पटना: बिहार पुलिस में बतौर दारोगा पटना एयरपोर्ट पर तैनात प्रियंका कुमारी, यूं तो रोज अपनी ड्यूटी बखूबी निभाती हैं, लेकिन इस बीच उनकी एक तस्वीर सामने आती हैं, जिसमें वो वर्दी में पुलिस की जिप्सी में बैठी हैं और उनके गोद में उनका छह माह का बच्चा है. प्रियंका की यह तस्वीर भले ही वरीय अधिकारियों तक नहीं पहुंची हो, लेकिन प्रियंका जैसी कई महिला पुलिसकर्मी हैं, जिनके मन में यह सवाल जरूर होगा कि क्यों महिला पुलिसकर्मियों की मूलभूत जरूरतों को लेकर सरकारें गंभीर नजर नहीं आतीं?.
बिहार की वर्दी वाली मम्मियों की परेशानी : 2018 बैच की सब इंस्पेक्टर प्रियंका का ससुराल पटना में है, पति की छत्तीसगढ़ में पोस्टिंग (सीआरपीएफ) हैं. यहां घर में कुछ मजबूरी है, जिस वजह से अपने बच्चे को वो अकेला नहीं छोड़ सकती हैं. हालांकि, हो सकता है कि प्रियंका की ये कहानी सोशल मीडिया पर कोई पोस्ट कर दें या फिर राज्य के डीजीपी तक यह खबर पहुंचे तो 'साहब' का ध्यान महिला पुलिसकर्मियों की मूलभूत जरूरतों (क्रेच) पर जाएं और वे जरूरी कदम उठाएंगे.
एक तरफ तारीफ, दूसरी तरफ सवाल : फिलहाल एयरपोर्ट थाने में पदस्थापित महिला दारोगा प्रियंका के छह महीने के बच्चे की तबीयत पिछले कुछ दिनों से खराब है. इसके बावजूद वो लगातार अपनी ड्यूटी निभा रही हैं. रोज ड्यूटी पर आती हैं. पुलिस की जीप में पेट्रोलिंग पर निकली हैं तो बेटा भी साथ में होता हैं. जब सड़क पर निकलती है तो बच्चे को जिप्सी की सीट पर रखकर कांस्टेबल के भरोसे जाती हैं. इस दौरान बच्चे की देखभाल कांस्टेबल के जिम्मे होता है, वो वायरलेस भी सुनता है और बच्चे को भी देखता है.
''कुछ दिनों से बच्चे को सर्दी-खासी और बुखार हैं. इसके पिता भी बिहार से बाहर ड्यूटी करते हैं. सीआरपीएफ में है, उनकी ड्यूटी अभी छत्तीसगढ़ में लगी हुई है. ससुराल में और भी छोटे बच्चे है. बुजुर्ग सास-ससुर की भी देखभाल करनी पड़ती है. इसलिए मुझे ड्यूटी के दौरान बच्चे को साथ रखना पड़ता है.'' - प्रियंका कुमार, सब इंस्पेक्ट
ड्यूटी के साथ-साथ मां होने का फर्ज : यह परेशानी सिर्फ एक प्रियंका की नहीं. पिछले साल एक ऐसी ही तस्वीर दशहरा के मौके पर बिहार के रोहतास से सामने आई थी. जब महिला कांस्टेबल ब्यूटी कुमारी अपने 10 महीने के बच्चे के साथ ड्यूटी करती नजर आई थी. दशहरा त्यौहार के दौरान ब्यूटी कुमारी की ड्यूटी शहर के भारती गंज मोहल्ले में लगाई गई थी. इस दौरान बच्चे को कभी खिलौने में उलझा कर, कभी गोद में लेकर तो कभी साथ में तैनात दूसरे पुलिकर्मियों की मदद से अपनी ड्यूटी पर मुस्तैद थी.
मूलभूत जरूरतें, क्या भूल गई सरकार? : महिला पुलिसकर्मियों की यह समस्या सिर्फ बिहार की नहीं, बल्कि देशभर की है. सरकारें हर थाने में महिला पुलिसकर्मियों की तैनाती का फरमान जारी तो कर देती है, लेकिन क्रेच और शौचालय जैसी मूलभूत जरूरतों को पूरा करना भूल जाती है. पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो, गृह मंत्रालय के मुताबिक, बिहार में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या देश में सबसे अधिक है. आंकड़ों पर नजर डाले तो बिहार पुलिस के आंकड़ें कहते है कि बिहार में करीब 24 हजार से ज्यादा महिला पुलिसकर्मी हैं. यानी 23 फीसदी के करीब है.
महिला पुलिसकर्मियों की संख्या 27 फीसदी बढ़ी : रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में दो दशक में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या में करीब 27 फीसदी की वृद्धि हुई है. इससे पहले साल 2005 में बिहार में मात्र 893 महिला पुलिसकर्मी थीं. ऐसे में महिला पुलिसकर्मियों की तादात भले ही बढ़ी हो, लेकिन उन्हें मूलभूत सुविधाएं देना शायद राज्य सरकार भूल गई. बिहार में साल 2021 में पुलिस मुख्यालय ने सभी जिलों और बीएमपी की प्रत्येक इकाई में एक क्रेच (शिशु गृह) खोलने की बात कही थी. लेकिन नतीजा सिफर निकला. सिर्फ बीएमपी में पालना गृह (नन्हें सितारे) खोला गया.
क्या है सीएसएनआर की रिपोर्ट? : पिछले साल मई 2023 में ओडिशा की संस्था सीएसएनआर (सेंटर फॉर द सस्टेनबल यूज ऑफ नेचुरल एंड सोशल रिसोर्स) में यह बात सामने आई कि, बिहार में महिला पुलिसकर्मी अपनी मूलभूत जरूरतों जैसे साफ सुधरे टॉयलेट के लिए तरस रही हैं. संस्था ने ओडिशा, झारखंड, बिहार और झारखंड की 328 महिला पुलिसकर्मियों से बात की, जिसमें बिहार की 115 महिला पुलिसकर्मी, जिसमें 113 ग्रुप सी और 2 ग्रुप सी से शामिल थी. यह सर्वे जून 2022 से अगस्त 2022 के बीच किया गया था.
न साफ सुथरे शौचालय, न परिवहन की सुविधा : 'ए स्टडी ऑन चैलेंजेज ऑफ वुमेन पुलिस पर्सनेल' नाम से जारी रिपोर्ट में यह कहा गया कि महिला पुलिसकर्मियों से कार्यस्थल पर उनकी मूलभूत जरूरतों को लेकर सवाल किए गए जैसे, काम के दौरान होने वाली परेशानी, घर और परिवार को लेकर सवाल, शौचालय, परिवहन की सुविधा, यौन उत्पीड़न, क्रेच और वीकली ऑफ को लेकर भी सवाल किए गए.
पीरियड्स के दौरान स्पेशल छुट्टी का प्रावधान : रिपोर्ट के मुताबिक, महिला पुलिसकर्मियों ने कहा कि थानों में साफ सुथरे शौचालय और क्रेच की भी कमी (शिशुगृह-बच्चे को बाहर का दूध पिलाने की मजबूरी), रेस्ट रूम, काम के बाद घर जाना यानी परिवहन और आवास की सुविधा भी एक बड़ा सवाल है. यौन उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज करने की प्रकिया की जानकारी नहीं है. रिपोर्ट में पीरियड्स के दौरान समस्या का भी महिला पुलिसकर्मियों ने जिक्र किया. लेकिन बिहार की बात करें तो यहां पीरियड्स के दौरान स्पेशल छुट्टी का प्रावधान है.
''मुख्यालय की गाइडलाइन के अनुसार, इस पर विचार किया जा रहा है. क्रेच के लिए फंड आ चुका है. जल्द ही एसडीएम के साथ मिलकर जगह चिन्हित कर ली जाएगी. शुरुआत में एक क्रेच को एक्सपेरिमेंट के तौर पर खोला जाएगा. बाद में दूसरे थानों में भी इसकी शुरुआत की जा सकती है, ताकि जो भी महिला सिपाही बच्चों के साथ ड्यूटी करती है, उनकी परेशानी कम हो सके और वह बेहतर पुलिसिंग कर सके.'' - शुभांक मिश्रा, एएसपी, डेहरी
'समस्याएं बहुत सारी हैं, लेकिन...' : फिलहाल तमाम सवालों को लेकर जब ईटीवी भारत के संवाददाता ने ग्राउंड पर महिला पुलिसकर्मियों से बात करने की कोशिश कि तो उन्होंने कैमरे पर तो कुछ नहीं बोला, लेकिन इतना जरूर कहा कि ''समस्याएं तो बहुत सारी है, लेकिन हम किसी से कह नहीं सकते हैं.'' फिलहाल, प्रियंका और ब्यूटी जैसी कई महिला पुलिसकर्मी ने अपनी पुलिस की नौकरी और बच्चों की परवरिश के बीच संतुलन बैठा लिया है और अपना फर्ज बखूबी निभा रही हैं.
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