लखनऊ: जिले के फील्ड हॉस्टल में रविवार को बिजली महापंचायत हुई. इसमें देश के सभी बिजली कर्मचारी, महासंघों और ऑल इंडिया पावर डिप्लोमा इंजीनियर्स फेडरेशन व ऑल इण्डिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और महामंत्री शामिल हुए. इस बिजली महापंचायत में प्रदेश के सभी जनपदों और परियोजनाओं से बड़ी संख्या में बिजली कर्मी, संविदा कर्मी और अभियंता शामिल हुए. महापंचायत में उपभोक्ता संगठनों और किसानों का भी प्रतिनिधित्व है.
बिजली पंचायत में निजीकरण के विरोध में संघर्ष के अगले कदमों की घोषणा की जायेगी. प्रदेश भर से करीब 10 हजार बिजली कर्मी इस महापंचायत में शामिल होने के लिए पहुंचे. इस मौके पर बिजली संगठन के नेताओं का कहना है कि हमें ऊर्जा मंत्री पर बिल्कुल यकीन नहीं है. लेकिन, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर पूरा भरोसा है. वह किसी भी कीमत पर बिजली कर्मियों के साथ अन्याय नहीं होने देंगे. पूर्वांचल और दक्षिणांचल का निजीकरण नहीं होने देंगे.
इस प्रकार 7 वर्षों में एटीएण्डसी हानियांं में 24 प्रतिशत की कमी आयी है. इसके विपरीत ऊर्जा मंत्री घाटे के बड़े-बड़े भ्रामक आंकड़े देकर निजीकरण की दुहाई दे रहे हैं. जबकि निजीकरण के कारण आगरा में पावर कॉरपोरेशन को टोरेंट कंपनी को बिजली देने में ही 2434 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है. आगरा जैसे औद्योगिक और व्यवसायिक शहर से होने वाले राजस्व की हानि पांच हजार करोड़ रुपये से अधिक की है.
कर्मचारियों और अभियंताओं लेकर होगी कार्रवाई: विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के नेतृत्व में बिजली महापंचायत हुई. बिजली कर्मियों को नेता समझ रहे हैं कि किसी भी कीमत पर हमें एकता को बरकरार रखना है. संगठन में शक्ति है और सरकार को इसके आगे झुकना पड़ेगा. विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे का कहना है, कि पांच अप्रैल 2018 और छह अक्टूबर 2020 को हुए लिखित समझौते का खुला उल्लंघन किया जा रहा है.
तत्कालीन ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने लिखित समझौते में कहा था कि उत्तर प्रदेश में विद्युत वितरण निगमों की वर्तमान व्यवस्था में ही विद्युत वितरण में सुधार के लिए कर्मचारियों और अभियंताओं को विश्वास में लेकर सार्थक कार्रवाई होगी. कर्मचारियों और अभियंताओं को विश्वास में लिए बिना उत्तर प्रदेश में किसी भी स्थान पर कोई निजीकरण नहीं किया जाएगा. 6 अक्टूबर 2020 को वित्त मंत्री सुरेश खन्ना और तत्कालीन ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के साथ लिखित समझौते में कहा गया, कि उत्तर प्रदेश में विद्युत वितरण निगमों की वर्तमान व्यवस्था में ही सुधार के लिए कर्मचारियों और अभियंताओं को विश्वास में लेकर सार्थक कार्रवाई होगी.
बिना विश्वास में लिए किसी स्थान पर निजीकरण नहीं होगा. दोनों समझौतों के अनुसार सुधार की प्रक्रिया विद्युत वितरण निगमों के मौजूदा ढांचे में ही कर्मचारियों को विश्वास में लेकर की जानी चाहिए. ऊर्जा मंत्री और पावर कॉर्पोरेशन प्रबंधन पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम को पीपीपी मॉडल पर निजी क्षेत्र को सौंपना चाहता है, जो सीधे तौर पर पुराने समझौता का खुला उल्लंघन है.
उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि हमें किसी भी कीमत पर निजीकरण मंजूर नहीं है. इससे हजारों की संख्या में संविदा कर्मी नियमित कर्मचारी बेरोजगार हो जाएंगे. हमें ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं है. लेकिन, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर पूरा विश्वास है.
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