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत के दौरान झारखंड भाजपा के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा था कि इस बार झारखंड में भाजपा की सरकार बनेगी. एनडीए को बहुमत मिलेगा. वैसे लोकसभा चुनाव में भाजपा को राज्य की 14 में से अपनी तीन एसटी सीटें गंवानी पड़ी थी. आलम यह रहा कि अर्जुन मुंडा जैसे केंद्रीय मंत्री को खूंटी की जनता ने नकार दिया. जबकि लोहरदगा में समीर उरांव और दुमका में सीता सोरेन चुनाव हार गयीं.

इस नतीजे के बाद इंडिया गठबंधन ने भाजपा के लिए इसे आदिवासी विरोध का इनाम बताया. हालांकि भाजपा का मानना है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव काफी अलग होते हैं. शायद यही वजह है कि भाजपा ने अपने स्ट्रैटजी बदल दी है. 2019 में रघुवर दास के नाम पर चुनाव मैदान में उतरकर मात खाने वाली भाजपा इस बार पार्टी के नाम पर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं.

यह भी पढ़ें: चुनावी मोड में बीजेपीः केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान को बनाया गया झारखंड का चुनाव प्रभारी, हिमंता विश्व सरमा बने सह प्रभारी - Jharkhand Assembly Election

यह भी पढ़ें: एसटी सीटों पर भाजपा की हार, मोदी कैबिनेट में कुर्मी की उपेक्षा, अर्जुन मुंडा की भूमिका जैसे सवालों का बाबूलाल मरांडी ने दिया जवाब - Babulal Marandi Exclusive

यह भी पढ़ें: नरेंद्र मोदी तीसरी बार संभालेंगे देश की कमान, शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेंगे झारखंड बीजेपी के कई नेता, कांग्रेस ने कसा तंज - Narendra Modi Oath

रांची: झारखंड में इसी साल नवंबर-दिसंबर में विधानसभा का चुनाव होना है. लिहाजा, लोकसभा चुनाव खत्म होते ही ना सिर्फ सत्ताधारी दल बल्कि मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने भी अपनी तैयारी शुरू कर दी है. इस बार भाजपा ने मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सह मोदी कैबिनेट में मंत्री बने शिवराज सिंह चौहान को झारखंड का चुनाव प्रभारी बनाया है. उनके नेतृत्व में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी 29 सीटों पर जीत दर्ज की है.

उनके इस अभियान में सहयोग के लिए असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को चुनाव सह प्रभारी बनाया गया है. हिमंता के नेतृत्व में भाजपा ने असम की 14 में से 9 सीटों पर जीत हासिल की थी. खास बात है कि शिवराज सिंह चौहान की पहचान बेहद मिलनसार और भाजपा के कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में होती है. जबकि कांग्रेस से भाजपा में आए हिमंता बिस्वा को भाषण की आक्रामक शैली के लिए जाना जाता है. इस बाबत पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह ने पत्र जारी कर दिया है. 2019 के चुनाव के वक्त भाजपा ने ओम माथुर को झारखंड का चुनाव प्रभारी बनाया था. दोनों ही नेताओं के लिए झारखंड में बीजेपी को फिर से सरकार में लाने की चुनौती होगी.

दरअसल, राज्य बनने के बाद पहली बार 2014 में भाजपा ने झारखंड में बहुमत की सरकार बनायी थी. वही दौर था जब पहली बार राज्य को रघुवर दास के रूप में गैर आदिवासी मुख्यमंत्री मिला था. तब झारखंड में डबल इंजन की सरकार का हवाला दिया जाता था. लेकिन 2019 के चुनाव में प्रदेश की जनता ने भाजपा को नकार दिया. यहां तक कि मुख्यमंत्री रहते रघुवर दास भी अपनी परंपरागत जमशेदपुर पूर्वी सीट से चुनाव हार गये. उस दौरान अपने बूते 65 पार का नारा देने वाली भाजपा 25 सीटों पर सिमट गई थी. वहीं 30 विधायकों के साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा सबसे बड़ा दल बनकर उभरा.

कांग्रेस और राजद से सहयोग से झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने. लेकिन चार साल का कार्यकाल पूरा करने के चंद दिनों के भीतर यानी 31 जनवरी को उन्हें सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी. ईडी ने उन्हें लैंड स्कैम मामले में गिरफ्तार कर लिया. उनके जेल जाने के बाद से झारखंड में चंपाई सोरेन के नेतृत्व में सरकार चल रही है.

पिछले दिनों ईटीवी भारत के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत के दौरान झारखंड भाजपा के अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा था कि इस बार झारखंड में भाजपा की सरकार बनेगी. एनडीए को बहुमत मिलेगा. वैसे लोकसभा चुनाव में भाजपा को राज्य की 14 में से अपनी तीन एसटी सीटें गंवानी पड़ी थी. आलम यह रहा कि अर्जुन मुंडा जैसे केंद्रीय मंत्री को खूंटी की जनता ने नकार दिया. जबकि लोहरदगा में समीर उरांव और दुमका में सीता सोरेन चुनाव हार गयीं.

इस नतीजे के बाद इंडिया गठबंधन ने भाजपा के लिए इसे आदिवासी विरोध का इनाम बताया. हालांकि भाजपा का मानना है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव काफी अलग होते हैं. शायद यही वजह है कि भाजपा ने अपने स्ट्रैटजी बदल दी है. 2019 में रघुवर दास के नाम पर चुनाव मैदान में उतरकर मात खाने वाली भाजपा इस बार पार्टी के नाम पर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं.

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