पटना: द्वापर युग के श्रीकृष्ण सुदामा की दोस्ती को हर कोई जानता है, लेकिन कलयुग के कृष्ण सुदामा की दोस्ती की चर्चा खूब हो रही है. यही नहीं दोनों ने दोस्ती के इतिहास को भी पलट दिया. द्वापर युग में सुदामा श्रीकृष्ण के पास गए थे, लेकिन कलयुग में कृष्ण सुदामा के घर पहुंचे.
दरअसल, हम बात कर रहे हैं वर्तमान में बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और नियाज अहमद के दोस्ती की. अभी हाल में बिहार का राज्यपाल बनते ही अपने दोस्त नियाज अहमद के दानापुर स्थित घर पहुंचे. अब इनकी दोस्ती की चर्चा खूब हो रही है. लोग श्रीकृष्ण-सुदामा की जोड़ी बता रहे हैं. खुद नियाज भी अपने को सुदामा और आरिफ को कृष्ण के रूप में देख रहे हैं.
50 साल से दोस्ती कायम: मूल रूप से दरभंगा छटाई पट्टी गांव के रहने वाले नियाज अहमद और आरिफ मोहम्मद खान की दोस्ती 50 साल पुरानी है. ईटीवी भारत से बातचीत में नियाज अहमद ने बताया कि 'दोनों अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी साथ पढ़ते थे. 1968 में दोनों की दोस्ती हुई थी दो आज तक चल रही है.' आज दोनों के करियर में जमीन-आसमान का फर्क है लेकिन दोस्ती के बीच कोई फर्क नहीं है.
विश्वविद्यालय में हुई थी दोस्ती: पुराने दिनों को याद करते हुए नियाज अहमद ने दोस्ती की बात बतायी. प्रारंभिक पढ़ाई गांव में पूरा करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में नामांकन लिया. बुलंदशहर के रहने वाले आरिफ मोहम्मद खान भी इसी विश्वविद्याय में पढ़ते थे. इसी जगह दोनों की दोस्ती हुई थी. 1972 में आरिफ मोहम्मद खान लॉ में एडमिशन ले लिए और उन्होंने पीजी में एडमिशन लिया लेकिन दोनों की दोस्ती बनी रही.
एक साल ज्यादा कॉलेज में रहे: नियाज अहमद बताते हैं कि आरिफ मोहम्मद खान का झुकाव राजनीतिक में कॉलेज समय से ही थी. ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान ही अलीगढ़ में मुस्लिम यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव में सेक्रेटरी बने थे. चुनाव की याद ताजा करते हुए नियाज बताते हैं कि आरिफ छात्र संघ अध्यक्ष का चुनाव लड़ना चाहते थे. उन्होंने हमसे पूछा कि क्या करें? मैंने कहा कि 'चुनाव लड़ो, मैं तुम्हारे लिए एक साल और कॉलेज में रहूंगा.' पूरी मेहनत से 1974 में छात्र संघ के अध्यक्ष का चुनाव जीते.
छात्र संघ चुनाव में दोस्त को जिताया: नियाज बताते हैं कि उस समय अध्यक्ष और सेक्रेटरी दोनों पद पर उत्तर प्रदेश के ही दोनों कैंडिडेट खड़े थे. अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में बिहारी छात्रों की संख्या 1200 थी. कहा कि मैंने चुनाव में आरिफ मोहम्मद खान के लिए काफी मेहनत की. बिहार के सभी छात्रों का वोट आरिफ मोहम्मद खान के पक्ष में गया और जीत मिली. छात्र संघ चुनाव जीतने के बाद आरिफ मोहम्मद खान की पहचान स्टूडेंट लीडर में होने लगी. चौधरी चरण सिंह और पीरु मोदी जैसे बड़े नेता के साथ राजनीति शुरू की.
1975 में बिहार वापस: 1975 में इमरजेंसी लगी तो आरिफ मोहम्मद खान चौधरी चरण सिंह के साथ मिलकर आगे की राजनीति करने लगे. 1977 में उन्होंने उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव लड़ा और पहली बार विधायक बने. नियाज अहमद बिहार वापस आ गए और परीक्षा की तैयारी करने लगे. 1977 में बीपीएससी का पास कर राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग में चयनित हुए. 2010 में झारखंड से सरकारी सेवा में अधिकारी के पद से रिटायर हुए.
कॉलेज दिनों को किया याद: इस बीच आरिफ मोहम्मद खान तीन बार सांसद, केंद्र में मंत्री, केरल के राज्यपाल और फिर वर्तमान में बिहार के राज्यपाल बने. नियाज अहमद बताते हैं कि दोनों का बैकग्राउंड एग्रीकल्चर था. पढ़ाई के दौरान हॉस्टल में एक साथ खाना खाना. कॉलेज के बाहर एक चाय की दुकान रोज चाय पीना होता था. कॉलेज के नजदीक शमशाद मार्केट नाश्ता करने जाते थे. इस दौरान दोनों में दोस्ती यारी वाली बातचीत भी होती थी.
दीवार फिल्म के लिए बंक मारा: बताते हैं कि दोनों फिल्मों के शौकीन थे. निशाद टॉकीज में जब भी कोई नई फिल्म लगती थी तो हम लोग देखने जाया करते थे. आरिफ मोहम्मद खान के साथ इतनी फिल्में देखी उतने के नाम भी याद नहीं हैं. गंगा जमुना, मुगल-ए-आज़म, अमिताभ बच्चन की चर्चित फिल्म दीवार का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कैसे फिल्म को देखने के लिए क्लास बंक किए थे.
15 साल बाद दिलचस्प मुलाकात: 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनी थी. आरिफ कैबिनेट में मंत्री बने थे. नियाज इस दौरान किसी काम से दिल्ली गए थे. उन्होंने सोचा कि क्यों ना आरिफ से मुलाकात हो जाए. तीन सुनहरी बाग स्थित सरकारी आवास गए तो देखा कि सैकड़ों लोग मिलने के लिए बैठे हुए हैं. शमीम अहमद जो उनके दोस्त हैं वे भी थे. मन में एक डर था कि कहीं आरिफ नहीं पहचाने.
देखते ही गले लगाया: नियाज सोच रहे थे कि अगर आरिफ नहीं पहचाने तो लोगों के सामने बड़ी बेइज्जती होगी. मंत्री के गाड़ी के पास खड़ा होकर इंतजार कर रहे थे. सोचा था कि अगर पहचान लिए तो ठीक वरना वापस चले जाएंगे. कुछ देर उन्हीं के गाड़ी के पास खड़ा रहा. आरिफ मोहम्मद खान घर से बाहर निकल गाड़ी पास आए तो देखते ही गले लगा लिया. पूछा की 'नियाज और समीम तुम दोनों यहां आए, बाहर में क्या कर रहे थे.'
गले लगाता देख लोग हैरान: नियाज बताते हैं कि एक साधारण शर्ट पैंट और हवाई चप्पल पहने हुए आदमी को मंत्री द्वारा गले लगाते देख बड़े-बड़े आदमी इस बात को लेकर हैरान थे. इतना बड़ा आदमी इस मामूली से आदमी को क्यों गले लग रहा है? मन में काफी खुशी थी. उन्होंने कहा कि 'पार्लियामेंट चल रहा है. शाम में आओ दोनों आदमी बैठकर बातचीत करेंगे.'
एक शाम दोस्ती के नाम: नियाज बताते हैं कि वे 6 बजे मंत्री आवास पहुंच गए थे. बहुत लोग मंत्री से मिलने के लिए बैठे हुए थे. 7:30 बजे प्राइवेट सेक्रेटरी आकर बोले कि "नियाज अहमद और शमीम आप लोगों को मंत्री जी बुलाए हैं." बाकी बैठे लोगों को यह कह दिया गया कि आज मंत्री जी इन लोगों के अलावा किसी से नहीं मिलेंगे. आप लोग कल आ जाइए. आरिफ अपने बेडरूम में ले गए और बैठकर बातें की. सभी पुरानी बातें ताजा होती गई.
लाल बत्ती की गाड़ी: दो ढाई घंटे तक हंसी मजाक के बाद नियाज ने आरिफ से कहा कि '15 वर्षों के बाद दिल्ली आया हूं. रात के 10 बजे चुके हैं. बहन घर पर इंतजार कर रही होगी. यदि मैं रास्ता भूल जाऊंगा तो बड़ी परेशानी होगी.' तब आरिफ ने कहा कि 'दोस्त मैं कैबिनेट मिनिस्टर हूं, तुम जिस वक्त और जहां कहोगे तुम्हें हवाई जहाज से भेज सकता हूं.' फिर तीनों दोस्तों ने खाना खाया.
सिक्योरिटी से बड़ी गाड़ी में घर भेजा: खाना खाने के बाद मंत्री वाली लाल बत्ती गाड़ी में पूरी सिक्योरिटी के साथ उन्हें बहन के घर नोएडा भेजा गया. मेरी बहन मकान के नीचे सीढ़ी पर रात 11 बजे मेरा इंतजार कर रही थी. लाल बत्ती का काफिला घर के पास रुका. एक अधिकारी की तरह सुरक्षा कर्मियों ने मुझे गाड़ी से उतारा. बहन देखकर चौंक गई. बहन बोली कि 'भैया इतनी बड़ी गाड़ी से कैसे आ गए?' तो मैंने उसे कहा कि 'आरिफ मेरा दोस्त है, वह केंद्र में मंत्री है. उसी से मिलने के लिए गया था.'
एक बार फिर 34 साल बाद मुलाकात: उस मुलाकात के 34 साल बाद आरिफ मोहम्मद खान बिहार आए. इन्हें राज्यपाल बनाया गया है. नेयाज ने बताया कि उनके सेक्रेटरी ने उनका किया कि 'आरिफ साहब गवर्नर के रूप में आए हैं. आपसे मुलाकात करना चाहते हैं. साहब का फरमान है कि पटना में सबसे पहले अपने दोस्त से मुलाकात करने जाऊंगा.' आरिफ मोहम्मद खान ने खुद फोन लेकर कहा कि 'मैं तुमसे मिलने के लिए आ रहा हूं.'
नियाज बताते हैं कि मैंने मना किया बोला कि 'मैं ही गवर्नर आवास आकर तुमसे मुलाकात कर लूंगा. मेरा छोटा सा घर है. सड़क भी अच्छी नहीं है. तुमको परेशानी होगी. तुम क्यों आओगे? जब शपथ ले लोगे तो मैं खुद तुम्हारे सरकारी आवास पर आकर मिल लूंगा.' इतने सारे सवाल एक झटके में कर दी. लेकिन आरिफ मानने के लिए तैयार नहीं थे. उन्होंने कहा कि 'मेरे सारे सेक्योरिटी बाहर ही रहेंगे. मैं सिर्फ तेरे घर आउंगा.'
कृष्णा सुदामा वाली फीलिंग: नियाज ने अपनी दोस्ती तुलना कृष्ण और सुदामा से की. कहा कि 'कृष्ण से मिलने सुदामा एक छोटी सी पोटली में चावल बांधकर गए थे, लेकिन यहां तो कृष्ण ही अपने सुदामा दोस्त से मिलने उनके घर पर आ गए.' उनके आने से पहले सुरक्षा अधिकारी डॉग स्क्वॉड के साथ पूरे घर का जायजा लेने लगे. मुझे लगा कि यह क्या हो रहा है? मैंने पूछा तो कहा कि यह एक कोरम है. राज्यपाल आ रहे रहे हैं इसलिए जांच की जा रही है.
जब आरिफ साहब से पड़ी डांट: नियाज अहमद दोस्त के आने से पहले गेट पर खड़े थे. दरवाजे पर गाड़ी आकर रूकी. उन्होंने उतरते ही मुझे बाहर खड़ा पाया तो कहा कि 'तुम बहार क्यों खड़े हो. छत से उतरने की क्या जरूरत थी. तुम्हें पता है कि आंख से अच्छी तरीके से दिखाई नहीं दे रहा. सीढ़ी से उतरते वक्त गिर जाते तो क्या होता?' घर में जाते वक्त आरिफ मोहम्मद खान खुद उनको सहारा देकर ऊपर तक ले गए. रूम में बैठकर लगभग 1 घंटे तक बातचीत की.
1 कप चाय की डिमांड: नियाज अहमद ने बताया कि आरिफ मोहम्मद खान से उन्होंने पूछा था कि तुम्हारे लिए खाने में क्या बना कर रखूं? तो उन्होंने कहा था कि खाना नहीं केवल एक कप चाय बिना शक्कर की बनवाना. नियाज बताते हैं कि पत्नी का निधन हो चुका है तो चाय कौन बनाता इसलिए बेटी और नाती को बुला लिए थे. जब आरिफ मोहम्मद खान आए तो उन्होंने बातचीत में बताया कि चाय पीनी छोड़ दी है. सुबह में गर्म पानी, अदरक और हल्दी मिलकर पीता हूं. लेकिन 'तुम्हारे यहां आया हूं तो एक कप बिना शक्कर वाली चाय जरूर पिउंगा.'
"आरिफ मोहम्मद खान एक बेहतरीन इंसान हैं. उसके इंसानियत को लोग किसी रूप में देख सकते हैं. 50 साल पुराना साथी जिसे उसके साथ कोई तुलना नहीं किया जा सकता. आज की दुनिया में जब कोई बड़ा आदमी हो जाता है तो अपने सगे को भूल जाता है, लेकिन आरिफ मोहम्मद ने अपने इस छोटे से दोस्त को अभी तक अपने दिल में जगह दी है. यही उसका सबसे बड़ा बड़प्पन है." -नियाज अहमद, रिटायर अधिकारी
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