पटना: किसी शायर ने कहा है खींचो न कमानों को न तलवार निकालो, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो.’ इसी सोच के साथ सन 1874 में पूर्वी बंगाल से आए गुरु प्रसाद सेन ने बिहार को कर्मभूमि बनाया और बेहार हेराल्ड नामक अखबार की स्थापना की. अखबार 150 साल से अनवरत चल रहा है.
बैरिस्टर गुरु प्रसाद सेन ने की थी शुरुआत: स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अखबार मिशन हुआ करता था और राष्ट्रीयता के लक्ष्य को रखकर अखबार स्थापित किए जाते थे. उसी दौर में सन 1874 में बिहार में एक साप्ताहिक अखबार की नींव रखी गई. कोलकाता से बैरिस्टरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद गुरु प्रसाद सेन ने राजधानी पटना से अखबार की शुरुआत की. गुरु प्रसाद सेन वर्तमान में बांग्लादेश के रहने वाले थे, उस वक्त इसे पूर्वी बंगाल कहा जाता था. सन 1875 से अखबार की प्रति निकालनी शुरू हुई थी.
150 साल पुराना अखबार 'बेहार हेराल्ड': पश्चिम बंगाल में कई समाज सुधारक उस दौर में आए ब्रह्म समाज एक आंदोलन का रूप ले चुका था. बंगाल नवजागरण के दौर से गुजर रहा था. ब्रह्म समाज के सिद्धांतों को मूर्त रूप देने के लिए देश के अलग-अलग हिस्सों में अखबार स्थापित किए गए थे. उसी क्रम में बिहार में भी गुरु प्रसाद सेन ने निजी प्रयास से बेहार हेराल्ड अखबार की शुरुआत की.
बंगाली एसोसिएशन को मिली कमान: वर्ष 1938 तक अखबार निर्बाध तरीके से चला. इस समय मनिद्रचंद समादा बेहार हेराल्ड अखबार के मालिक हुआ करते थे. इसी समय बिहार के अंदर बंगाली एशोसिएशन की स्थापना की गई और पी आर दास को अखबार का कमान सौंपा गया.
2015 में बेहार हेराल्ड की रिलॉन्च: 1975 अर्थात आपातकाल तक अखबार का संचालन हुआ. 1987 से डॉक्टर पीयूष गुप्ता संपादक रहे पीयूष गुप्ता के संपादन में भी अखबार लंबे समय तक चला लेकिन उनके निधन के बाद कुछ समय के लिए अखबार निकलना बंद हो गया. साल 2015 में अखबार को फिर से लॉन्च किया गया.
कोरोना से पहले 700 प्रति छपती थी: कोरोना काल मीडिया संस्थान के लिए भी संकट लेकर आया था और बेहार हेराल्ड अखबार पर भी कोरोना का असर पड़ा. कोरोना काल से पहले बेहार हेराल्ड अखबार 700 प्रति छपती थी. बाद में 500 प्रति छपने लगी. सभी प्रति को बंडल बनाया जाता था और फिर अलग-अलग जिलों के बंगाली एशोसिएशन के दफ्तर में भेजा जाता था. कुछ अखबार की प्रति कोलकाता भी भेजी जाती थी.
विद्युत पाल कर रहे अखबार का संचालन: कोरोना के बाद बेहार हेराल्ड अखबार छपना बंद हो गया और अखबार को पूरी तरह ऑनलाइन कर दिया गया. विद्युत पाल 2015 के बाद से अखबार का संपादन कर रहे हैं. कुछ जिलों में पहले रिपोर्टर थे लेकिन आर्थिक तंगी की वजह से उन्होंने काम छोड़ दिया. फिलहाल विद्युत पाल अकेले काम को देख रहे हैं और अखबार का संचालन कर रहे हैं.
"फेसबुक व्हाट्सएप और ईमेल के जरिए अखबार लोगों तक पहुंचाया जाता है. तकरीबन 500 लोगों तक अखबार ऑनलाइन माध्यम से पहुंच रही है. बेहार हेराल्ड अखबार बिहार के कई जिलों में पहुंचता था. नया टोला में अख़बार छपता था और वहीं पीयूष गुप्ता के आवास में ऑफिस हुआ करता था. पीयूष गुप्ता चर्चित अर्थशास्त्री शैवाल गुप्ता के पिता थे."- विद्युत पाल, संपादक, बेहार हेराल्ड
बंगाली समुदाय के मुद्दों को प्राथमिकता: यह अंग्रेजी अखबार भागलपुर, मुंगेर, बेतिया, मोतिहारी, दरभंगा ,कटिहार और पूर्णिया जिला तक भेजा जाता था. कोलकाता के कुछ लोगों को भी अखबार की प्रति भेजी जाती थी. ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान बेहार हेराल्ड अखबार के संपादक विद्युत पालने कहा कि बंगाली समुदाय से जुड़े मुद्दों को प्रमुखता से उठते रहे हैं. देश के अलग-अलग हिस्सों में 1947 और 1971 में बंगाली समुदाय के लोग गए. उनकी समस्याओं को हम अखबार के जरिए उठाते रहे हैं.
'डेमोक्रेसी एंड सेकुलरिज्म इज आवर मोटो': 1921 -22 के दौरान बिहार में अंग्रेजों ने बंगाली समुदाय के लोगों को परेशान करने के लिए डोमिसाइल नीति लागू की थी. उस दौरान भी अखबार ने प्रमुखता से इस खबर को उठाया था. विद्युत पाल ने कहा कि हमारे अखबार का स्लोगन है 'डेमोक्रेसी एंड सेकुलरिज्म इज आवर मोटो'. हम अखबार के जरिए सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को जोर-जोर से प्रमुखता के साथ प्रकाशित करते हैं.
पटना से होता था प्रकाशन: दिवंगत पीयूष गुप्ता की बहू उषाश्री गुप्ता कहती हैं कि बिहार हेराल्ड का संपादन हमारे नया टोला स्थित आवास से होता था. हमारे ससुर उसके संपादक हुआ करते थे. वहीं से अखबार का संचालन होता था और अखबार से जुड़े लोगों का आना-जाना हुआ करता था.
"हमारी भी इच्छा है कि अखबार की प्रति निकले और फिर से पुराने स्वरूप में आए. डिजिटाइजेशन का असर अखबारों पर पड़ा है. बेहार हेराल्ड अखबार भी इस और बढ़ता दिख रहा है."- उषाश्री गुप्ता,पीयूष गुप्ता की बहू
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